पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने प्रथम दृष्टया सह-आरोपियों, जो जमानत पर हैं, उनकी तुलना में कम गंभीर अपराध के आरोपी को जमानत दी

Update: 2022-01-19 08:23 GMT

Punjab & Haryana High court

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कहा है कि यदि किसी अपराध में आरोपी की भूमिका प्रथम दृष्टया उस सह-अभियुक्त की भूमिका से कम गंभीर है, जिसे सीआरपीसी की धारा 438 और सीआरपीसी की धारा 439 के तहत जमानत का लाभ दिया गया है, और यदि आरोपी ने पहली बार अपराध किया है तो वह सुधार के अवसर का हकदार है और उसे जमानत के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता है।

ज‌स्टिस अनूप चितकारा की पीठ ने कहा कि यदि आरोपी ने पहली बार बार अपराध किया है और यदि समान रूप से रखे गए उसके सह-अभियुक्त को को जमानत दे दी गई है, भले ही अपराध में सह-अभियुक्त की भूमिका अन्य अभियुक्त की तुलना में अधिक गंभीर ‌थी तो अभियुक्त की जमानत अर्जी स्वीकार की जानी चाहिए और आरोपी को जमानत देने का मौका दिया जाना चाहिए।

मामला

मामले में सोनीपत का एक आरोपी शामिल है, जिस पर धारा 148 (घातक हथियार से लैस होकर दंगा करना), 149 (गैरकानूनी सभा का प्रत्येक सदस्य एक सामान्य उद्देश्य के अभियोजन में किए गए अपराध का दोषी), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने के लिए दंड) 324 (स्वेच्छा से खतरनाक हथियार से गंभीर चोट पहुंचाना), 325 (स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाने के लिए दंड) और 506 (आपराधिक धमकी के लिए सजा) के तहत के तहत आरोप लगाया गया था।

उसने सीआरपीसी की धारा 439 (जमानत के संबंध में हाईकोर्ट या सत्र न्यायालय के विशेष अधिकार) के तहत जमानत की मांग करते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट विकास गुलिया ने कहा कि हिरासत से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा और ट्रायल पूर्व कैद याचिकाकर्ता और उसके परिवार के साथ अन्याय होगा। राज्य की ओर से पेश डीएजी ने तर्क दिया कि चूंकि चालान पेश किया गया है और आरोप लगाए गए हैं इसलिए जमानत नहीं दी जानी चाहिए।

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपी द्वारा जांच को प्रभावित करने या सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने या गवाहों को डराने और बाद में न्याय को विफल करने की संभावना को कड़ी और विस्तृत शर्तें लगाकर ध्यान रखा जा सकता है।

गुरबख्श सिंह बनाम पंजाब राज्य के फैसले पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने कहा कि जमानत के फैसले को जमानत के अनुदान/इनकार को सही ठहराने वाली विभिन्न परिस्थितियों के संचयी प्रभाव के आधार पर तय करना चाहिए।

कल्याण चंद्र सरकार बनाम राजेश रंजन का भी संदर्भ दिया गया , जहां सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने कहा कि यदि अभियोजन पक्ष अभियुक्त के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने में विफल रहता है, तो गैर-जमानती अपराधों में आरोपी व्यक्ति भी जमानत के हकदार हैं।

इस प्रकार, मामले के गुण-दोष पर टिप्पणी किए बिना, अदालत ने याचिकाकर्ता को जमानत दे दी, बशर्ते कि वह जांच में शामिल हो और जांच एजेंसियों के साथ पूरा सहयोग करे। और नीचे दी गई शर्तों का पालन करे।

केस शीर्षक: साहिल बनाम हरियाणा राज्य


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