एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 का अनुपालन नहीं हुआ,पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने ड्रग्स मामले में दोषसिद्धि रद्द की
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि चूंकि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सबस्टेंस (एनडीपीएस) एक्ट में कड़ी सजा के प्रावधान हैं, इसलिए जांच के मानक का भी उन सभी मापदंडों पर खरा उतरा जरूरी है।
जस्टिस राजेश भारद्वाज ने ड्रग्स मामले में एक दोषी को बरी करते हुए कहा कि,
“इसमें कोई दो राय नहीं है कि एनडीपीएस अधिनियम एक विशेष अधिनियम है और इसमें कड़ी सजा के प्रावधान हैं। इसलिए, जांच के मानक को उन सभी मापदंडों को पूरा करने की भी आवश्यकता है, जो एक निर्दाेष नागरिक को झूठा फंसाने के आरोप को खारिज करते हैं।’’
अदालत ने यह भी कहा कि जब अभियुक्त के शरीर की तलाशी ली जाती है, तो एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 का अनुपालन प्रकृति में अनिवार्य है। एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 उन शर्तों को निर्धारित करती है जिसके तहत किसी व्यक्ति की तलाशी ली जानी चाहिए।
अदालत ने कहा, ‘‘माननीय सुप्रीम कोर्ट ने कानून तय करते हुए कहा है कि आरोपी के शरीर की तलाशी के मामले में एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 का अनुपालन प्रकृति में अनिवार्य है।’’
पृष्ठभूमि
जब 12 फरवरी 2014 को एसआई मोहन सिंह, एचसी कुलवंत सिंह, कांस्टेबल शरणदीप और कांस्टेबल अजय चंडीगढ़ में गश्त ड्यूटी पर थे, तो उन्होंने शहर में बढ़ती चोरी व स्नैचिंग की घटनाओं पर नियंत्रण करने के लिए सेक्टर 41 में रेहड़ी मार्केट के मोड़ पर एक चौकी स्थापित की।
शाम करीब 6 बजे पुलिस टीम ने सेक्टर 41-42 की तरफ जाने वाले एक व्यक्ति को पकड़ा, जो संदिग्ध लग रहा था। पुलिस पार्टी को देख युवक भड़क गया और पीछे हटने का प्रयास करने लगा। अधिकारियों ने शक के आधार पर कार्रवाई करते हुए उसे पकड़ लिया। आशंका के दौरान, व्यक्ति ने कथित तौर पर अपनी दाहिनी जेब से एक पॉलीथिन बैग निकाला और उसे फेंकने की कोशिश की। हालांकि, एसआई मोहन सिंह ने उसे बैग फेंकने से रोक दिया।
पॉलीथिन की तलाशी लेने पर 10 ग्राम हेरोइन बरामद हुई। एसआई मोहन सिंह ने पूछताछ की तो उसने अपना परिचय हरजीत सिंह के रूप में दिया। हालांकि, वह बरामद मादक पदार्थ रखने के लिए कोई लाइसेंस या संबंधित कागजात पेश नहीं कर सका। बरामद मादक पदार्थ के नमूने भी जांच के लिए केंद्रीय फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला (सीएफएसएल) भेजे गए थे।
इसके बाद, आरोपी हरजीत सिंह पर एनडीपीएस अधिनियम की धारा 21 के तहत अपराध करने का आरोप लगाया गया और उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। एक जांच शुरू की गई, जिसके परिणामस्वरूप अपीलकर्ता को मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया गया।
जांच पूरी होने के बाद अभियोजन पक्ष ने चालान पेश किया और अपीलकर्ता के खिलाफ औपचारिक आरोप तय किए गए। मुकदमे की सुनवाई के दौरान, अभियोजन पक्ष द्वारा अपने साक्ष्य प्रस्तुत करने के बाद, अपीलकर्ता का बयान सीआरपीसी की धारा 313 के तहत दर्ज किया गया था। अपीलकर्ता ने अपने बयान में खुद को बेगुनाह बताया और झूठा फंसाने का दावा किया। हालांकि, उन्होंने अपने बचाव में कोई सहायक साक्ष्य पेश नहीं किया।
तत्पश्चात,निचली अदालत ने अभियोजन पक्ष को अपीलार्थी के विरुद्ध आरोप सिद्ध करने में सफल पाया। नतीजतन, उसे एनडीपीएस अधिनियम की धारा 21 के तहत दोषी ठहराया गया और सजा सुनाई गई।
दलीलें
