गिरफ्तारी के लिए 'अर्नेश कुमार' मामले में जारी किए गए दिशा-निर्देश 7 साल से कम कारावास की सज़ा के प्रावधान वाले अपराधों में लागू : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2022-06-29 05:38 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी के लिए 'अर्नेश कुमार' मामले में जारी किए गए दिशा-निर्देश 7 साल से कम कारावास की सज़ा के प्रावधान वाले अपराधों में लागू होंगे।

जस्टिस अनूप चितकारा की खंडपीठ ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 406 और धारा 420 के तहत दर्ज एफआईआर में अग्रिम जमानत याचिका पर विचार करते हुए कहा,

अर्नेश कुमार बनाम बिहार राज्य, (2014) 8 एससीसी 273, (पैरा 13) में पारित निर्देश उस याचिका पर लागू होते हैं, जिसमें माननीय सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे पुलिस अधिकारियों को सात साल से कम अवधि की सजा के मामलों में आरोपी को ऑटोमैटिक तरीके से न गिरफ्तार करने का निर्देश दें।

इसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता-आरोपी ने पहली बार अपराध किया है और उसे सुधार का मौका दिया जाना चाहिए। अदालत ने आगे कहा कि आरोपी से जांच को प्रभावित करने, सबूतों से छेड़छाड़ करने, गवाहों को डराने और न्याय से भागने की संभावना से विस्तृत और कड़ी शर्तें लगाकर निपटा जा सकता है।

सुशीला अग्रवाल, (2020) 5 एससीसी 1, पैरा 92 और सुमित मेहता बनाम एन.सी.टी. दिल्ली, (2013)15 एससीसी 570, पैरा 11 का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि कोर्ट निर्बाध जांच सुनिश्चित करने के लिए शर्तें लगाता है।

अदालत ने आगे कहा कि जमानत के साथ जमानत देते समय, "अदालत" और "गिरफ्तारी अधिकारी" को आरोपी को उपलब्ध विभिन्न ऑनलाइन और ऑफलाइन तरीकों से ज़मानत बांड प्रस्तुत करने का विकल्प देना चाहिए। उक्त निर्देश महिदुल शेख बनाम हरियाणा राज्य के मामले में दिया गया था।

ज़मानत बांड और फिक्स डिपॉजिट के बीच चयन करना आवेदक का पूर्ण विवेक होगा। आवेदक के लिए ज़मानत बांड के साथ फिक्स डिपॉजिट के प्रतिस्थापन के लिए आवेदन करने के लिए भी खुला होगा।

न्यायालय ने यह कहते हुए निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता को भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के अनुसार हिरासत में माना जाएगा और वह जांच अधिकारी या किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा बुलाए जाने पर जांच में शामिल होगा। जांच में सहयोग न करने की स्थिति में जमानत रद्द की जा सकेगी।

अदालत ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता अन्वेषक/एसएचओ और शिकायतकर्ता/पीड़ित (पीड़ितों) को अन्य प्रासंगिक जानकारी के साथ बैंक खाते का पूरा विवरण भेजने में विफल रहता है तो इस आधार पर ही जमानत रद्द की जा सकती है।

इसके अनुसार याचिका को मंजूर किया गया।

केस टाइटल: राजीव कुमार बनाम हरियाणा राज्य



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