[धारा 102 (3) सीआरपीसी] संपत्ति अभिग्रहित (Seize) करने से पूर्व मजिस्ट्रेट की अनुमति आवश्यक नहीं, अभिग्रहण के बाद रिपोर्टिंग है अनिवार्य: इलाहाबाद हाईकोर्ट

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Update: 2020-07-26 12:08 GMT
Allahabad High Court expunges adverse remarks against Judicial Officer

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक हालिया मामले में यह साफ़ किया है कि धारा 102 सीआरपीसी के तहत संपत्ति अभिग्रहित (Seize) करने से पूर्व मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी आवश्यक नहीं लेकिन अभिग्रहण के बाद पुलिस को मजिस्ट्रेट को इस बाबत सूचना देनी होगी।

न्यायमूर्ति पंकज नकवी एवं न्यायमूर्ति दीपक वर्मा की डिविजन बेंच ने धारा 102 सीआरपीसी के सम्बन्ध में यह देखा कि,

"इस प्रावधान को पढने से यह प्रकट होता है कि यह धारा एक पुलिस अधिकारी को एक संपत्ति को अभिग्रहित (Seize) करने का अधिकार देती है जो संपत्ति किसी भी अपराध के कमीशन का संदेह पैदा करती है। यह विवादित नहीं है कि 'बैंक खाता' एक संपत्ति है, जिसे अभिग्रहित (Seize) किया जा सकता है। इस तरह के अभिग्रहण (Seizure) से संबंधित चेतावनी यह है कि अभिग्रहण (Seizure) की रिपोर्ट पुलिस अधिकारी द्वारा सक्षम मजिस्ट्रेट को दी जाएगी।"

क्या था यह मामला?

दरअसल, याचिकाकर्ता 'इंडिपेंडेंट टीवी लिमिटेड' द्वारा, उत्तरदाता नंबर 2 और 3 यानी एस. एस. पी. गौतमबुद्धनगर और प्रवर्तन निदेशालय, नई दिल्ली के खिलाफ परमादेश की एक रिट की मांग हाई कोर्ट से की गयी थी, जिसमे उनकी यह मांग थी कि वे उत्तरदाता नंबर 2 और 3 को यह निर्देशित करें कि याचिकाकर्ता के पंजाब नेशनल बैंक, नोएडा में मौजूद खाते को डीफ्रीज़ (defreeze) किया जाए।

गौरतलब है कि डी. सी. पी., नोएडा के द्वारा दाखिल व्यक्तिगत हलफनामे (दिनांक 2-जुलाई-2020) में अदालत के समक्ष यह कहा गया था कि याचिकाकर्ता के खाते का अभिग्रहण (Seizure) विधिवत रूप से 17-मई-2019 को किया गया था और जिसका उल्लेख, केस डायरी के पर्चा नं. 10 में दिनांक 3-जून-2019 को किया गया और स्थापित प्रक्रिया के अनुसार, एसीजेएम- III, गौतमबुद्धनगर के समक्ष इसे प्रस्तुत किया गया था।

पूर्व में सटीक तिथि के संबंध में अदालत को कुछ संदेह था कि आखिर कब मजिस्ट्रेट को यह सूचित किया गया था (कि याचिकाकर्ता का खाता फ्रीज़ किया गया है) और तदनुसार अदालत द्वारा राज्य से बेहतर हलफनामा देने के लिए कहा गया था, जिसके पश्च्यात, डीसीपी, ग्रेटर नोएडा की ओर से 8-जुलाई-2020 को एक हलफनामा दायर किया गया था जिसके पैरा - 4 में, अभिग्रहण (Seizure) की रिपोर्टिंग के संबंध में पूर्व में कही बात दोहराई गयी है।

अदालत के समक्ष यह भी कहा गया कि 8-जुलाई-2020 को मजिस्ट्रेट को इस सम्बन्ध में एक नया संचार भी भेजा गया है। इस प्रकार, बेहतर हलफनामा दाखिल हो जाने के बाद बाद अभिग्रहण (Seizure) की मजिस्ट्रेट को रिपोर्टिंग अदालत के समक्ष एक मुद्दा नहीं रहा।