अपीलकर्ता ने दृढ़ता से तर्क दिया कि पेश किए गए साक्ष्य स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि जांच एजेंसी ने एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 के तहत बिना किसी ऑफर के उसके पास से मादक पदार्थ बरामद किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि धारा 50 का अनुपालन अनिवार्य है, खासकर जब अभियुक्त के शरीर की तलाशी के दौरान बरामदगी की जाती है। इस तरह की विफलता ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए दोषसिद्धि और सजा के आदेश को कानूनी रूप से अरक्षणीय बना देती है।
अपीलकर्ता द्वारा किए गए प्रस्तुतीकरण का जोरदार विरोध करते हुए, राज्य ने तर्क दिया कि रिकवरी अपीलकर्ता द्वारा लाई गई पॉलीथिन से हुई थी और इस प्रकार इस मामले में एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 लागू नहीं होगी। यह आगे प्रस्तुत किया गया कि अपीलकर्ता द्वारा कथित तौर पर लाया गया मादक पदार्थ प्रकृति में मामूली था और अभियोजन पक्ष के मामले पर संदेह करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
विश्लेषण
अदालत ने कहा कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है कि पुलिस पार्टी ने अपीलकर्ता की तलाशी के समय किसी स्वतंत्र गवाह को शामिल करने का कोई प्रयास किया था। अदालत ने आगे कहा कि अपीलकर्ता के पास से कथित मादक पदार्थ तब बरामद किया गया था जब उसने अपनी जेब में रखे पॉलीथिन को फेंकने की कोशिश की थी।
कोर्ट ने कहा,
‘‘इस प्रकार जब यह एसआई मोहन सिंह, पीडब्ल्यू-1 द्वारा बरामद किया गया था, तो प्रतिवादी अपीलकर्ता के हाथ में था। पुलिस पार्टी ने अपीलकर्ता को एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 के तहत कोई ऑफर नहीं दिया।’’
संजीव बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य, 2022 (2) आरसीआर (आपराधिक) 341 और राजस्थान राज्य बनाम परमानंद, 2014(3) एससीआर 522 के मामलों में दी गई न्यायिक मिसाल पर भरोसा करते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए कानून तय किया है कि अभियुक्त के शरीर की तलाशी के मामले में एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 का अनुपालन प्रकृति में अनिवार्य है।
निर्धारित कानून के आलोक में, अदालत ने कहा कि एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 का अनुपालन प्रकृति में अनिवार्य है जो वर्तमान मामले में नहीं किया गया था।
कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता के पास से बरामद वर्जित सामग्री में 10 ग्राम हेरोइन पाई गई, जो एक गैर-व्यावसायिक मात्रा है, और रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह पता चले कि अपीलकर्ता का कोई आपराधिक इतिहास रहा है क्योंकि वह कभी भी समान प्रकृति के किसी अन्य मामले में शामिल नहीं रहा है।
अदालत ने कहा, ‘‘...मामले में, अभियोजन पक्ष अपीलकर्ता को झूठे फंसाए जाने के आरोप को खारिज करने में विफल रहा है,’’ साथ ही कहा कि कोर्ट के दिमाग में कोई संदेह नहीं है कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है क्योंकि इस मामले में एनडीपीएस अधिनियम की धारा 50 के प्रावधानों का अनुपालन नहीं किया गया है।
केस टाइटल- हरजीत सिंह बनाम स्टेट ऑफ यूटी चंडीगढ़ (सीआरए-एस-4011-एसबी 2017)
प्रतिनिधित्व
श्री सुवीर सिद्धू,एडवोकेट और श्री हरलव सिंह राजपूत,एडवोकेट अपीलार्थी की ओर से उपस्थित हुए
श्री वाई.एस. राठौड़,एडीशनल पीपी व साथ में एडवोकेट सुश्री सुधा सिंह यू.टी. चंडीगढ़ की तरफ से पेश हुए
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