संपत्ति का कब्जा/स्वामित्व बिजली चोरी के खिलाफ कार्यवाही के लिए प्रासंगिक विचार: गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2022-08-18 10:40 GMT

गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट के एक हालिया आदेश में बिजली अधिनियम की धारा 135 के तहत कथित रूप से बिना लाइसेंस के कनेक्शन के एक व्यक्ति को बरी करने के आदेश में यह स्पष्ट किया कि मामले में संपत्ति के स्वामित्व/कब्जे को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

जस्टिस अशोककुमार जोशी ने राज्य की अपील को कई आधारों पर खारिज कर दिया, जिसमें यह तथ्य भी शामिल था कि पुलिस ने तथाकथित घटना स्थल के लिए आरोपी के कब्जे या स्वामित्व को दिखाने के लिए कोई प्रमाण पत्र या दस्तावेज नहीं मांगे थे।

यह माना गया कि ट्रायल कोर्ट के आदेश ने गवाहों के सभी बयानों पर सावधानीपूर्वक विचार किया है, राज्य प्रतिवादी-अभियुक्त के खिलाफ मामले को साबित करने में विफल रहा है और ट्रायल कोर्ट के आदेश में किसी भी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

"बरी करने के आदेश के खिलाफ अपील में शक्तियों का प्रयोग करते हुए, अपील की अदालत आमतौर पर बरी करने के आदेश में हस्तक्षेप नहीं करेगी जब तक कि निचली अदालत का दृष्टिकोण कुछ प्रकट अवैधता से दूषित नहीं होता है.."

दक्षिण गुजरात विज कंपनी लिमिटेड के उप अभियंता द्वारा प्रतिवादी पर बिजली चोरी का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई गई थी। कथित तौर पर, आवेदक के पास नियमित कनेक्शन नहीं था और उसने कम ट्रांसमिशन लाइन से अवैध सीधा कनेक्शन प्राप्त किया था। यह आरोप लगाया गया था कि एक औसत बिल 2 लाख रुपये तैयार कर आरोपी को जारी किए गए, जिसका भुगतान नहीं किया गया और तदनुसार, मौजूदा शिकायत दर्ज की गई।

एपीपी ने कई गवाहों के बयान पर भरोसा करके ट्रायल कोर्ट के आदेश का विरोध किया, जिन्हें 'विश्वसनीय और भरोसेमंद' कहा गया था और अन्य दस्तावेजी सबूत थे। इसके विपरीत, प्रतिवादी ने तर्क दिया कि अभियोजन द्वारा यह साबित नहीं किया गया था कि परिसर का स्वामित्व अभियुक्त का था। इसलिए, निर्णय आदेश में हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।

ज‌‌स्टिस जोशी ने कहा कि संबंधित समय पर लाइनमैन से जिरह की गई थी और उन्होंने स्वीकार किया था कि उन्हें उस स्थान पर रहने वाले व्यक्तियों की संख्या के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। जब्त किया गया कैप्शन वाला तार बाजार में आसानी से उपलब्ध था और उसमें मार्किंग पेपर का कोई टुकड़ा नहीं था। इसके अलावा, आरोपी व्यक्ति के आवासीय स्थान पर कोई खुला तार/पीवीसी वायरिंग नहीं था। पंच गवाह ने यह भी स्वीकार किया कि कैप्‍शन्‍ड वायर तारों के माध्यम से चोरी संभव नहीं थी। एक और पंच गवाह मुकर गया था।

थाने के प्रभारी पीएसओ ने भी स्वीकार किया कि उन्होंने केवल अपराध दर्ज किया है और इसके अलावा कुछ नहीं किया है। गौरतलब है कि आरोपी के पास घटना स्थल के कब्जे या स्वामित्व का भी कोई सबूत नहीं था।

इस प्रकार, पीठ ने राज्य की अपील को खारिज कर दिया।

केस टाइटल: गुजरात राज्य बनाम बलवंतसिंह अमरसिंह राज

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