'बार-बार निषेधाज्ञा आदेश का उल्लंघन करने पर 5 लाख रुपये का भुगतान करें या सिविल जेल का सामना करें': दिल्ली हाईकोर्ट ने रमाडा के ट्रेडमार्क उल्लंघन मामले में होटल को आदेश दिया
दिल्ली हाईकोर्ट ने अंतरराष्ट्रीय आतिथ्य कंपनी रमाडा द्वारा दायर ट्रेडमार्क उल्लंघन मुकदमे में इसके खिलाफ पारित निषेधाज्ञा आदेश के बार-बार उल्लंघन और "अपमानजनक अवज्ञा" के 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। हाईकोर्ट ने साथ ही होटल को जुर्माने की 5 लाख रुपये की राशि इसकी रजिस्ट्री में जमा करेने का निर्देश दिया।
जस्टिस सी हरि शंकर ने कहा कि यदि राशि जमा नहीं की जाती है तो ला रमाडा वर्ल्ड रिज़ॉर्ट एंड स्पा के निदेशक कुमार संभव को एक सप्ताह की अवधि के लिए सिविल जेल में कैद की सजा भुगतनी होगी।
पीठ ने टिप्पणी की,
“अदालतों द्वारा पारित निषेधाज्ञा आदेशों को बेकार कागज के रूप में नहीं माना जा सकता। प्रतिवादी (होटल और निदेशक) जाहिरा तौर पर इस न्यायालय द्वारा दिए गए प्रत्येक निषेधाज्ञा का अनुपालन करके अगले ही दिन या उसके अगले दिन अवज्ञा के एक और कार्य के साथ न्यायालय पर छींटाकशी कर रहे हैं।''
रामाडा इंटरनेशनल द्वारा प्रतिवादी होटल और उसके निदेशक के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया। इसमें आरोप लगाया गया कि उन्होंने 1991 से होटल के पक्ष में रजिस्टर्ड "रमाडा" ट्रेडमार्क का उल्लंघन किया।
रमाडा प्रतिवादियों द्वारा "रामडा" ट्रेडमार्क का उपयोग करके संचालित विभिन्न वेबसाइटों से भी व्यथित है। प्रथम दृष्टया मामला पाते हुए अदालत ने 24 सितंबर, 2021 को प्रतिवादियों को प्रश्न में ट्रेडमार्क का उपयोग करने से रोक दिया। उन्हें तुरंत कंपनी का नाम यानी ला-रमाडा वर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड बदलने के लिए कदम उठाने का भी निर्देश दिया गया।
पिछले साल सितंबर में अदालत ने प्रतिवादी-होटल के निदेशक द्वारा दायर आवेदन खारिज कर दिया, जिसमें उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट के रूप में रजिस्ट्री के साथ 10 लाख रुपये रुपये जमा करने के निर्देश पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
जस्टिस शंकर ने यह देखते हुए कि प्रतिवादियों ने निषेधाज्ञा आदेश का खुलेआम उल्लंघन किया, कहा,
"इस प्रकार, वादी (रमाडा इंटरनेशनल) को इस न्यायालय के समक्ष आवेदन के बाद आवेदन दायर करने के लिए प्रेरित किया गया। साथ ही न्यायालय को बार-बार निषेधाज्ञा लगानी पड़ी, जैसे कि उसके आदेश मूल्यवान है।"
अदालत ने कहा कि निषेधाज्ञा आदेश का उल्लंघन करने वाले अपराधी व्यक्ति की संपत्तियों को कैद करना या कुर्क करना दो सुधारात्मक कार्रवाइयां हैं। हालांकि, इसमें कहा गया कि कारावास, जो किसी व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता से समझौता करता है, उसको अंतिम उपाय के रूप में अपनाया जाना चाहिए और इसे मौद्रिक जमा के निर्देशों के साथ प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
जस्टिस शंकर ने आदेश दिया,
“न्यायालय प्रतिवादी को इस न्यायालय द्वारा पारित आदेश की जानबूझकर और अपमानजनक अवज्ञा करने के लिए सजा के माध्यम से आज से चार सप्ताह की अवधि के भीतर इस न्यायालय की रजिस्ट्री में 5 लाख रुपये की राशि जमा करने का निर्देश देता है। उक्त राशि जमा करने में विफलता की स्थिति में प्रतिवादी 2 को एक सप्ताह की अवधि के लिए सिविल जेल में कैद की सजा भुगतनी होगी।
केस टाइटल: रमाडा इंटरनेशनल, इंक बनाम ला-रामाडा वर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड और अन्य।
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