गाजियाबाद में मांस की दुकानों, बूचड़खानों के 'अवैध' संचालन के खिलाफ जनहित याचिका: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने केंद्र, यूपी सरकार से जवाब मांगा
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजियाबाद जिले में संचालित कथित अवैध मांस की दुकानों और बूचड़खानों के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका पर केंद्र, राज्य सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया है।
गाजियाबाद के पार्षद हिमांशु मित्तल ने खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006, पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960, पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, एमओईएफसीसी गाइडलाइंस और सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न आदेशों के राज्यव्यापी गैर-अनुपालन के मुद्दे पर जनहित याचिका दायर की है, जिस पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस सौमित्र दयाल सिंह की पीठ ने प्रतिवादियों से 3 मई, 2023 तक जवाब मांगा।
याचिका में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण, भारतीय पशु कल्याण बोर्ड, खाद्य सुरक्षा आयुक्त, गाजियाबाद नगर निगम, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को पक्षकार के रूप में शामिल किया गया है।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट आकाश वशिष्ठ ने कहा कि गाजियाबाद जिले में लगभग 3000 मांस की दुकानों और बूचड़खानों में से केवल 17 के पास खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा 31 के तहत लाइसेंस हैं और केवल 215 मांस की दुकानें अधिनियम के तहत खाद्य सुरक्षा विभाग के पास पंजीकृत है, और उन्हें केवल 62 सुधार नोटिस दिए गए हैं। पिछले 11 वर्षों में केवल 5 लाइसेंस रद्द किए गए हैं।
याचिकाकर्ता का यह भी मामला है कि जिले में किसी भी मांस की दुकान और बूचड़खाने को जल अधिनियम की धारा 25 के तहत स्थापित करने और संचालित करने के लिए अनिवार्य सहमति प्राप्त नहीं हुई है।
लक्ष्मी नारायण मोदी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2014) में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश, जिसमें न्यायालय ने प्रत्येक राज्य में बूचड़खानों पर एक समिति का गठन किया था, का उल्लेख करते हुए जनहित याचिका में तर्क दिया गया है कि ऐसी समिति राज्य भर में पूरी तरह से निष्क्रिय है।
केस टाइटलः हिमांशु मित्तल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 11 अन्य