'याचिकाकर्ता के संसाधनों की जांच की जानी चाहिए': इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी आदित्यनाथ के खिलाफ हेट स्पीच मामले में क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ याचिका खारिज की

Update: 2023-02-22 12:12 GMT

Allahabad High Court

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को परवेज़ परवाज़ नामक एक व्यक्ति की याचिका को खारिज कर दिया, जिन्होंने ट्रायल कोर्ट के एक फैसले, जिसमें उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ 2007 के हेट स्पीच मामले में क्लोजर रिपोर्ट के खिलाफ दायर व‌िरोध याचिका को खारिज कर दिया गया ‌था, को हाईकोर्ट में चुनौती दी ‌थी।

ज‌स्टिस दिनेश कुमार सिंह की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता (परवाज) एक व्यस्त आदमी, वह 2007 से मुकदमा लड़ रहा है। मुकदमेबाजी के लिए उसकी ओर से इस्तेमाल किए जा रहे संसाधन जांच का विषय होने चाहिए।

उल्लेखनीय है कि अदालत ने अतिरिक्त महाधिवक्ता मनीष गोयल की प्रस्तुतियों को भी अहम माना कि याचिकाकर्ता एक ढोंगी है, जिसे उन तत्वों ने स्थापित किया है, जो योगी आदित्यनाथ के विरोधी हैं , और उत्तर प्रदेश और भारत की प्रगति नहीं चाहते हैं।

कोर्ट ने कहा, "उक्त पहलू की जांच हालांकि राज्य पर निर्भर है, यह न्यायालय इस संबंध में आगे कुछ भी नहीं कहना चाहता है या कोई निर्देश नहीं देना चाहता है।"

अदालत ने कहा कि राज्य को इस मुद्दे की जांच के लिए वस्तुतः खुला छोड़ दिया गया है, यदि वह ऐसा चाहता है। इसके साथ, पीठ ने चार सप्ताह के भीतर "आर्मी वेलफेयर फंड बैटल कैजुअल्टीज" में जमा करने के लिए एक लाख रुपये के जुर्माने के साथ उनकी याचिका खारिज कर दी।


पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता ने योगी आदित्यनाथ (तत्कालीन संसद सदस्य) और अन्य पर हेट स्पीच देने का आरोप लगाया था, जिसके कारण '2007 के गोरखपुर दंगे' के हुए ‌थे। आरोपों के तहत एफआईआर दर्ज करने के लिए सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत एक आवेदन दायर किया गया था।

आईपीसी की धारा 120-बी, 153-ए, 153-बी, 295-ए, 295-बी, 143, 147, 435, 436, 452, 427, 395, 302 और 307 और 3/4 सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान की रोकथाम अधिनियम और रेलवे अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी।

उक्त आवेदन को जुलाई 2008 में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, गोरखपुर की अदालत ने खारिज कर दिया था, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। सितंबर 2008 में हाईकोर्ट ने सीजेएम कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। कोर्ट ने एफआईआर दर्ज करने का भी निर्देश दिया है और कानून के अनुसार एक नया आदेश पारित करने के लिए मामले को वापस अदालत में भेज दिया।

मामले में योगी आदित्यनाथ सहित पांच आरोपियों के खिलाफ नवंबर 2008 में एफआईआर दर्ज की गई। यह आरोप लगाया गया कि जांच निष्पक्ष तरीके से नहीं की जा रही है, याचिकाकर्ता ने विभिन्न प्रार्थनाओं की मांग करते हुए हाईकोर्ट के समक्ष एक आपराधिक रिट याचिका दायर की।

याचिका लंबित ही थी कि यूपी सरकार ने 3 मई 2017 को सीआरपीसी की धारा 196 के तहत अभियोजन की स्वीकृति देने से इनकार कर दिया था और इसलिए, मामले में अंतिम रिपोर्ट 6 मई, 2017 को प्रस्तुत की गई।

हाईकोर्ट ने फरवरी 2018 में मामले में उठाए गए कई अन्य मुद्दों का फैसला करते हुए जांच के संचालन में या निर्णय लेने की प्रक्रिया में, अभियोजन स्वीकृति से इनकार करने में कोई प्रक्रियात्मक त्रुटि नहीं पाई या आदेश में कोई अवैधता नहीं पाई, जिससे वह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने असाधारण अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए मामले में हस्तक्षेप कर सके। इसलिए, याचिका खारिज कर दी गई।

याचिका को खारिज किए जाने के खिलाफ, याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसमें तर्क धारा 196 सीआरपीसी के तहत राज्य सरकार द्वारा मंजूरी से इनकार करने तक सीमित थे।

शीर्ष अदालत ने भी पिछले साल अगस्त में यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि मामले की जांच पूरी हो चुकी है और जांच एजेंसी द्वारा अदालत में क्लोजर रिपोर्ट दायर की गई थी, जिसके खिलाफ एक विरोध याचिका दायर की गई थी, जो विचार के लिए ट्रायल कोर्ट के समक्ष लंबित थी।

जब नवंबर 2022 में, ट्रायल कोर्ट ने यह तर्क देते हुए विरोध याचिका को खारिज कर दिया कि एक बार अभियोजन के लिए मंजूरी की वैधता के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक अंतिम रूप दे दिया गया था, उसी मुद्दे को फिर से नहीं खोला जा सकता था। विरोध याचिका की अस्वीकृति को चुनौती देते हुए, याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट के समक्ष मौजूदा याचिका दायर की थी।

केस टाइटलः परवेज़ परवाज़ और अन्य बनाम स्टेट ऑफ यूपी और अन्य [APPLICATION U/S 482 No 4227 of 2023]

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