कब्जे के लिए वाद - मामले में प्रतिवादी की कमजोरी स्वामित्व के सबूत के अभाव में वादी के केस को स्वचालित रूप से मजबूत नहीं करती : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना कि यदि वादी कब्जे और निषेधाज्ञा के मामले में अदालत को अपने अधिकार, स्वामित्व या हित के बारे में संतुष्ट करने में विफल रहता है तो वह उस पर कब्जा या उसके खिलाफ अनिवार्य निषेधाज्ञा नहीं मांग सकता।
जस्टिस अलका सरीन की पीठ ने प्रतिवादी-प्रतिवादियों द्वारा स्थापित मामले में आगे कमजोरी को जोड़ा कि वादी-अपीलकर्ताओं द्वारा स्थापित मामले को स्वचालित रूप से मजबूत नहीं करेगा।
अदालत मंदिर और उसके अध्यक्ष की ओर से निचली अपीलीय अदालत के आदेश के खिलाफ नियमित दूसरी अपील पर सुनवाई कर रही थी। उक्त आदेश में दीवानी अदालत द्वारा उन्हें दी गई राहत को रद्द कर दिया गया था।
वादी-अपीलकर्ता का मामला यह है कि वह उस संपत्ति का मालिक है जिसे 2012 में प्रतिवादी-प्रतिवादियों द्वारा अवैध रूप से अतिक्रमण किया गया। सूट में संपत्ति के कब्जे में वादी-अपीलकर्ताओं ने अनिवार्य निषेधाज्ञा राहत की मांग की। साथ प्रतिवादी-प्रतिवादियों के अवैध अतिक्रमण के बाद उनके द्वारा किए गए निर्माण को ध्वस्त करने के लिए निर्देश दिए जाने की मांग भी की।
अदालत ने वर्तमान मामले में देखा कि वादी-अपीलकर्ताओं के वकील अदालत को संतुष्ट करने में विफल रहे हैं कि वादी-अपीलकर्ता नंबर दो किसी भी समिति का प्रतिनिधित्व करने का दावा कैसे कर सकता है, जिससे वादी-अपीलकर्ता नंबर एक के लिए मुकदमा और वर्तमान अपील दायर की जा सके।
कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसी किसी भी समिति के अस्तित्व को साबित करने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है, जिसके आधार पर मुकदमा चलाया जा सकता। इसलिए जब वादी-अपीलकर्ता वाद भूमि में अपने अधिकार, स्वामित्व या हित को संतुष्ट करने में विफल रहे हैं तो वे उस पर कब्जा या उस मामले के लिए अनिवार्य निषेधाज्ञा की मांग नहीं कर सकते।
इसने यह भी नोट किया कि सिर्फ इसलिए कि प्रतिवादी-प्रतिवादी 75 वर्ग गज की भूमि पर अपना स्वामित्व दिखाने में सक्षम हैं, इसका मतलब यह नहीं कि वादी/अपीलकर्ता इस 75 वर्ग गज से अधिक की शेष भूमि के मालिक हैं।
कोर्ट ने कहा,
"वादी-अपीलकर्ताओं के वकील यह भी नहीं दिखा पाए कि 2014 में वाद कैसे चलने योग्य था, जब वादी/अपीलकर्ताओं के गवाहों ने स्वयं कहा कि प्रतिवादी-प्रतिवादियों के पास वाद की भूमि पिछले 25 साल से अधिक समय से है।"
उपरोक्त के मद्देनजर, अदालत ने निचली अपीलीय अदालत द्वारा पारित निर्णय और डिक्री में कोई अवैधता और दुर्बलता नहीं पाई।
तदनुसार, वर्तमान नियमित दूसरी अपील खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: मूर्ति श्री विष्णु अवतार बाबा राम देव और अन्य बनाम बलजीत सिंह और अन्य
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