पंजाब एंड हरियाणा उच्च न्यायालय ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15 को चुनौती देने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया

Update: 2021-08-06 07:42 GMT

Punjab & Haryana High Court

पंजाब एंड हरियाणा उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 ( HSA) की धारा 15 के प्रावधानों के खिलाफ दायर एक याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। चीफ जस्टिस आरएस झा और ज‌स्टिस अरुण पल्ली की पीठ ने HSA की धारा 15 पर रोक लगाने की मांग पर भी नोटिस जारी किया।

मामल के तथ्य यह हैं कि एक दंपति की निःसंतान मौत हो गई। नतीजतन, मृतक दंपत‌ि की माताओं ने उनकी संपत्ति में हिस्सेदारी का दावा किया।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में पुरुषों और महिलाओं के लिए संपत्ति के हस्तांतरण के अलग-अलग नियम तय हैं। एक हिंदू पुरुष की बिना वसीयत मृत्यु के मामले में HSA की धारा 8 के तहत उत्तराधिकार के सामान्य नियमों का प्रावधान किया गया, जबकि एक हिंदू महिला की मृत्यु के मामले में HSA की धारा 15 के तहत उत्तराधिकार के सामान्य नियमों का प्रावधान किया गया है।

मामला

याचिका में कहा गया है कि बिना वसीयत के मरे एक पुरुष हिंदू की मां और बिना वसीयत के मरी एक महिला हिंदू की मां के साथ अलग-अलग व्यवहार किया जाता है। ‌बिना वसीयत के मरी महिला की संपत्ति पहली बार में उसकी मां को हस्तांतरित नहीं होती है, जबकि बिना वसीयत के मरे पुरुष हिंदू के मामले में ऐसा नहीं है। याचिका के अनुसार, कभी भी हिंदू महिला के माता-पिता को संपत्ति हस्तांतरित होने की संभावना नहीं होती है क्योंकि पति के उत्तराधिकारियों की सूची लंबी है और उन्हें महिला हिंदू के माता-पिता पर प्राथमिकता मिलती है।

याचिका में आगे कहा गया है कि HSA की योजना ऐसी है कि यह महिलाओं के अपने कौशल के प्रयोग से संपत्ति प्राप्त करने के किसी भी विचार को रोकती है। परिणाम यह होता है कि पति के परिवार के दूर के रिश्तेदारों का बिना वसीयत मरी, निःसंतान और बिना जीवित पति के मरी महिला की संपत्त‌ि पर अध‌िक दावा होता है। जबकि पुरुष की मृत्यु, निःसंतान और जीवित पत्नी के बिना होती है तो संपत्ति पहले उसकी मां, फिर उसके पिता और भाई-बहनों और फिर उसके दूर के रिश्तेदारों के पास जाती है। उनकी पत्नी के पैतृक परिवार का संपत्ति पर कोई दावा नहीं होता है। याचिका के अनुसार, संपत्ति का स्रोत-आधारित हस्तांतरण, जैसा कि धारा 15(2) में प्रदान किया गया है, HSA की धारा 8 में नहीं है।

याचिका में कहा गया है कि धारा 15 उसी लिंग भेदभाव को कायम रखती है, जिसे हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 में दूर करने की मांग की गई थी। संशोधन का उद्देश्य बेटियों को संपत्त‌ि में समान अधिकार देकर HSA के तहत पुरुषों और महिलाओं के बीच समान व्यवहार सुनिश्चित करना था। याचिका के अनुसार, उक्‍त उद्देश्य को विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा (2020) 9 एससीसी 1 में मान्यता दी गई थी ।

याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि धारा 15 में निहित भेदभाव को तीन अलग-अलग अवसरों पर इंगित किया गया है। याचिकाकर्ता के मुताबिक, ममता दिनेश वकील बनाम बंसी एस वाधवा के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने प्रावधान में भेदभाव की पहचान की है । इसके अलावा, जब हिंदू उत्तराधिकार संशोधन विधेयक, 2015 पर चर्चा हो रही थी, तब संसद के समक्ष उक्त भेदभाव पर प्रकाश डाला गया था। विधि आयोग ने अपनी 207वीं रिपोर्ट में भेदभाव को दूर करने के लिए प्रावधान में संशोधन की सिफारिश की है।

उपरोक्त सभी कारणों से HSA की धारा 15 संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है और इसलिए इसे रद्द कर दिया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सुमीर सोढ़ी और श्रेया नायर पेश हुए। मामले की अगली सुनवाई दो दिसंबर 2021 को होगी।

केस टाइटिल: एक्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अन्य।

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