POCSO Act SC/ST Act पर हावी, सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत याचिका सुनवाई योग्य है, जहां आरोपी पर दोनों के तहत Act आरोप लगाए गए हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि जहां किसी आरोपी पर POCSO Act के साथ-साथ SC/ST Act के तहत मामला दर्ज किया गया है तो पूर्व का प्रावधान बाद वाले पर लागू होगा और ऐसे आरोपी द्वारा दायर की गई अग्रिम जमानत याचिका सुनवाई योग्य होगी।
जस्टिस शेखर कुमार यादव की पीठ ने पेशे से शिक्षक दीपक प्रकाश सिंह द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिस पर 14 वर्षीय मानसिक रूप से कमजोर लड़की से बलात्कार करने का आरोप लगाया गया है।
इसके साथ, अदालत ने सीआरपीसी की धारा 438 के तहत आरोपी द्वारा दायर की गई गिरफ्तारी पूर्व जमानत याचिका की स्थिरता के खिलाफ एजीए और शिकायतकर्ता के वकील द्वारा उठाई गई प्रारंभिक आपत्ति को खारिज कर दिया।
आपत्ति SC/ST Act की धारा 18 और 18ए के तहत निहित रोक को देखते हुए उठाई गई। इसके साथ ही सीआरपीसी की धारा 438 (6) के तहत तर्क दिया गया कि अग्रिम जमानत आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है, क्योंकि आरोपी के खिलाफ एससी एसटी अधिनियम के तहत अपराध का भी आरोप है।
उल्लेखनीय है कि जहां SC/ST Act विशेष रूप से आरोपी को अग्रिम जमानत देने पर रोक लगाता है, वहीं POCSO Act के तहत ऐसी कोई रोक मौजूद नहीं है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि अत्याचार अधिनियम की धारा 18 में प्रावधान है कि इस अधिनियम के तहत कोई आरोपी सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत याचिका दायर नहीं कर सकता है।
हालांकि, POCSO Act की धारा 42A एक गैर-विवादास्पद खंड है, जो किसी भी असंगतता के मामले में POCSO Act को किसी भी अन्य कानून से अधिक प्रभावित करता है।
राज्य के वकील के तर्क से निपटते हुए पीठ ने पृथ्वी राज चौहान बनाम भारत संघ और अन्य (2020) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया। साथ ही रिंकू बनाम यूपी राज्य (2018) के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में यह ध्यान दिया गया कि POCSO Act का प्रावधान SC/ST Act पर लागू होगा और जब भी इसके SC/ST Act के प्रावधानों के साथ तहत POCSO Act का कोई अपराध होगा तो आरोपी जमानत के लिए POCSO Act के तहत अपेक्षित प्रक्रिया का सहारा लेने का हकदार है।
दोनों फैसलों से सहमत होते हुए अदालत ने कहा कि जहां किसी आरोपी पर SC/ST Act और POCSO Act के तहत आरोप लगाया गया है तो POCSO Act के तहत विशेष अदालत के पास जमानत याचिका निर्धारित करने का अधिकार क्षेत्र होगा। इसलिए अदालत ने वर्तमान अग्रिम जमानत आवेदन की विचारणीयता के संबंध में एजीए की आपत्ति को खारिज कर दिया। ।
इसके अलावा, मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, जहां शिक्षक ने कथित तौर पर मानसिक रूप से कमजोर नाबालिग लड़की के साथ बलात्कार किया, अदालत ने समाज में शिक्षक के महत्व पर जोर देते हुए इस प्रकार टिप्पणी की:
“हमारे समाज में शिक्षक अपने स्टूडेंट के भविष्य को आकार देने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और शिक्षक के इस तरह के आचरण से निश्चित रूप से समाज के लोगों के मन में डर का माहौल पैदा होगा। ऐसे अपराधियों को बख्शा नहीं जाना चाहिए और उन्हें न्याय मिलना चाहिए। भविष्य में ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए अदालतों से सज़ा दी जाए।”
नतीजतन, इस मामले के तथ्यों और परिस्थितियों, आरोप की गंभीरता और प्रकृति, मेडिकल रिपोर्ट और सीआरपीसी की धारा 161 और 164 के तहत बयान को देखते हुए अदालत ने पाया कि सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अपनी विवेकाधीन शक्ति का प्रयोग करने के लिए कोई मामला नहीं बनता है।
अपीयरेंस
आवेदक के वकील: सीनियर वकील वीपी श्रीवास्तव की सहायता के लिए वकील अरुण कुमार त्रिपाठी मौजूद रहे
प्रतिवादी के वकील: जी.ए., बाबू लाल राम, ज्ञानेंद्र कुमार
केस टाइटल- दीपक प्रकाश सिंह @ दीपक सिंह बनाम यूपी राज्य और अन्य [आपराधिक विविध अग्रिम जमानत आवेदन सीआरपीसी की धारा 438 के तहत। क्रमांक-10246/2023]
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