गौरतलब है कि, याचिकाकर्ता के लिए अदालत में पेश वकील ने हाईकोर्ट के एक कोऑर्डिनेट बेंच के एक फैसले (Writ -C No।13740/2019) जिसे दिनांक 20-मई-2019 को सुनाया गया था, को संदर्भित करते हुए समता (parity) का दावा किया।

अदालत ने धारा 102 (3) सीआरपीसी को लेकर मुख्य रूप से यह टिप्पणी की कि

"हम ध्यान से उक्त निर्णय (Writ -C No।13740/2019) से गुज़रे हैं और हम यह पाते हैं कि उक्त फ़ैसला 'पर इन्क्युरियम' (per incurium) है क्योंकि वह फैसला इस आधार पर आगे बढ़ता है कि अभिग्रहण (Seizure) करने वाले प्राधिकरण यानी पुलिस को (धारा 102 सीआरपीसी के अंतर्गत), तब तक अपनी शक्ति से वंचित रखा जाता है जब तक कि मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति प्राप्त नहीं हो जाती है। यह विचार, (दण्ड प्रक्रिया) संहिता (1973) की धारा 102 की उप-धारा (3) के बिल्कुल विपरीत है, जिसके अंतर्गत अभिग्रहण (Seizure) हो जाने के बाद सक्षम मजिस्ट्रेट को सूचित किया जाता है।"

आगे अदालत ने यह भी देखा कि

"एक बार जब सक्षम मजिस्ट्रेट को अभिग्रहण (Seizure) की सूचना दे दी जाती है, तब याचिकाकर्ता मजिस्ट्रेट के समक्ष कानून के अनुसार अपना दावा प्रस्तुत कर सकता है।"

इसके साथ ही हाईकोर्ट ने इस याचिका को निपटाते हुए कहा कि यदि याचिकाकर्ता आज से 3 सप्ताह के भीतर मौजूदा आदेश की प्रमाणित कॉपी के साथ अपने खाते को डीफ्रीज़ (defreeze) करने का दावा करता है तो मजिस्ट्रेट, कानून के अनुसार संबंधित पक्षों की सुनवाई यथासंभव तेजी से करने के बाद फैसला करेंगे।

गौरतलब है कि नेवादा प्रॉपर्टीज प्राइवेट लिमिटेड बनाम महाराष्ट्र राज्य 2019 (4) KHC 782 (SC) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह तय किया था कि पुलिस के पास आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 102 के तहत अन्वेषण के दौरान 'अचल संपत्ति' को ज़ब्त करने की शक्ति नहीं है।

यह निर्णय तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता, और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने सुनाया था। हालांकि, पुलिस के पास आरोपियों की चल संपत्तियों को फ्रीज़ करने का अधिकार है, पीठ ने यह स्पष्ट किया था।

यही बात, मार्च 2020 के उच्चतम न्यायालय के फैसले,डाउनटाउन टेम्पटेशंस प्राइवेट लिमिटेड बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (क्रिमिनल अपील नंबर 340 ऑफ़ 2020) के मामले में भी दोहराई गयी थी ()।

यदि हम बात धारा 102 (3) की करें तो हम देखेंगे कि इस धारा के अंतर्गत, धारा 102 की उपधारा (1) के अधीन कार्य करने वाले प्रत्येक पुलिस अधिकारी को, अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट को अभिग्रहण (Seizure) की रिपोर्ट तुरन्त देने का निर्देश दिया गया है।

यानी कि जैसे ही किसी भी संपत्ति का अभिग्रहण (Seizure) किया जाए, इसकी सूचना तुरंत ही अधिकारिता रखने वाले मजिस्ट्रेट को दी जानी आवश्यक है।

धारा 102 (3) के सम्बन्ध में अधिक जानकारी के लिए आप यह लेख पढ़ सकते हैं।

केस विवरण

केस नंबर: CRIMINAL MISC. WRIT PETITION No. - 23756 of 2019

केस शीर्षक: इंडिपेंडेंट टीवी लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं 4 अन्य

कोरम: न्यायमूर्ति पंकज नकवी एवं न्यायमूर्ति दीपक वर्मा

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