जारी रहेगा जगन्नाथ मंदिर की भूमि से बेदखली अभियान, हाईकोर्ट ने कहा- लंबे समय से कब्जा या आधार कार्ड केवल निवास दर्शाते हैं, स्वामित्व नहीं
उड़ीसा हाईकोर्ट ने कहा कि भगवान जगन्नाथ की 'अमृतमनोही भूमि' का निपटान अवैध कब्जाधारियों/अतिक्रमणकारियों के पक्ष में केवल इसलिए नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह दशकों से उनके कब्जे में है और उनके पास उक्त भूमि के साथ सरकारी पहचान प्रमाण भी हैं।
बेदखली नोटिस को चुनौती देने और भूमि के निपटान के लिए प्रस्तुत अभ्यावेदन अस्वीकार करते हुए जस्टिस डॉ. संजीव कुमार पाणिग्रही की एकल पीठ ने कहा -
“याचिकाकर्ताओं का यह तर्क कि पचास वर्षों से अधिक समय से कब्जा, मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड और बिजली बिल जैसे पहचान दस्तावेजों के साथ निपटान का अधिकार प्रदान करता है, गलत है। ऐसे दस्तावेज अधिक से अधिक निवास को दर्शा सकते हैं, लेकिन कानूनी स्वामित्व या अधिकृत कब्जे में तब्दील नहीं होते।”
यह मामला 12 जनवरी, 2024 को अतिरिक्त तहसीलदार, कटक सदर द्वारा जारी बेदखली नोटिस से उत्पन्न हुआ था। इसमें आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्ताओं ने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण किया। याचिकाकर्ता मज़दूर हैं और अपने परिवारों के साथ पचास वर्षों से अधिक समय से उक्त भूमि पर रह रहे हैं, जो निश्चित रूप से भगवान जगन्नाथ की 'अमृतमनोही संपत्ति' का हिस्सा है।
बेदखली नोटिस प्राप्त होने पर याचिकाकर्ताओं ने पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन के मुख्य प्रशासक के समक्ष दिनांक 01.02.2024 को व्यक्तिगत अभ्यावेदन-सह-प्रस्ताव प्रस्तुत किए, जिसमें अनुरोध किया गया कि भूमि के निपटान हेतु उनके मामलों पर विचार किया जाए। उन्होंने संशोधित श्री जगन्नाथ महाप्रभु बिजे पुरींका ज़मीनी बिकरी संबंधीय समान नीति ('एकरूप नीति') के अनुसार प्राधिकरण द्वारा निर्धारित कीमत पर भूमि खरीदने की इच्छा भी व्यक्त की।
हालांकि, इन अभ्यावेदनों को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि याचिकाकर्ताओं ने बिना किसी अधिकार के उक्त भूमि पर कब्जा कर लिया था। इसलिए कटक सदर के अतिरिक्त तहसीलदार से अनुरोध किया गया कि वे कब्जाई गई भूमि को मुक्त कराने के लिए कदम उठाएं और समान नीति के प्रावधान उन पर लागू नहीं होते।
याचिकाकर्ताओं की दलील का मुख्य बिंदु यह था कि उड़ीसा भूमि अतिक्रमण निवारण अधिनियम, 1972 (OPLE Act) के तहत तहसीलदार द्वारा जारी बेदखली नोटिस कानून की नज़र में मान्य नहीं है, क्योंकि यह भूमि भगवान जगन्नाथ की है, न कि सरकार की। दूसरे, वे दशकों से उक्त भूमि पर लगातार काबिज हैं और संपत्ति कर का भुगतान कर रहे हैं। साथ ही उनके पास एक ही पते वाले पहचान पत्र भी हैं, जिसके लिए समान नीति के तहत भूमि का निपटान उनके पक्ष में किया जाना चाहिए।
दोनों पक्षकारों की दलीलें सुनने के बाद जस्टिस पाणिग्रही ने इस मुद्दे को विचारार्थ प्रस्तुत किया कि क्या याचिकाकर्ता अपने लंबे निवास और सहायक दस्तावेजों के आधार पर समान नीति के तहत विवादित भूमि के निपटान का दावा कर सकते हैं, या क्या उनका कब्ज़ा मंदिर की संपत्ति पर केवल अतिक्रमण है, जिसके लिए ओपीएलई अधिनियम के तहत बेदखली उचित है।
यह सच है कि विवादित भूमि श्री जगन्नाथ महाप्रभु बिजे, पुरी के नाम पर 'अमृतमनोही' दर्ज है। श्री जगन्नाथ मंदिर अधिनियम, 1955 की धारा 16-ए के अनुसार, न्यायालय ने स्पष्ट किया कि OPLE Act के प्रावधान देवता से संबंधित भूमि पर अनधिकृत कब्जे पर इस प्रकार लागू होते हैं मानो वह सरकार की संपत्ति हो। इस प्रकार, न्यायालय ने यह माना कि कटक सदर के अतिरिक्त तहसीलदार OPLE Act के तहत बेदखली की कार्यवाही शुरू करने के लिए पूरी तरह सक्षम थे।
पचास वर्षों से अधिक समय से संपत्ति पर कब्जे के आधार पर स्वामित्व संबंधी दलील, साथ ही मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड, राशन कार्ड और बिजली बिल जैसे पहचान दस्तावेजों को अमान्य माना गया, क्योंकि ऐसे दस्तावेज अधिकतम निवास प्रमाण के रूप में तो दिखाई देते हैं, लेकिन अतिक्रमणकारियों को कानूनी अधिकार प्रदान नहीं करते।
अदालत ने आगे कहा,
“2002-03 की एकरूप नीति के संबंध में याचिकाकर्ताओं ने यह साबित नहीं किया कि वे उसमें दी गई शर्तों को पूरा करते हैं। नीति का उद्देश्य निर्धारित औपचारिकताओं के अनुपालन पर लंबे समय से चले आ रहे वैध या अन्यथा अनुमेय कब्जे को नियमित करने के लिए एक ढांचा प्रदान करना है। इसे अतिक्रमणकारियों द्वारा स्वामित्व प्रदान करने के साधन के रूप में नहीं समझा जा सकता। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अमृतमनोही भूमि, देवता से जुड़ी होने और सार्वजनिक उद्देश्य से प्रभावित होने के कारण कानून के विपरीत हस्तांतरित नहीं की जा सकती।”
तदनुसार, बेदखली आदेश को बरकरार रखते हुए और अभ्यावेदन अस्वीकार करते हुए रिट याचिका खारिज कर दी गई।
Case Title: Bishnu Charan Sahoo v. State of Odisha & Ors.