संरक्षण याचिकाः याचिकाकर्ताओं का पहला विवाह समाप्त न होने के मामले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने आय, संपत्ति और नाबालिग बच्चों का विवरण दायर करना अनिवार्य किया

Update: 2021-11-21 09:10 GMT

एक महत्वपूर्ण आदेश में, पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं (संरक्षण याचिका दायर करने वाले) की पहली शादी से हुए नाबालिग बच्चों की स्थिति, यदि कोई हो तो, चल और अचल संपत्ति के साथ ही आय के विवरण को दायर करना अनिवार्य कर दिया है।

गौरतलब है कि इस घोषणा को उन सभी सुरक्षा याचिकाओं के लिए अनिवार्य कर दिया गया है जहां पक्षकारों पर यह आरोप लगाया जाता है कि वे पहली शादी को विधिवत तरीके से समाप्त किए बिना ही लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं या जहां यह आरोप लगाया जाता है कि याचिकाकर्ताओं ने दूसरी शादी की है।

न्यायमूर्ति अरविंद सिंह सांगवान की खंडपीठ ने यह आदेश एक सद्दाम की तरफ से दायर संरक्षण याचिका पर सुनवाई करने के बाद दिया है। इस याचिका में दावा किया गया है कि लगभग 33 वर्ष के सद्दाम और लगभग 25 वर्ष की ताहिरा ने एक-दूसरे से शादी कर ली है। यह भी दलील दी गई कि दोनों याचिकाकर्ताओं की यह दूसरी शादी है।

मामले की पृष्ठभूमि

इससे पहले, 29 जून, 2021 को, पुलिस अधिकारियों को याचिकाकर्ताओं के लिए खतरे की धारणा का आकलन करने और कानून के अनुसार कार्य करने का निर्देश दिया गया था, और उक्त आदेश में कहा गया था कि यह निर्देश उनकी शादी की वैधता या अन्यथा पर कोई टिप्पणी किए बिना दिया जा रहा है।

इसके बाद, याचिकाकर्ता नंबर 1 (सद्दाम) की कानूनी रूप से विवाहित पहली पत्नी ने सद्दाम के साथ विवाह से पैदा हुए पांच बच्चों के विवरण को रिकॉर्ड में पर रखा और प्रस्तुत किया कि उसे व उसके बच्चों को भगवान के सहारे छोड़ दिया गया है क्योंकि सद्दाम ने उसके व उसके पांच नाबालिग बच्चों का खर्च उठाने से इनकार कर दिया है। इन बच्चों की उम्र डेढ़ साल से लेकर 11 साल के बीच की है।

आगे यह भी प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता नंबर 2 (ताहिरा) भी पहले से शादीशुदा थी और उक्त विवाह से उसकी एक संतान भी है। इतना ही नहीं याचिकाकर्ताओं (सद्दाम और ताहिरा) के बीच तथाकथित विवाह अवैध है और कानून के तहत स्वीकार्य नहीं है।

न्यायालय की टिप्पणियां

कोर्ट ने शुरूआत में कहा कि उसके सामने जो सवाल उठता है वह यह है कि क्या ऐसे मामलों में कोर्ट को पोस्ट ऑफिस की तरह एक आदेश पारित करना चाहिए और इस टिप्पणी के साथ इन्हें पुलिस अधिकारियों को अग्रेषित कर देना चाहिए कि बिना विवाह की वैधता या अन्यथा पर कोई विचार किए खतरे की धारणा को देखा जाना चाहिए, या इसके विपरीत, किसी दिए गए मामले में न्यायालय को न्यायिक दिमाग अप्लाई करना चाहिए और कानूनी रूप से विवाहित पत्नी जैसे याचिकाकर्ता नंबर 1 के साथ-साथ पांच नाबालिगों के अधिकारों को न्यायालय द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए (उनके अभिभावक होने के नाते) संरक्षित और सुरक्षित किया जाना चाहिए?

इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि यह सुनिश्चित करना कोर्ट का कर्तव्य है कि सरमीना (सद्दाम की पहली पत्नी) और उसके पांच नाबालिग बच्चों को भगवान की दया पर न छोड़ा जाए और उन्हें उचित शिक्षा मिलनी चाहिए और उनको समाज की मुख्यधारा में रहना चाहिए। वहीं वह अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए कट्टर अपराधी न बने या इसके लिए अवैध तरीके ना अपनाएं।

उपरोक्त के मद्देनजर, सीआरपीसी की धारा 482 के साथ पठित भारत के संविधान के अनुच्छेद 226/227 के तहत सु मोटो शक्ति का प्रयोग करते हुए, न्यायालय ने उपायुक्त / पुलिस अधीक्षक, नूंह(मेवात) को निम्नलिखित निर्देश देते हुए याचिका का निपटारा किया हैः

''...याचिकाकर्ता नंबर 1 (सद्दाम) की भूमि को कुर्क किया जाए और तहसीलदार, नूंह को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दें कि उक्त भूमि की बिक्री की आय से, सरमीना को 1/4 राशि का भुगतान किया जाए ताकि वह अपनी और अपने नाबालिग बच्चों की देखभाल कर सके और वे समाज की मुख्य धारा में बने रह सकें और अपनी आजीविका कमाने के लिए कट्टर अपराधी न बनें या अवैध तरीके न अपनाएं।''

अंत में, रजिस्ट्रार जनरल को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है किः

''सभी संरक्षण याचिकाओं में, जहां कोई पक्ष यह दावा करता है कि वे अपनी पहली शादी को विधिवत तरीके से समाप्त किए बिना ही लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं या जहां यह आरोप लगाया जाता है कि याचिकाकर्ताओं ने दूसरी शादी की है, तो ऐसी स्थिति में याचिकाकर्ताओं की पहली शादी से हुए नाबालिग बच्चों की स्थिति,चल और अचल संपत्ति के विवरण साथ ही आय के संबंध में अनिवार्य रूप से घोषणा की जाए और यह स्पष्ट किया जाए कि याचिकाकर्ता अपने नाबालिग बच्चों की परवरिश, शिक्षा आदि की देखभाल किस तरह से करेंगे।''

यह निर्देशित दिया गया है कि 01.02.2022 के बाद, ऐसी सभी या समान सुरक्षा याचिकाओं को पारित करने से पहले, उपरोक्त शर्तों का पालन किया जाए और इसी के साथ न्यायालय ने याचिका का निपटारा कर दिया है। कोर्ट ने तीन महीने की अवधि के भीतर अनुपालन रिपोर्ट मांगी है।

केस का शीर्षक - सद्दाम व अन्य बनाम हरियाणा राज्य व अन्य

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