आपराधिक गतिविधि को अंजाम देने से पहले हासिल की गई संपत्ति पीएमएलए के तहत कुर्क नहीं की जा सकती : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा है कि धन शोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के तहत ऐसी संपत्ति को कुर्क नहीं किया जा सकता जिसे इस अपराध के करने से पहले देश के बाहर ख़रीदी या हासिल की गई हो।
न्यामूर्ति जसवंत सिंह और न्यामूर्ति संत प्रकाश की पीठ ने कहा,
"निदेशक या उसके द्वारा अधिकृत कोई अन्य अधिकारी को इस बात का विशेष ज़िक्र करना ज़रूरी है कि इसका कारण क्या है और सिर्फ़ पीएमएलए की धारा 5 की दुहाई का कोई मतलब नहीं है।"
यह अपील पीएमएलए की धारा 42 के तहत दायर की गई है और इसमें अपीली अधिकरण के फ़ैसले को निरस्त करने की माँग की गई है जिसने संपत्ति की अस्थाई कुर्की की अपीलकर्ताओं की अपील की आलोचना की गई है।
वर्तमान मामले में मैसर्स जलधारा एक्सपोर्ट्स के ख़िलाफ़ वैट रिफ़ंड में फ़रवरी-मार्च 2013 के दौरान धोखाधड़ी के आरोप में आईपीसी की धारा 177, 420, 465, 467, 468, 471 के तहत मामला दर्ज किया। प्रवर्तन निदेशालय ने एनफ़ोर्समेंट केस इन्फ़र्मेशन रिपोर्ट (ईसीआईआर) दर्ज किया।
इसके बाद प्रतिवादी ने अपील नम्बर 1 में शामिल एक संपत्ति और अपीलकर्ताओं की एंपायर रेज़ीडेंशियल प्रोजेक्ट की एक फ़्लैट जो अपील नम्बर 2 में दर्ज था, को 90 दिनों के लिए कुर्क कर दिया।
अपीलकर्ताओं ने इस मामले में तीन मुद्दे उठाए – क्या 90 दिन की सीमा के समाप्त होने के समय क्या जाँच लंबित थी?;
क्या कुर्क की गई संपत्ति न केवल कथित अपराध बल्कि पीएमएलए के अस्तित्व में आने से काफ़ी पहले ख़रीदी गई? और क्या संपत्ति को अस्थाई रूप से कुर्क करने से पहले इसका कारण बताने के नियम का पालन नहीं किया गया?
यह कहा गया कि अपील नम्बर 1 के तहत आनेवाली संपत्ति 1991 में ख़रीदी गई और अपील नम्बर 2 में शामिल संपत्ति 2012 में ख़रीदी गई जबकि कथित अपराध फ़रवरी-मार्च 2013 में हुआ। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि अपराध से आए धन से ये संपत्तियाँ ख़रीदी गईं।
अदालत ने कहा कि पीएमएलए की धारा 24 के अनुसार, इस संपत्ति का धन शोधन से संबंध नहीं है यह साबित करने की ज़िम्मेदारी उस व्यक्ति की है जिसकी संपत्ति को कुर्क किया गया है।
" जहाँ तक पीएमएलए की धारा 8(6) की बात है, जहाँ विशेष अदालत पाता है कि धन शोधन का अपराध नहीं हुआ है या संपत्ति का धन शोधन में प्रयोग नहीं हुआ है, तो वह ऐसी संपत्ति को मुक्त कर देगा"।
अदालत ने कहा कि अथॉरिटीज़ को अनिर्देशित और बेलगाम अधिकार मिल जाएगा और वह किसी को भी फँसा सकता है भले ही उसका इस अपराध और इससे मिले धन से कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष लेना-देना हो या नहीं हो बल्कि उस व्यक्ति की अन्य संपत्तियों से उसका वास्ता है (जिसका इस अपराध से कोई लेना-देना नहीं है) जिसने अपराध से धन जमा की है।
"यह संविधान के अनुच्छेद 20 और 21 का उल्लंघन होगा"।
अदालत ने यह भी ग़ौर किया कि पीएमएलए की धारा 5 के अनुसार, निदेशक या उसके द्वारा अधिकृत अन्य अधिकारी का यह कर्तव्य है कि वह उसके पास उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर कारणों का उल्लेख करे कि इस बात की आशंका है कि अपराध से मिले धन को छिपाए जाने या हस्तांतरणया किसी अन्य तरह से प्रयोग की आशंका है ताकि इस बारे में किसी तरह की भ्रम की स्थिति नहीं रहे।
अदालत ने कहा,
"आदेश में प्रयुक्त शब्द हू-ब-हू वही नहीं होने चाहिएँ जो पीएमएलए की धारा 5 के हैं कुर्की का आदेश देने से पहले, पीएमएलए की धारा 5 की बातों को ही दुबारा सामने रख दिया है जबकि प्रतिवादी को यह बताना ज़रूरी था कि संपत्ति को किस तरीक़े से छिपाए जाने की आशंका है।"
अदालत ने कहा कि वर्तमान मामले में यह स्वीकार किया गया है कि संपत्ति को 1991 में ख़रीदा गया और 2009 में इसे एक बैंक के पास गिरवी रख दिया गया। इसमें कहा गया कि कथित अपराध 2013 में हुआ जबकि कुर्की का आदेश दिसंबर 2017 में दिया गया।
"इस बात का कोई सबूत नहीं है कि अपीलकर्ताओं ने 2009 या 2013 के बाद इस कथित संपत्ति को बेचने की कोशिश की जिसकी वजह से प्रतिवादी को कुर्की का आदेश देना पड़ा…
प्रतिवादी को उसके पास जो सबूत था उसके आधार पर यह बताना ज़रूरी था कि इस कथित संपत्ति को किसी तरीक़े से छिपाए जाने या कहीं और स्थानांतरित कर दिए जाने की आशंका है"।
अदालत ने ऊपर पूछे गए तीन प्रश्नों के बारे में कहा कि अगर जाँच लंबित है तो अन्य लोगों के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कर किसी व्यक्ति को 365 दिन की समय सीमा का लाभ दिलाने से रोकना काफ़ी नहीं है; आपराधिक गतिविधि या पीएमएलए के पहले अर्जित संपत्ति को कुर्क नहीं किया जा सकता जबकि अपराध से मिले धन से ख़रीदी गई संपत्ति देश के बाहर है; और निदेशक या उसके द्वारा नियुक्त कोई अन्य अधिकारी को कारण बताना ही होगा और वह सिर्फ़ धारा 5 के तहत कुछ बोलकर इससे नहीं बच सकते।
इस तरह अदालत ने अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया और अधिकरण के आदेश को निरस्त कर दिया।