वकीलों को आर्थिक सहायता देने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका, लोन/ईएमआई पर ब्याज मुक्त मोहलत देने की मांग
दिल्ली हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में दिल्ली बार काउंसिल में पंजीकृत अधिवक्ताओं को, आवासीय पतों के भेदभाव के बिना, वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए दिल्ली सरकार को दिशा निर्देश देने की मांग की गई है।
याचिका में ऐसे अधिवक्ताओं को ऋण/ ईएमआई पर ब्याज मुक्त स्थगन की मांग की गई है, जिन्हें लॉकडाउन के कारण वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है।
वकील सुनील कुमार तिवारी द्वारा दायर याचिका में निम्न / मध्यम वर्गीय अधिवक्ताओं की दुर्दशा की ओर ध्यान दिलाया गया है। याचिका में कहा गया हे कि लॉकडाउन के कारण ऐसे वकील अपने परिवारों को जीवित रखने या खिलाने में असमर्थ हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट मुकेश कुमार सिंह ने कहा है कि लॉकडाउन के कारण अधिकांश अधिवक्ताओं को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है और दिल्ली बार काउंसिल की 5000 रुपए की मदद अपर्याप्त है।
याचिका में कहा गया है,
"अनुच्छेद 21 द्वारा शामिल शब्द 'जीवन' के तहत भौतिक अस्तित्व की अवधारणा ही नहीं है, बल्कि जीवन के सभी मूल्यों भी शामिल हैं, जिसमें काम करने और आजीविका का अधिकार भी शामिल है। यह अधिकार सभी व्यक्तियों के लिए एक मौलिक अधिकार है..आजीविका और काम के अधिकार सहित जीवन का अधिकार..को कागजी नहीं बनाया जा सकता है, बल्कि इसे जीवंत और स्पंदनशील रखा जाए ताकि देश प्रभावी ढंग से समतामूलक समाज की स्थापना का संकल्पबद्ध लक्ष्य की ओर बढ़ सके।"
याचिका में आग्रह किया गया है कि जब आजीविका के सभी साधनों पर सरकार ने अंकुश लगा दिया है, तो अधिवक्ताओं को विभिन्न ऋण / क्रेडिट कार्ड, मौजूदा ईएमआई भुगतान आदि से छूट दी जानी चाहिए।
उन्होंने प्रार्थना की है कि ऋण / क्रेडिट कार्ड की भुगतान अवधि को 12 महीने या जब तक स्थिति सामान्य न हो जाए, के लिए अधिस्थगित करने का निर्देश दिया जाए।
याचिका में कहा गया है कि अधिस्थगन अवधि में ऋण, क्रेडिट कार्ड आदि पर ब्याज वसूलने से अधिस्थगन का उद्देश्य विफल हो जाता है, इसलिए, अदालत से आग्रह है कि अधिवक्ताओं के लिए ब्याज पूरी तरह माफ किया जाए या ब्याज की सेविंग बैक दर पर चार्ज किया जाए।
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