कैदी के मौलिक कर्तव्य जेल की चौखट पर ही खत्म नहीं हो जाते: मद्रास हाईकोर्ट ने दोषी को सामान्य छुट्टी दी

Update: 2023-09-21 06:24 GMT

मद्रास हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक कैदी की 40 दिनों की सामान्य छुट्टी पर जाने की याचिका स्वीकार कर ली। कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए इस बात पर जोर दिया कि किसी कैदी के मौलिक कर्तव्य जेल के दरवाजे पर ही समाप्त नहीं हो जाते।

अदालत ने कहा कि कैदी ने अपने बच्चों के एडमिशन की व्यवस्था करने और अपने घर की मरम्मत के लिए छुट्टी मांगी है, जो दोनों तमिलनाडु सजा निलंबन नियम 1982 के अंतर्गत आते हैं।

अदालत ने कहा,

“उपर्युक्त दो कारण, अर्थात् वे कारण जो उक्त नियमों के नियम 20 के उप-खंड (ii) और (iii) में फिट बैठते हैं, हमारे विचार में बहुत ही बाध्यकारी हैं, क्योंकि यह रिट याचिकाकर्ता के बच्चों की शिक्षा से संबंधित है। इस संबंध में हम खुद को याद दिलाते हैं कि एक कैदी और उसके मौलिक अधिकार जेल के दरवाजे पर अलग नहीं होते हैं और शिक्षा का अधिकार निर्विवाद रूप से मौलिक अधिकार है।”

जस्टिस एम सुंदर और जस्टिस आर शक्तिवेल की खंडपीठ ने इस बात पर भी जोर दिया कि छुट्टी को नियंत्रित करने वाले नियम अधीनस्थ कानून हैं, जो अदालत की संवैधानिक शक्तियों में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। खासकर जब यह संविधान के अनुच्छेद 21 से संबंधित हो।

अदालत ने कहा,

"अधीनस्थ विधान का एक टुकड़ा जो पीस से नहीं गुजरा है, यानी विधानमंडल में विधायी पीस शायद ही इस न्यायालय की संवैधानिक शक्तियों को बाधित या किसी भी तरह से बाधित कर सकता है। खासकर तब, जब ऐसी संवैधानिक शक्तियां भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 से संबंधित हों।"

अदालत सेल्वम की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसे मूल रूप से मृत्युदंड की सजा सुनाई गई है। इस सजा को बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया था। सेल्वम ने दलील दी कि वह 29 साल तक जेल में रहा और यहां तक कि 15 बार छुट्टी पर गया और बिना किसी अप्रिय घटना के वापस लौट आया। सेल्वम ने अपने बच्चों के एडमिशन की व्यवस्था करने और अपने घर की मरम्मत के लिए 40 दिनों की साधारण छुट्टी मांगी है। हालांकि, जब इस अभ्यावेदन पर ध्यान नहीं दिया गया तो उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

लोक अभियोजक ने प्रस्तुत किया कि अभ्यावेदन पर कार्रवाई की जा रही है और क्षेत्राधिकार परिवीक्षा अधिकारी की रिपोर्ट प्राप्त की गई है। इस रिपोर्ट में कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं है। उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में कहा गया है कि एस्कॉर्ट के साथ छुट्टी दी जा सकती है।

अदालत ने कहा कि नियम केवल अधीनस्थ कानून हैं, जो अदालत की संवैधानिक शक्तियों को कम नहीं कर सकते। इस प्रकार, अदालत ने एस्कॉर्ट के साथ 40 दिनों की सामान्य छुट्टी के सेल्वम के अनुरोध को स्वीकार कर लिया। अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि एस्कॉर्ट की संख्या क्षेत्राधिकार पुलिस द्वारा तय की जानी है।

अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि छुट्टी का उपयोग केवल उसी उद्देश्य के लिए किया जाना चाहिए, जिसके लिए यह दी गई और एस्कॉर्ट के साथ छुट्टी देने का मतलब यह नहीं है कि सेल्वम को अपने घर तक ही सीमित रहना है।

याचिकाकर्ता के वकील: एम.मोहम्मद सैफुल्ला

प्रतिवादी के वकील: ई. राज तिलक अतिरिक्त लोक अभियोजक

केस टाइटल: सेल्वम बनाम राज्य

केस नंबर: WP.No.27137/2023

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