'समयपूर्व': केरल हाईकोर्ट ने लक्षद्वीप मसौदा विनयमन के खिलाफ दायर जनहित याचिका रद्द की
केरल हाईकोर्ट ने गुरुवार को लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन और अन्य नियामक कार्यों के मसौदे के खिलाफ दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मसौदे पर अभी सक्रिय रूप से विचार किया जा रहा है, इसलिए उनकी वैधता का परीक्षण पूर्णतया समयपूर्व होगा।
याचिकाकर्ता केपी नौशाद अली ने प्रशासक द्वारा शुरू किए गए कुछ नियामक उपायों को चुनौती दी थी। उन्होंने प्रार्थना की थी कि इन नियमों को अवैध और असंवैधानिक घोषित किया जाए, और इस आधार पर रिट ऑफ क्राइटीओरारी द्वारा रद्द किया जाए कि ये उपाय संविधान के अनुच्छेद 15, 16, 19 और 21 का उल्लंघन हैं।
याचिका में लक्षद्वीप पशु संरक्षण नियमन, 2020, और बैल, बछड़ों आदि सहित पशुपालन विभाग द्वारा संचालित सभी डेयरी फार्मों को बंद करने के आदेश को रिट ऑफ मैंडमस के जरिए वापस लेने और और उक्त नियमों को तब तक लागू नहीं करने का आदेश देने की मांग की गई थी, जब तक कि द्वीपों के निवासियों से आगे की आपत्तियां ना मांग ली जाए।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता अनूप वी नायर ने दलील दी कि जनहित याचिका लक्षद्वीप के निवासियों के पारंपरिक जीवन और संस्कृति को नष्ट करने के परोक्ष इरादे और हितों/ अधिकारों की रक्षा के लिए दायर की गई थी।
याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई थी कि मसौदा नियम प्रशासक को किसी भी क्षेत्र को विकास के उद्देश्य से योजना बनाने के लिए आवश्यक क्षेत्र घोषित करने की शक्ति प्रदान करते हैं।
जस्टिस एसवी भट्टी और जस्टिस मुरली पुरुषोत्तमन की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता, मलप्पुरम का स्थायी निवासी है, ना कि लक्षद्वीप का। लक्षद्वीप के मामलों या प्रशासन में कभी शामिल नहीं रहा है या लोगों से संबंधित नहीं है, इस प्रकार बेंच को जनहित याचिका पर अपना पक्ष समझाने में विफल रहा है।
इसके अलावा, जिन नियमों को चुनौती दी जा रही थी, उनमें से एक प्रशासन द्वारा कुछ सुविधाओं में लगे अस्थायी कर्मचारियों की सेवा समाप्त करने के संबंध में है। इस मामले में कोर्ट ने कहा कि एक जनहित याचिका के माध्यम से सेवा मामले का समर्थन करने की अनुमति नहीं है, क्योंकि निर्णय की वैधता पर सवाल उठाने का लोकस स्टैंडाई मौजूद नहीं है।
कोर्ट ने आगे कहा कि इनमें से अधिकांश विनियम मसौदा हैं, और इन्हें लागू नियम के रूप में नहीं माना जा सकता है। याचिका में की गई मांगों को समयपूर्ण पाया गया है, और जनहित याचिका । के माध्यम से ऐसी मांगों की सुनवाई करना उचित नहीं है।
जनहित याचिका को खारिज करते हुए, खंडपीठ ने कहा, "जनहित याचिका में चुनौती के लिए मसौदा शर्त को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।"
कोर्ट ने आदेश में कहा, "इस न्यायालय का विचार है कि मसौदा विनियमन की वैधता की जांच, जिस पर प्रतिवादी सक्रिय विचार कर रहा है, पूरी तरह से समयपूर्व है।"
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