संरक्षण याचिका-मुस्‍लिम युवक से शादी करने के लिए महिला ने इस्लाम स्‍वीकार किया, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने युवक को महिला के पक्ष में तीन लाख रुपए का फिक्स्ड ‌डिपॉजिट कराने का निर्देश दिया

Update: 2021-01-09 05:02 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार (06 जनवरी) को एक मुस्लिम व्यक्ति को उस महिला के पक्ष में, जिसने उससे शादी के लिए इस्लाम धर्म स्वीकार किया था, तीन लाख रुपए का फिक्स्ड ‌डिपॉजिट कराने और उसकी रसीद कोर्ट में जमा करने का निर्देश दिया।

जस्टिस सरल श्रीवास्तव की खंडपीठ दंपति की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने मांग की थी कि प्रतिवाद‌ियों को उनके विवाहित जीवन में हस्तक्षेप न करने का निर्देश दिया जाए और उनके जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा की जाए।

याचिकाकर्ताओं की दलीलें

याचिकाकर्ताओं ने अदालत के समक्ष कहा है कि वे वयस्क हैं और अपनी मर्जी से बाहर रह रहे हैं।

य‌ाचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता संख्या एक (महिला) ने मुस्लिम धर्म का अनुसरण करने का फैसला किया था और मुस्लिम धर्म स्वीकार किया। धर्मांतरण के बाद महिला ने याचिकाकर्ता संख्या दो (मुस्लिम पुरुष) से शादी की।

शादी के कारण, प्रतिवादी संख्सा 4 और परिवार के अन्य सदस्य नाराज हो गए और उन्होंने याचिकाकर्ताओं को धमकी दी और शोषण किया, जिससे याचिकाकर्ताओं के जीवन को गंभीर खतरा पैदा हो गया है।

अपनी उम्र की पुष्टि के लिए महिला ने हाईस्कूल की मार्क्स शीट जमा की, जबकि पुरुष ने अपना आधार कार्ड जमा किया है। दस्तावेजों के अवलोकन के बाद अदालत ने पाया कि दोनों याचिकाकर्ता वयस्‍क हैं।

कोर्ट का आदेश

कोर्ट ने यह कहते हुए कि, "जब दोनों याचिकाकर्ता वयस्क हो चुके हैं और एक साथ रह रहे हैं, तब कोई भी उनके शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप करने का हकदार नहीं है", प्रतिवादी संख्या दो यानीपुलिस अधीक्षक, बिजनौर को निर्देश जारी किया कि याचिकाकर्ताओं की शिकायत की जांच करें और यदि आवश्यक हो तो सुरक्षा प्रदान करें।

मामले को आगे की सुनवाई के लिए 08.02.2021 को पोस्ट किया गया है और तब तक पुरुष को महिला के पक्ष में तीन लाख रुपए का फिक्स्ड डिपॉजिट कराने और उसकी रसीद के साथ अदालत में पेश होने का निर्देश दिया गया है।

संबंधित खबरें 

उत्तर प्रदेश सरकार ने गुरुवार (07 जनवरी) को विवादास्पद लव-जिहाद अध्यादेश के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं के एक बैच के जवाब में जवाबी हलफनामा दायर किया। जवाब में, सरकार ने दावा किया कि अध्यादेश का उद्देश्य गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, खरीद-फरोख्त आद‌ि के जर‌िए गैरकानूनी धर्मांतरण को रोकना है।

सरकार ने यह भी कहा है कि सलामत अंसारी मामले में हाईकोर्ट की खंडपीठ के हाल के फैसले पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि "यह अंतर-मूल अधिकारों और अंतर्मूल अधिकारों से संबंधित प्रश्न का निस्तारण नहीं कर पाया है और समाजिक हितों के समक्ष किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता का दायरा क्या होगा, इस प्रश्न पर माननीय खंडपीठ का ध्यान आकर्षित करने से भी चूक गया है।"

[नोट: सलामत अंसारी मामले में, हाईकोर्ट ने कहा था कि "पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, किसी भी धर्म का होने के बावजूद, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अंतर्निहित हिस्सा है।"]

उल्लेखनीय है कि 18 दिसंबर, 2020 को मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश, 2020 के खिलाफ दायर जनहित याचिकाओं के एक बैच पर नोटिस जारी किया था और उत्तर प्रदेश सरकार को चार जनवरी तक जवाबी हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया था।

हाल ही में, हाईकोर्ट ने नदीम नामक एक व्यक्ति की उक्त अध्यादेश तहत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। जस्टिस पंकज नकवी और विवेक अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने उत्तर प्रदेश पुलिस को निर्देश दिया था कि वह इस मामले में आरोपियों के खिलाफ अगली सुनवाई तक कोई बलपूर्ण कार्रवाई न करें।

केस टाइटिल- श्रीमती शाइस्ता परवीन उर्फ संगीता और एक अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 3 अन्य [WRIT- C No. - 27234 of 2020]

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