'परिवार के अन्‍य सदस्य मां-बाप की जगह नहीं ले सकते': पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने 3 साल के बच्‍चे की अंतरिम कस्टडी को मां को बरकरार रखी; कहा-‌पिता पर्याप्त समय नहीं दे सकते

Update: 2023-01-06 07:24 GMT

Punjab & Haryana High Court

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक फैसले में माना कि नाबालिग बेटे की कस्टडी मां को सौंपना उचित है। हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि जब नाबालिग की देखभाल की बात आती है तो परिवार के अन्य सदस्य कभी भी पिता या मां की जगह नहीं ले सकते।

दरअसल पिता ने दलील दी थी कि बच्चे की देखभाल के लिए उसके दादा-दादी और अन्य सदस्य मौजूद हैं। कोर्ट ने उक्‍त दलील पर यह टिप्‍पणी की ‌थी।

पीठ ने कहा कि चूंकि पिता निजी क्षेत्र में काम करता है। अपने व्यवसाय के सिलसिले में उसे घर से बाहर रहना पड़ता है। इस‌लिए उसके पास बच्चे की देखभाल के लिए पर्याप्त समय नहीं हो सकता है। जहां तक बच्चे की देखभाल का संबंध है, दोनों पक्षों के परिवारों के अन्य सदस्य पिता या मां की जगह नहीं ले सकते हैं। प्रतिवादी अपने माता-पिता के साथ रह रही है और वह बच्चे की देखभाल के लिए पर्याप्त समय दे सकती है।

मामला

दंपति की शादी 2018 में हुई थी। दिसंबर 2020 से दोनों अलग रहने लगे। मार्च 2020 में उन्हें एक बेटा पैदा हुआ, जिसके लिए बाद में संरक्षकता की याचिका दायर की गई।

कस्टडी मामले के लंबित रहने के दरमियान फैमिली कोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित किया था, जिसे मूल रूप से वर्तमान प्रतिवादी-मां ने हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6 के तहत शुरू किया था, जिसमें नाबालिग बेटे की कस्टडी की मांग की गई थी। पिता को मुलाकात का अधिकार दिया गया था।

पिछले साल फैमिली कोर्ट के आदेश के खिलाफ बच्चे के पिता ने कोर्ट को बताया कि उसकी पत्नी के मन में बच्चे के लिए कोई प्यार और स्नेह नहीं है और इसलिए वह बच्चे की कस्टडी के लिए उपयुक्त नहीं है।

कस्टडी के मामलों में प्रचलित सिद्धांतों को दोहराते हुए जस्टिस अर्चना पुरी ने कहा,

"कस्टडी की लड़ाई में प्रत्येक मामले में विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लेना होता है, जिसमें अंतर्निहित सर्वोपरि विचार नाबालिग बच्चे का कल्याण होता है। कस्टडी विवाद में मानवीय मुद्दे शामिल होते हैं, जो हमेशा जटिल होते हैं। अंतरिम कस्टडी के सवाल का फैसला करने के लिए भी कोई सीधा-सीधा फॉर्मूला नहीं हो सकता है।"

कोर्ट ने कहा कि हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप एक्ट में प्रावधान है कि जिस नाबालिग ने 5 साल की उम्र पूरी नहीं की है, उसकी कस्टडी आमतौर पर मां के पास होगी। कोर्ट ने कहा कि कानून पिता पर यह साबित करने का बोझ डालता है कि मां की हिरासत में बच्‍चे को रखना, उसके लिए कल्याणकारी नहीं है।

कोर्ट ने आगे कहा कि ऐसा कोई भी तथ्य रिकॉर्ड में नहीं है जो यह बताता हो कि मां बच्चे की कस्टडी के लिए उपयुक्त नहीं है।

अदालत ने कहा कि अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश ने स्थिति की मांग के अनुसार उचित रूप से मां को अंतरिम कस्टडी दी है और साथ ही यह भी सुनिश्चित किया है कि नाबालिग बच्चे का पिता के साथ अच्छा संपर्क है और इसलिए, मुलाकात का अधिकार दिया गया है।

केस टाइटल: राहुल बनाम शालिनी

उद्धरण: CR-2579-2022 (O&M)

कोरम: जस्टिस अर्चना पुरी

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