बैंक पूर्व सूचना दिए बिना प्री-पेमेंट चार्ज नहीं लगा सकते: उड़ीसा हाईकोर्ट
उड़ीसा हाईकोर्ट (Orissa High Court) ने कहा कि बैंक पूर्व सूचना दिए बिना 'पूर्व भुगतान शुल्क (Pre-Payment Charges)' नहीं लगा सकते हैं।
जस्टिस अरिंदम सिन्हा की एकल न्यायाधीश पीठ ने कहा,
"इस बात का भी कोई सबूत नहीं है कि संदर्भित परिपत्र को स्वीकृति पत्र के साथ संलग्न के रूप में प्रकट किया गया। उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों में, न्यायालय संतुष्ट है कि क्रेडिट सुविधाओं के अनुदान में पारदर्शिता के उद्देश्य को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी किए गए दिशानिर्देशों द्वारा पूरा किया जाना आवश्यक है। इस मामले में पूरा नहीं किया गया है। इसलिए पूर्व-भुगतान शुल्क नहीं लगाया जा सकता है।"
पूरा मामला
याचिकाकर्ताओं ने 7 फरवरी 2022 के संचार को चुनौती दी जिसके द्वारा प्रतिवादी बैंक ने याचिकाकर्ताओं को क्रेडिट सुविधाओं को बंद करने के लिए पूर्व भुगतान शुल्क के डेबिट के बारे में सूचित किया।
उन्होंने आरोप लगाया कि मंजूरी पत्र में ऐसा कोई शब्द शामिल नहीं है और इस तरह भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार इसे एक अनुचित व्यवहार के रूप में चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ताओं की दलीलें
याचिकाकर्ताओं के वकील जी.एम. रथ ने आरबीआई द्वारा जारी परिपत्र दिनांक 6 मार्च, 2007 का संदर्भ दिया, जिसमें 'उधारदाताओं के लिए उचित व्यवहार संहिता पर दिशानिर्देश' निर्धारित किया गया है।
उन्होंने प्रस्तुत किया कि अन्य बातों के साथ-साथ पूर्व भुगतान विकल्प पर व्यापक जानकारी सहित स्पष्ट दिशानिर्देश हैं। आरबीआई ने आगे 25 नवंबर, 2008 और 12 नवंबर, 2010 के परिपत्र जारी किए। उन्होंने स्वीकृति पत्र की ओर इशारा किया और तर्क दिया कि केवल प्रसंस्करण शुल्क के संदर्भ में 1 लाख पर 350 रुपए या उसके हिस्से और इसके अलावा, माल और सेवा कर (जीएसटी) लगाया जा सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि मंजूरी पत्र के साथ परिपत्र का खुलासा नहीं किया गया था और 12 नवंबर 2010 के परिपत्र द्वारा, आरबीआई ने बैंक की वेबसाइट पर 'भी' अपलोड करने के लिए जानकारी के अतिरिक्त दिशानिर्देश प्रदान किए।
उन्होंने जोर देकर कहा कि याचिकाकर्ताओं को उक्त आरोप के बारे में न तो आवेदन पत्र के माध्यम से और न ही स्वीकृति पत्र के माध्यम से अवगत कराया गया। इसलिए, उन्होंने आग्रह किया कि कोर्ट को बैंक द्वारा लगाए गए प्री-पेमेंट चार्ज को रद्द करना चाहिए।
प्रतिवादी की दलीलें
बैंक की ओर से पेश अधिवक्ता के.एम.एच. नियामती ने प्रस्तुत किया कि स्वीकृति पत्र में प्रसंस्करण शुल्क के तहत परिपत्र का संदर्भ है। उस सर्कुलर में यह प्रावधान किया गया है कि प्री-पेमेंट चार्ज लागू होंगे। इसलिए, याचिकाकर्ता यह तर्क नहीं दे सकते कि सूचना उपलब्ध नहीं थी।
उन्होंने आगे तर्क दिया, दिनांक 12 नवंबर, 2010 के अंतिम संदर्भित परिपत्र के संदर्भ में संदर्भित परिपत्र को प्रतिवादी बैंक की वेबसाइट पर अपलोड किया गया था और उपलब्ध है।
कोर्ट का फैसला
कोर्ट ने माना कि काउंटर से कुछ भी ध्यान में नहीं लाया गया जो पूर्व-भुगतान शुल्क लगाए जाने का संकेत देगा। न तो याचिकाकर्ता को ऋण आवेदन में प्रदान की गई जानकारी और न ही स्वीकृति पत्र में ऐसा संकेत दिया गया है, सिवाय प्रसंस्करण शुल्क के प्रवेश के खिलाफ संदर्भित परिपत्र को छोड़कर।
इस बात का भी कोई सबूत नहीं है कि परिपत्र को स्वीकृति पत्र के साथ अटैचमेंट के रूप में प्रकट किया गया था। इसलिए, न्यायालय ने माना कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी दिशा-निर्देशों द्वारा पूरा किए जाने के लिए आवश्यक क्रेडिट सुविधाओं के अनुदान में पारदर्शिता का उद्देश्य इस मामले में पूरा नहीं किया गया है। इसलिए प्री-पेमेंट चार्ज को जारी नहीं रखा जा सकता और तदनुसार, रद्द कर दिया गया।
केस का शीर्षक: सलुब्रीटी बायोटेक लिमिटेड एंड अन्य बनाम बैंक ऑफ बड़ौदा, वडोदरा एंड अन्य।
केस नंबर: डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 6998 ऑफ 2022
आदेश दिनांक: 12 अप्रैल 2022
कोरम: जस्टिस अरिंदम सिन्हा
याचिकाकर्ताओं के वकील: एडवोकेट जी.एम. रथ
प्रतिवादियों के लिए वकील: एडवोकेट के.एम.एच. नियामती
प्रशस्ति पत्र: 2022 लाइव लॉ 43
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