पुलिस आरोप के अपने दृष्टिकोण में तथ्यों को "क्विक फिक्स" नहीं कर सकती: जेएंडकेएंडएल हाईकोर्ट ने आपराधिक धमकी शिकायत के मामले में बलात्कार की जांच करने पर कहा
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने मंगलवार को आपराधिक जांच के दरमियान पुलिस द्वारा इस्तेमाल "क्विक फिक्स" को चिन्हित किया और कहा कि जांच "तथ्यों में मुद्दे" और "प्रासंगिक तथ्यों" के दायरे में होनी चाहिए।
अदालत अपहरण और आपराधिक धमकी के लिए आईपीसी की धारा 366 और 506 के तहत दर्ज मामले अजय प्रताप नामक द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
शिकायतकर्ता के अनुसार, आरोपी ने उसे एक वाहन में बिठाया। जबरदस्ती और धमकी देकर विवाह के समझौते पर उसके हस्ताक्षर ले लिए। शिकायत में विशेष रूप से उल्लेख किया गया है कि कोई 'शारीरिक संपर्क' नहीं किया गया था।
याचिकाकर्ता (आरोपी) ने तर्क दिया कि वैवाहिक संबंध दोनों पक्षों की स्वतंत्र इच्छा पर बने थे और उन्होंने आर्य समाज मंदिर में एक विवाह समझौता भी कराया और विधिवत नोटरी कराया।
चालान के अवलोकन पर, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत अपराध जोड़े गए हैं, जैसे कि एक महिला को बलात्कार की शिकार के रूप में पेश करना पुलिस के लिए "रस्म और दिनचर्या का मामला" है।
कोर्ट ने कहा कि शिकायत की सामग्री को देखने से याचिकाकर्ता के किसी भी अपराध का संकेत नहीं मिलता या शिकायतकर्ता के शील को भंग करने का प्रयास नहीं दिखता है..।
कोर्ट ने कहा,
" यदि उक्त 164 सीआरपीसी बयान के अनुसार धारा 376 आईपीसी के तहत बलात्कार के अपराध की जांच की जानी थी, तो जांच अधिकारी से यह अपेक्षा की गई थी कि वह आरोप से संबंधित प्रत्येक पहलू पर अपनी जांच को आगे बढ़ाए। जांच अधिकारी ने उस तरीके की किसी भी प्रकार की जांच नहीं की थी।"
बेंच ने मामले में जांच अधिकारी के लापरवाही रवैये पर कहा, "इस प्रकार, प्रतिवादी 2 के तथाकथित बलात्कार के कथित घटना के संबंध में जांच के आधार पर तथ्यों को रिकॉर्ड में लाए बिना, संबंधित जांच अधिकारी ने जांच के नाम पर कागजी कार्रवाई की।"
समापन टिप्पणी में पीठ ने कहा कि वर्तमान मामले में जांच के नाम पर, जांच अधिकारी द्वारा मामले की सच्चाई को नुकसान पहुंचाते हुए केवल औपचारिकता निभाई गई है। इसलिए इसने एफआईआर को रद्द कर दिया।
केस टाइटल: अजय प्रताप बनाम यूटी ऑफ जम्मू-कश्मीर व अन्य।
साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (जेकेएल) 229