अनुशासनात्मक प्राधिकारी आरोपी-कर्मचारी के खिलाफ समानांतर आपराधिक कार्यवाही में प्रस्तुत दस्तावेजों पर भरोसा नहीं कर सकता: पटना हाईकोर्ट
पटना हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि विभागीय जांच के उद्देश्य से अनुशासनात्मक प्राधिकारी (Disciplinary Authority) आरोपी-कर्मचारी के खिलाफ समानांतर आपराधिक कार्यवाही के दौरान बाहरी दस्तावेजों पर भरोसा नहीं कर सकता।
जस्टिस पीबी बजंथरी ने कहा,
"जांच प्राधिकरण या अनुशासनात्मक प्राधिकरण द्वारा बाहरी दस्तावेज़ पर विचार नहीं किया जा सकता है। सीआरपीसी की धारा 164 के तहत बयान पर भरोसा करने में अनुशासनात्मक प्राधिकरण का निर्णय बाहरी है और यह विनियम, 1976 के विनियम 7 के संदर्भ में नहीं है।"
पीठ केनरा बैंक अधिकारी कर्मचारी (अनुशासन और अपील) विनियम, 1976 का जिक्र कर रही थी।
बोकारो में बैंक ब्रांच ऑफिस में प्रबंधक के रूप में कार्यरत याचिकाकर्ता पर वर्ष 2003 के लिए सीबीएससी प्री-मेडिकल प्रवेश परीक्षा के प्रश्न पत्र लीक करने का आरोप लगाया गया है।
उपरोक्त आरोपों के आधार पर उसे अनुशासनात्मक और आपराधिक की समानांतर कार्यवाही के अधीन किया गया।
याचिकाकर्ता ने अनुशासनात्मक प्राधिकारी से अनुरोध किया कि आपराधिक मामला समाप्त होने तक विभागीय जांच को स्थगित कर दिया जाए। इस अनुरोध को अस्वीकार कर दिया गया और प्राधिकरण ने आपराधिक मुकदमे के दौरान सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए गए बयानों पर भरोसा करते हुए सेवा से बर्खास्तगी का जुर्माना लगाया।
इस पृष्ठभूमि में हाईकोर्ट ने कहा कि जहां तक बाहरी दस्तावेजों पर विचार करने का संबंध है, याचिकाकर्ता का तर्क स्वीकार किया जाता है। हालांकि, अनुशासनात्मक कार्यवाही को रोकने के तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट ने यह कहा,
"किसी नियोक्ता द्वारा शुरू की गई कोई भी समानांतर कार्यवाही न तो अनुशासनात्मक कार्यवाही और न ही आपराधिक कार्यवाही को इस कारण से रोका जा सकता है, जो किसी कर्मचारी/ अधिकारी के खिलाफ कथित कदाचार और आचरण नियमों के उल्लंघन के संदर्भ में अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई है। जहां तक आपराधिक कार्यवाही का संबंध है, यह भारतीय दंड संहिता या किसी अन्य विशेष कानून के तहत अपराध से संबंधित है।"
कोर्ट ने मैसूर राज्य बनाम के मांचे गौड़ा, एआईआर 1964 एससी 506 मामले में संविधान पीठ के फैसले पर भरोसा किया, जहां यह माना गया कि जांच प्राधिकारी या अनुशासनात्मक प्राधिकारी द्वारा बाहरी दस्तावेज पर विचार नहीं किया जा सकता।
उपरोक्त के मद्देनजर, न्यायालय की राय थी कि याचिकाकर्ता ने प्रथम दृष्टया मामला बनाया ताकि आक्षेपित आदेश में हस्तक्षेप किया जा सके।
कोर्ट ने यह भी कहा कि वर्तमान याचिका के लंबित रहने के दौरान, याचिकाकर्ता ने सेवानिवृत्ति की आयु पार कर ली है। इसलिए उसे बहाल करने का सवाल ही उचित नहीं है।
केस टाइटल: अजय कुमार सिंह बनाम केनरा बैंक और अन्य।
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