[पुलिस द्वारा सीएए विरोधी प्रदर्शनकारी का उत्पीड़न] राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने तेलंगाना डीजीपी के गैर उत्तरदायी रवैये को गंभीरता से लिया; कंडीशनल समन जारी किया
तेलंगाना के पुलिस महानिदेशक के 'गैर-उत्तरदायी रवैये' को गंभीरता से लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के कथित उत्पीड़न के मामले में उन्हें व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने को कहा है।
आयोग ने इस वर्ष जनवरी में आयोग द्वारा मांगी गई अपेक्षित रिपोर्ट प्रस्तुत करने में डीजीपी के विफल रहने के बाद मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के अंतर्गत सशर्त समन जारी किया हैं।
आयोग ने कहा कि उसने 22 जनवरी 2020 को इस मामले का संज्ञान लिया था और डीजीपी तेलंगाना से कार्रवाई की रिपोर्ट मांगी थी। हालांकि कोई रिपोर्ट आयोग को नहीं मिली। इसके बाद 12 मई 2020 की कार्यवाही के माध्यम से डीजीपी को अपेक्षित रिपोर्ट प्रस्तुत करने का अंतिम अवसर दिया गया था लेकिन आज तक रिपोर्ट हमें नहीं मिली।
इस पृष्ठभूमि में यह देखा,
"अंतिम अवसर देने के बावजूद आज तक कोई रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गई है। आयोग इस गैर उत्तरदायी रवैये को गंभीरता से लेता है । उन्हें यह निर्देश दिया गया है कि वे आवश्यक रिपोर्ट के साथ सुबह 11 बजे आयोग के समक्ष उपस्थित हो।"
हालांकि, यह स्पष्ट किया जाता है कि यदि आयोग में अपेक्षित रिपोर्ट निर्धारित तिथि से एक सप्ताह पहले प्राप्त होती है तो उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति समाप्त हो जाएगी ।
एनएचआरसी ने मोहम्मद अब्दुल मुजीब नाम के एमनेस्टी सदस्य की शिकायत पर संज्ञान लिया था जिसमें इस साल जनवरी में तेलंगाना राज्य में नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 (सीएए) का विरोध कर रहे एक व्यक्ति के खिलाफ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था।
मुजीब ने दावा किया है कि 22 दिसंबर को करीमनगर में शांतिपूर्ण विरोध रैली निकालने के बाद इंस्पेक्टर स्पेशल ब्रांच द्वारा फोन पर उन्हें धमकी दी गई। अगले दिन उन्हें कमिश्नर के सामने बुलाया गया, जिन्होंने उनकी शिकायत का समाधान नहीं किया और बाद में फिर से संबंधित थाने में इंस्पेक्टर के सामने बुलाया। बाद में सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) से जुड़े इंस्पेक्टर ने मुजीब के साथ बंद दरवाजे की काउंसलिंग सेशन भी किया।
इन सत्रों में कथित तौर पर विरोध की प्रकृति पर आक्षेप लगाए गए, जिन्ना की विचारधारा के प्रति प्रदर्शनकारियों के झुकाव पर सवाल उठाया गया, शिकायतकर्ता से कहा कि वह एक भारतीय के रूप में अपनी स्थिति साबित करने के लिए जिन्ना को गाली दें। स्पष्टीकरण के अंत में मुजीब ने आरोप लगाया कि उन्हेंं कहा गया कि अगर वह ' सच्चे भारतीय ' हैं तो उन्हें कानून के पुलिस के स्पष्टीकरण को स्वीकार करने के लिए कहा गया था।
इस शिकायत का ब्यौरा देने वाली एक अखबार की रिपोर्ट के आलोक में वकील बिलाल खान और अंशु कपूर ने मुजीब की ओर से एनएचआरसी में मामला रखा । उन्होंने आग्रह किया कि शिकायतकर्ता केवल अनुच्छेद 19 (1) (ख) के तहत अपने मौलिक अधिकार का प्रयोग कर रहा है, जबकि पुलिस के खिलाफ आरोप गंभीर हैं।
करीमनगर पुलिस ने हालांकि इन दावों को सिरे से खारिज कर दिया था।
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