''यात्रियों को अपर्याप्त सुरक्षा के कारण कष्ट झेलना पड़ा'',मद्रास हाईकोर्ट ने भीड़ के कारण ट्रेन से गिरकर मरने वाली महिला के परिवार को 8 लाख मुआवजा दिया
ट्रेनों ( विशेषतौर ईएमयू ट्रेनों) में पर्याप्त सुरक्षा उपाय प्रदान करने में विफल रहने के लिए रेलवे सुरक्षा अधिकारियों को चेतावनी देते हुए,मद्रास हाईकोर्ट ने हाल ही में वर्ष 2014 में ट्रेन से गिरकर मरने वाली एक महिला के परिवार को 8 लाख रूपए (6 प्रतिशत ब्याज सहित) मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह महिला एक ईएमयू में यात्रा कर रही थी और ट्रेन में भीड़ व अपर्याप्त सुरक्षा के कारण वह चलती ट्रेन से गिरकर मर गई थी।
यह आदेश देते हुए न्यायमूर्ति एसएम सुब्रमण्यन की खंडपीठ ने रेलवे न्यायाधिकरण के आदेश को खारिज कर दिया। रेलवे न्यायाधिकरण ने वर्ष 2016 में इस परिवार के सदस्यों को मुआवजे देने से इनकार कर दिया था। न्यायाधिकरण का कहना था कि वह एक प्रमाणिक यात्री नहीं थी और उसने लापरवाही बरती थी।
खंडपीठ ने माना है कि,
''केवल एक आपराधिक कृत्य की स्थिति में या एक इरादे के साथ आत्म-चोट पहुंचाने पर ही इसे रेलवे अधिनियम की धारा 124 (ए) के तहत पीड़ित के खिलाफ माना जा सकता है। अन्य सभी परिस्थितियों में, केवल लापरवाही या असावधानी मुआवजा देने से इनकार करने का आधार नहीं हो सकती है।''
संक्षेप में तथ्य
आवेदन में इस आधार पर मुआवजा मांगा गया था कि मृतक, डिंडीगुल जिले के कामनपट्टी गांव की निवासी थी और वह चेन्नई बीच रेलवे स्टेशन की ओर जाने वाली ट्रेन में यात्रा कर रही थी। इसी समय भीड़भाड़, स्पीड, झटके और ट्रेन के एक जोल्ट के कारण वह कोडम्बक्कम और नुंगमबक्कम रेलवे स्टेशनों के बीच चलती ट्रेन से गिर गई,जिस कारण उसके सिर के पिछले हिस्से पर गंभीर चोट लगी और घटना स्थल पर ही उसकी मौत हो गई।
यह दावा किया गया था कि यह एक अप्रिय घटना थी और मृतक ने डिंडीगुल से चेन्नई एग्मोर की यात्रा के लिए एक द्वितीय श्रेणी का टिकट खरीदा था,परंतु वह टिकट दुर्घटना के समय कहीं खो गया और रेलवे पुलिस उसको खोज नहीं पाई।
प्रतिवादी रेलवे के लिए उपस्थित होने वाले वकील ने प्रस्तुत किया कि दुर्घटना मृतक की ओर से लापरवाही के कारण हुई और उसके पास एक वैध टिकट भी नहीं था।
कोर्ट का अवलोकन
अदालत ने कहा कि ट्रेन में ज्यादा भीड़ होने के कारण यह अप्रिय घटना हुई और मृतक को आई चोटों के कारण हुए रक्तस्राव के कारण उसकी मृत्यु हो गई।
डीआरएम की रिपोर्ट से भी यह भी पता चला है कि मृतक लगभग 38 साल की थी और एक अज्ञात ईएमयू ट्रेन से नीचे गिर गई थी और मौके पर ही उसकी मौत हो गई थी। वह घटना के समय एमकेके और एनबीके रेलवे स्टेशनों के बीच एक अज्ञात ईएमयू ट्रेन में यात्रा कर रही थी।
रेलवे की इस दलील के जवाब में कि वह खुद लापरवाह थी, कोर्ट ने कहा,
''ड्यूटी खत्म होने के बाद, बड़ी संख्या में महिलाओं को एक उचित यात्रा समय के भीतर अपने घरों तक पहुंचने के लिए ईएमयू ट्रेनों में सवार होने के लिए मजबूर होना पड़ता है ... इस दबाव के साथ, बड़ी संख्या में महिलाएं/यात्रियों को ईएमयू ट्रेनों में खड़े होकर यात्रा करनी पड़ती है।''
न्यायालय ने आगे यह भी कहा कि,
''पर्याप्त सुरक्षा उपाय,विशेषतौर पर ईएमयू ट्रेनों में प्रदान नहीं किए जाते हैं। रेलवे अधिकारी यात्रियों को सुरक्षा उपाय प्रदान करने के लिए बाध्य हैं, विशेष रूप से, कामकाजी श्रेणी के यात्रियों, जो प्रतिदिन यात्रा करते हैं और काम से वापिस लौटते समय, वे या तो थक गए होते हैं या उन्हें अपने घर जल्दी पहुंचने की जल्दी होती है।''
इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि ईएमयू ट्रेनों में सुरक्षा उपायों को बेहतर बनाने के लिए बड़ी संख्या में होने वाली अप्रिय घटनाएं भी रेलवे अधिकारियों को कोई सबक नहीं दे रही हैं।
अदालत ने कहा, ''यह बताना दर्दनाक है कि भारतीय रेलवे के उच्च अधिकारियों को करदाताओं के पैसे से बहुत ही अच्छी तनख्वाह मिल रही है। इसलिए, उनसे उम्मीद की जाती है कि वे उच्च जिम्मेदारी और जवाबदेही के साथ अपने सार्वजनिक कर्तव्यों का पालन करेंगे।''
गौरतलब है कि कोर्ट ने भी कहा कि,
''उच्च अधिकारियों का आचरण 'राष्ट्र पहले' होना चाहिए। उच्च अधिकारी रेलवे में भी बहुत परिष्कृत और शानदार सुविधाओं का आनंद ले रहे हैं ... बड़ी संख्या में यात्री ट्रेनों में में न्यूनतम सुविधाएं और पर्याप्त सुरक्षा पाने के लिए तरस रहे हैं।''
अंत में, न्यायालय ने कहा कि पीड़ितों को मुआवजे देने से इनकार करने के लिए केवल लापरवाही या असावधानी एक आधार नहीं हो सकती है।
महत्वपूर्ण रूप से, कोर्ट ने कहा,
''ईएमयू ट्रेनों और अन्य ट्रेनों में यात्रा करने वाले यात्रियों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान न करके रेलवे भी इस तरह की लापरवाही के लिए समान रूप से भागीदार है। इस प्रकार, अंशदायी लापरवाही भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।''
केस शीर्षक - जे शिवकुमार बनाम भारत संघ,सी.एम.ए नंबर 1315/2016
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