'पिछले साल मुहर्रम के जुलूस में भागीदारी का इस साल के जुलूस के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है': मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने डिटेंश आदेश रद्द किया
यह देखते हुए कि राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत एक निरोध आदेश (Detention Order) को ठोस सामग्री के आधार पर पारित किया जाना है, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने मंगलवार (06 अक्टूबर) को एक व्यक्ति को डिटेंशन से मुक्त कर दिया, जिसे पिछले वर्ष मुहर्रम के जुलूस में भाग लेने के चलते, इस साल डिटेंशन आदेश के तहत हिरासत में रखा गया था।
न्यायमूर्ति एससी शर्मा एवं न्यायमूर्ति शैलेंद्र शुक्ला की खंडपीठ ने यह आदेश हैबीस कॉर्पस रिट याचिका (अन्य रिट याचिकाओं के साथ) के रूप में दायर याचिका में पारित किया, जो कि डिटेंशन आदेश (दिनांक 04/09/2020), जिसके अंतर्गत याचिकाकर्ता के भाई हकीम (उम्र 19 वर्ष) को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत हिरासत में लिया गया था, को रद्द करने की मांग के साथ दायर की गयी थी।
वर्तमान मामलों में शामिल विवाद में समानता के कारण, रिट याचिकाओं को समान रूप से सुना गया और एक सामान्य आदेश द्वारा, उन्हें न्यायालय द्वारा निपटाया गया।
रिट याचिका संख्या 14215/2020 के तथ्य इस प्रकार हैं:
विशेष रूप से, उसे (याचिकाकर्ता के भाई हकीम) को पुलिस ने 23-24 /08/2020 (आधी रात) को हिरासत में लिया और उसके खिलाफ आर्म्स एक्ट की धारा 25 के तहत मामला दर्ज किया गया। उसे उपरोक्त मामले में 11/09/2020 को जमानत भी दी गई है।
याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि जब उसका भाई आर्म्स एक्ट की धारा 25 के तहत अपराध के संबंध में जेल में था, तो उसे 04/09/2020 को सूचित किया गया था कि जिला मजिस्ट्रेट ने, राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980 की धारा 3 के तहत प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में, उसे डिटेन करने का आदेश पारित किया है।
याचिकाकर्ता के लिए पेश वकील का तर्क यह था कि डिटेंशन का आदेश एक गैर-संवेदनशील तरीके से पारित किया गया था।
याचिकाकर्ता का भाई हार्ड-कोर अपराधी नहीं है। आर्म्स एक्ट की धारा 25 के तहत केवल एक मामला दर्ज करके वह जब जेल में था, तो नजरबंदी का आदेश पारित किया गया।
याचिकाकर्ता ने न्यायालय के समक्ष यह भी तर्क दिया कि निरोध/डिटेंशन के आदेश को बारह दिनों के भीतर अनुमोदित करने की आवश्यकता थी और ऐसा नहीं किया गया है। यह कहा गया है कि केवल इसलिए कि उन्होंने मोहर्रम में भाग लिया था, निरोध आदेश पारित किया गया था।
न्यायालय का अवलोकन
कोर्ट ने टिप्पणी की,
"यह अदालत वास्तव में यह समझने में विफल है कि डिटेंशन आदेश, जोकि एक Rojnamcha प्रविष्टि दिनांक 30/08/2020 पर आधारित है, जिसमें पुलिस द्वारा यह कहा गया था कि याचिकाकर्ता के भाई ने पिछले साल मोहर्रम के जुलूस में भाग लिया है, जो तलवारें लेकर चल रहा है, वह व्यक्ति कैसे कानून और व्यवस्था के लिए समस्या हो सकता है?"
न्यायालय ने आगे कहा,
"पिछले साल मोहर्रम जुलूस में भागीदारी, अगर इसे सही भी मान लिया जाए, तो भी उसकी इस साल होने वाले जुलूस के साथ कोई प्रासंगिकता नहीं है।"
इसके अलावा, अदालत ने इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि एकमात्र मामला जिसमें याचिकाकर्ता पहले से ही जेल में था, हिरासत का आदेश पारित किया गया था।
न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी जिला मजिस्ट्रेट की कार्रवाई, ठोस सामग्री पर आधारित नहीं थी और इसलिए उसे अदालत द्वारा रद्द कर दिया गया।
इसके अलावा, अदालत ने पाया कि यदि याचिकाकर्ता के भाई और अन्य व्यक्तियों ने पिछले साल तलवारों के साथ एक जुलूस निकाला, तो राज्य सरकार ने पिछले साल के रोज़नामचा को क्यों नहीं दायर किया?
ऐसा प्रतीत होता है, अदालत ने आगे टिप्पणी की, कि केवल राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत याचिकाकर्ता के भाई को हिरासत में लेने के लिए, इस न्यायालय के समक्ष ऐसा गलत बयान दिया जा रहा था और इसलिए, याचिका को अनुमति दी जानी चाहिए।
अन्य समान मामलों में भी, हिरासत के आदेश को बारह दिनों के भीतर मंजूरी नहीं दी गई थी और इसी तरह का बयान दिया गया था कि हिरासत में लिए गए लोगों ने मोहर्रम पर पिछले साल तलवारें लेकर जुलूस निकाला था। अन्य समान याचिकाओं को भी रु 10,000/- की लागत के साथ अनुमति दी गई।
न्यायालय ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता के भाई और अन्य व्यक्तियों को, जिन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 के तहत पारित आदेश के आधार पर हिरासत में लिया गया था, को रिहा किया जाए।
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