''विकृति को सुधार की आवश्यकता'': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बेवफाई के आरोप पर मां को बच्चों की कस्टडी न देने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द किया
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पिछले सप्ताह ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया,जिसमें मां के खिलाफ लगाए गए बेवफाई के आरोपों पर भरोसा करते हुए उसे बच्चों की कस्टडी देने से इनकार कर दिया गया था।
न्यायमूर्ति सुधीर मित्तल की खंडपीठ ने कहा कि अभिभावक अधिनियम की धारा 17 के साथ-साथ माइनाॅरटी एक्ट की धारा 13 के मद्देनजर अभिभावक नियुक्त करते समय नाबालिग का कल्याण न्यायालय द्वारा ध्यान में रखा जाने वाला सर्वोपरि विचार है।
बेंच ने यह भी कहा कि,
''बच्चे मासूम होते हैं। उनके आदर्श विकास के लिए, यह आवश्यक है कि उनके इस भोलेपन की अवधि को पोषित और संरक्षित किया जाए। हालांकि, यह उन मामलों में एक कल्पना बनकर रह जाता है,जहां माता-पिता के बीच टकराव होता है।''
संक्षेप में तथ्य
दोनों पक्षकारों के बीच शादी 03 मई 2008 को हुई थी और एक मेल चाइल्ड अर्थात् लक्षीन का जन्म 16 जुलाई 2009 (वर्तमान में साढ़े 11 साल) में हुआ था और 13 मार्च 2017(लगभग 04 वर्ष) को एक बच्ची का जन्म हुआ था, जिसका नाम तियाना है।
16 फरवरी 2019 को माता-पिता/दोनों पक्षकार अलग हो गए और पत्नी ने आरोप लगाया कि उसे घर से बाहर निकाल दिया गया था और बच्चों को भी अपने साथ नहीं ले जाने दिया गया, जबकि पति ने आरोप लगाया कि उसने खुद परिवार को छोड़ दिया है।
पत्नी/मां ने मई 2019 में संरक्षक और वार्ड अधिनियम, 1890 की धारा 7, 10 और 25 के तहत एक याचिका दायर की और इसी मामले में धारा 12 के तहत एक आवेदन दायर करके अंतरिम कस्टडी दिए जाने की मांग की।
05 फरवरी, 2020 को दिए गए आदेश के तहत इस आवेदन को रद्द कर दिया गया था। हालांकि उसे बच्चों से मिलने की अनुमति दे दी गई थी।
एमिकस क्यूरिया की रिपोर्ट
कोर्ट ने एमिकस क्यूरी को नियुक्त किया था, जिन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि बच्चे अपनी मां को याद करते हैं और लक्षीन उम्र में बड़ा है,इसलिए उसे समझा-बुझाकर मां के खिलाफ कर दिया गया है। उसके बावजूद भी वह अपनी मां से मिलने के लिए उत्सुक था और उसे याद कर रहा था।
कोर्ट का अवलोकन
न्यायालय ने कहा कि आरोप और प्रत्यारोप, दोनों पक्षों द्वारा लगाए गए थे। संरक्षकता के लिए दायर अपनी याचिका में, याचिकाकर्ता-पत्नी/ मां ने कहा था कि प्रतिवादी-पति/पिता एक विकृत/पथभ्रष्ट व्यक्ति है।
प्रतिवादी द्वारा दायर किए गए जवाब में, उन्होंने दावा किया कि याचिकाकर्ता-पत्नी/ माँ के एक से अधिक लोगों से यौन संबंध हैं और बच्चों के पालन-पोषण के लिए उसके पास आय का कोई साधन नहीं है।
हालांकि, न्यायालय ने कहा कि दोनों पक्षों द्वारा लगाए गए आरोपों को वर्तमान स्तर पर ध्यान में नहीं रखा जा सकता क्योंकि वे साक्ष्यों के माध्यम से साबित नहीं हुए हैं।
इसके अलावा, अदालत ने कहा,
'' ट्रायल कोर्ट ने अपने आदेश को पारित करते हुए सही अवलोकन किया था, लेकिन जाहिर तौर पर कोर्ट माँ के खिलाफ लगाए गए आरोपों से प्रभावित हुई है, जो कि एक विकृति है और उसमें सुधार की आवश्यकता है।''
इसके अलावा, माँ की योग्यता को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने कहा कि वह एक अच्छी तरह से शिक्षित और योग्य महिला है और उसके पास अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए साधन हैं।
इसके अलावा, एमिकस क्यूरिया की विस्तृत रिपोर्ट के मद्देनजर, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि बच्चों के सर्वोत्तम हित उनकी माँ की कस्टडी में निहित है।
नतीजतन, कोर्ट ने निर्देश दिया,
''तियाना की उम्र 05 वर्ष से कम है और माइनाॅरटी एक्ट की धारा 6 (ए) के मद्देनजर, उसका सबसे ज्यादा कल्याण उसकी मां की कस्टडी में है। लक्षीन को उसकी बहन से अलग नहीं किया जा सकता है क्योंकि इससे दोनों बच्चे प्रभावित होंगे।''
इस प्रकार, ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित किए गए आदेश को रद्द कर दिया गया और यह निर्देश दिया गया कि नाबालिग बच्चों की कस्टडी सात दिन के भीतर याचिकाकर्ता को दे दी जाए।
प्रतिवादी को याचिकाकर्ता के निवास पर और उसकी उपस्थिति में हर महीने के पहले और तीसरे शनिवार को दोपहर 3.00 बजे से शाम 5.00 बजे के बीच बच्चों से मुलाकात के अधिकार दिए गए हैं।
केस का शीर्षक -मेघा सूद बनाम अमित सूद [Civil Revision No.1402 of 2020 (O&M)]
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