रिश्ते में खटास आने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता : सिक्किम हाईकोर्ट ने बलात्कार के आरोपी को बरी किया
शादी का वादा करके एक महिला से बलात्कार करने के आरोपी एक व्यक्ति को बरी करते हुए सिक्किम हाईकोर्ट ने कहा कि रिश्ते में खटास आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
10 जनवरी 2018 को, पीड़िता ने यह आरोप लगाते हुए एक प्राथमिकी दर्ज कराई थी कि आरोपी (मकराज लिंबो) ने 17 जनवरी 2013 को उससे बलात्कार किया था। इस कारण वह गर्भवती हो गई थी और उसने आरोपी की सलाह पर अपना गर्भपात करा लिया था। यह भी आरोप लगाया गया था कि उसने इसके बाद भी उससे कई बार बलात्कार किया था। ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (1) के तहत दोषी ठहराया और सात साल के सश्रम कारावास और 50,000 रुपये के जुर्माने से दंडित किया।
अपील पर सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति भास्कर राज प्रधान ने उल्लेख किया कि प्राथमिकी दर्ज करने में पांच साल की बेवजह की देरी हुई है और इसलिए अदालत में उसने जो भी बयान दिया है,उसकी अन्य सबूतों से परिपुष्टि होना जरूरी है। कोर्ट ने कहा कि,''अदालत, किसी भी मामले में, पीड़िता की एकमात्र गवाही पर भरोसा कर सकती है यदि वह सुरक्षित, विश्वसनीय है और स्वीकृति के योग्य है और अभियुक्त को दोषी ठहराया जा सकता है। हालांकि, अदालत के लिए यह हमेशा विवेकपूर्ण है कि जब एकमात्र गवाही ही एकमात्र सबूत के तौर पर उपलब्ध हो तो उसकी परिपुष्टि की जाए।''
अभिलेखों का उल्लेख करते हुए, अदालत ने कहा कि प्राथमिकी में गंभीर विसंगति है। वहीं सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान एक तरफ है व उसका बयान दूसरी तरफ है। हालांकि पीड़िता-कथित यौन हमले की शिकार,के आघात के बारे में सचेत होना महत्वपूर्ण है परंतु आपराधिक न्यायशास्त्र के अच्छी तरह से तय सिद्धांत के बारे में भी सचेत होना उतना ही महत्वपूर्ण है क्योंकि जितना अपराध अधिक गंभीर होता है, सबूत भी उतने ही पुख्ता होने चाहिए।
सजा को रद्द करते हुए, बेंच ने आगे कहा किः
"मामले की परिस्थितियों को देखने के बाद इस अदालत का विचार है कि हालांकि अभियोजन पक्ष के नेतृत्व में पेश किए गए सबूतों से यह संदेह पैदा होता है कि अपीलकर्ता ने वास्तव में पीड़िता के साथ बलात्कार किया था, परंतु अकेले संदेह पर अपीलकर्ता को दोषी ठहराना विवेकपूर्ण नहीं होगा। पीड़िता ने जो बयान दिया है,उसकी परिपुष्टि उसके परिवार के सदस्यों द्वारा भी नहीं की गई है। पीड़िता के बलात्कार के बयान की परिपुष्टि नहीं हुई है। इस बात के प्रमाण हैं कि पीड़िता को अपीलार्थी ने अपने प्रेम जाल में फंसाया था और उससे शादी करने की इच्छा जताई थी। अभियोजन पक्ष के कुछ गवाहों ने उनके प्रेम संबंध के बारे में बताया है।
यह साबित करने के लिए सबूत हैं कि पीड़िता खुद अपीलकर्ता से मिलने गई थी,जब उसका एक्सीडेंट हुआ था। रिश्ते में खटास आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। अभियोजन पक्ष के कई गवाहों ने बताया कि उन्होंने ''शारीरिक संबंध'' और ''यौन संबंध'' के बारे में सुना था,परंतु दोनों को बलात्कार के समान नहीं माना जा सकता है। ऐसी परिस्थितियों में, इस न्यायालय भी विचार का है कि अपीलकर्ता को संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए। "
केसःमकराज लिंबो बनाम सिक्किम राज्य,सीआरएल.ए. नंबर 17/2019
कोरमःन्यायमूर्ति भास्कर राज प्रधान
प्रतिनिधित्वःसीनियर एडवोकेट एन राय साथ में एडवोकेट सुशांत सुब्बा और सुष्मिता गुरुंग (लीगल एड काउंसिल),एपीपी यदेव शर्मा
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