"याचिकाकर्ता का भय सरकार के आदेश से ही समाप्त हो गया": गुजरात हाईकोर्ट ने गांधी आश्रम के पुनरुद्धार के फैसले के खिलाफ तुषार गांधी की याचिका का निपटारा किया
गुजरात हाईकोर्ट ने महात्मा गांधी के महान-पोते तुषार गांधी की एक याचिका का निस्तारण किया है, जिसमें उन्होंने 1,200 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से अहमदाबाद स्थित साबरमती आश्रम के पुनरुद्धार/पुनर्विकास के गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती दी थी।
चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री की खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के सभी डर और आशंकाएं सरकार के आदेश में ही दूर हो गईं।
न्यायालय गांधी की उस याचिका पर विचार कर रहा था जिसमें स्मारक और उसके परिसर के विकास के लिए उद्योग और खान विभाग द्वारा एक शासी परिषद और एक कार्यकारी परिषद बनाने के गुजरात सरकार के 5 मार्च के प्रस्ताव को रद्द करने की मांग की गई थी, जिसमें पूरी तरह से सरकारी अधिकारी शामिल थे।
न्यायालय के समक्ष दी गई प्रस्तुतियां
याचिकाकर्ता गांधी के वकील ने प्रस्तुत किया कि चूंकि आश्रम एक ऐतिहासिक स्मारक है और इसलिए, इसे संरक्षित और सुरक्षित रखा जाना चाहिए। याचिका में निवेदन किया गया था कि प्रस्तावित विकास पूरे आश्रम के चरित्र को बदल देगा जो कि ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है।
याचिका में जैसा कि पीटीआई द्वारा रिपोर्ट किया गया था, गांधी ने यह भी तर्क दिया था कि प्रस्तावित पुनर्विकास परियोजना महात्मा गांधी की व्यक्तिगत इच्छाओं के 'बिल्कुल विपरीत' थी और परियोजना के आगे बढ़ने से मंदिर और स्मारक का क्षरण होगा।
गुजरात के महाधिवक्ता कमल त्रिवेदी ने अपनी प्रस्तुति में कहा कि सुधार योजना मौजूदा गांधी/ साबरमती आश्रम (साबरमती रिवरफ्रंट पर) का डिस्टर्ब नहीं करेगी और आश्रम के सुधार के लिए सभी प्रयास किए जाएंगे।
उन्होंने कहा कि स्टैच्यू ऑफ यूनिटी परियोजना के दौरान भी ऐसी आशंका व्यक्त की गई थी।
कोर्ट का आदेश
सरकार के आदेश को देखते हुए कोर्ट ने कहा गांधी जी के इतिहास, स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका को संरक्षित करने और गांधीजी के महान दर्शन, मूल्यों और शिक्षाओं को बढ़ावा देने और शिक्षित करने के लिए, सरकार यह परियोजना लेकर आई है।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि सरकार गांधी आश्रम के पुनरुद्धार के लिए व्यापक प्रस्ताव लेकर आई थी और उसने एक शासी परिषद का भी गठन किया था, जिसमें साबरमती आश्रम संरक्षण और स्मारक ट्रस्ट के प्रतिनिधियों सहित कई प्रतिनिधि शामिल थे।
न्यायालय ने आदेश में कहा,
"इस प्रकार उक्त आश्रम के संबंध में किसी भी आशंका को उक्त प्रतिनिधियों द्वारा गवर्निंग काउंसिल में रखा जा सकता है, इस प्रकार याचिकाकर्ता की इस आशंका को दूर किया जाता है कि निर्णय एकतरफा रूप से आश्रम के लिए हानिकारक होगा।"
कोर्ट ने आगे कहा कि सरकार ने अपने आदेश में गवर्निंग काउंसिल की भूमिका और जिम्मेदारी तय की थी। इन टिप्पणियों के साथ, न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता की आशंकाएं सरकार के आदेश के बाद समाप्त हो गईं। इसके साथ ही कोर्ट ने महाधिवक्ता की दलीलों और अंडरटेकिंग को ध्यान में रखते हुए याचिका का निस्तारण कर दिया।