पक्षकार अदालत में अपने वकील द्वारा दिए गए बयानों से बंधे हैं: पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट

Update: 2022-05-24 07:30 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने दोहराया कि पक्षकार अपने वकील द्वारा अदालत में दिए गए बयानों से बंधे हैं। 'त्रुटि स्पष्टीकरण' के आधार पर आदेश के खिलाफ दायर पुनर्विचार आवेदन को अस्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने उक्त टिप्पणी की।

जस्टिस एच.एस. मदान ने माना कि आवेदक के वकील रिकॉर्ड में स्पष्ट किसी भी त्रुटि को इंगित करने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए आवेदक पहले के वकील द्वारा दिए गए बयान से पीछे हटने और योग्यता के आधार पर मामले पर फिर से बहस करने की कोशिश की कानून में अनुमति नहीं है।

यह नोट किया गया कि वर्तमान पुनर्विचार आवेदन वकील द्वारा दायर किया गया है, जो न तो फाइलिंग वकील था और न ही बहस करने वाला वकील था। इसके अलावा वह न ही आक्षेपित आदेश पारित करने के समय मौजूद था।

अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के वकील द्वारा पुनर्विचार याचिका को गुणदोष के आधार पर नहीं दबाया गया और वकील द्वारा यह कहा गया कि वह 12 दिसंबर, 2021 को बेदखली के आदेश के खिलाफ अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष लंबित अपील को वापस ले लेगा। इसलिए, इन पारस्परिक रूप से सहमत शर्तों पर पुनर्विचार याचिका का निपटारा किया गया।

इन परिस्थितियों पर विचार करने के बाद अदालत ने माना कि आवेदक के वकील द्वारा पहले के वकील से ली गई कोई आपत्ति पर्याप्त नहीं होगी, क्योंकि याचिका का निपटारा वकील द्वारा दिए गए बयानों पर किया गया था। इसके लिए उक्त तिथि को क्या हुआ था, यह पूछने में सक्षम केवल वह वकील होगा, जिसने 27.04.2022 को बयान दिया था।

आवेदक के वकील का तर्क है कि उसने पहले वकील से एनओसी नहीं ली है। हालाँकि, यह पर्याप्त नहीं होगा, क्योंकि याचिका का निपटारा वकील द्वारा दिए गए बयानों पर किया गया था और 27.04.2022 को बयान देने वाले वकील के अलावा कोई भी यह कहने की स्थिति में नहीं होगा कि उक्त तारीख को क्या हुआ था। .

कोर्ट ने ओम प्रकाश बनाम सुरेश कुमार [2020(13) एससीसी 188] और टी.एन. बिजली बोर्ड और अन्य बनाम एन राजू रेडियार और अन्य [1997 (9) एससीसी 736] मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा किया। इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने अपने वकीलों को बदलने और पुनर्विचार याचिका दायर करने के पक्षों के आचरण को बार-बार बहिष्कृत किया है।

न्यायालय ने आगे निष्कर्ष निकाला कि पक्षकार न्यायालय में अपने वकील द्वारा दिए गए बयानों से बाध्य हैं।

पक्षकार न्यायालय में अपने वकील द्वारा दिए गए बयानों से बाध्य हैं। यह आवेदक का मामला नहीं है कि वकील बयान देने के लिए अधिकृत नहीं है। वास्तव में पुनर्विचार का एकमात्र आधार यह है कि रिकॉर्ड में स्पष्ट त्रुटि है, क्योंकि वास्तविक तथ्य इस न्यायालय के समक्ष नहीं रखे गए है।

अदालत ने 20,000/- रुपये के जुर्माना लगाते हुए आवेदन को खारिज कर दिया। जुर्माना की राशि चंडीगढ़ लीगल एड सोसाइटी के पास जमा की जाएगी।

केस टाइटल : अंकुश रावत बनाम गुरु नानक एजुकेशन ट्रस्ट और अन्य

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