सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी के बाद महिला के म्यूटेशन सर्टिफिकेट में जेंडर बदलने का आदेश
ओडिशा हाईकोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट को एक महिला का नाम और जेंडर प्रॉपर्टी म्यूटेशन सर्टिफिकेट में बदलने का आदेश दिया, जिसने सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी (SRS) करवाकर अपना जेंडर महिला से पुरुष में बदल लिया है।
याचिकाकर्ता को राहत देते हुए जस्टिस आनंद चंद्र बेहरा की बेंच ने कहा,
“यहां, इस मामले में जब ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 7 और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020 के नियम 6 के अनुसार, जिला मजिस्ट्रेट और कानून के तहत अन्य अधिकारियों ने याचिकाकर्ता के पक्ष में सर्टिफिकेट, पहचान पत्र, पैन कार्ड, पासपोर्ट और आधार कार्ड जारी किए... मुझे याचिकाकर्ता द्वारा दायर इस रिट याचिका को खारिज करने का कोई कारण नहीं दिखता।”
याचिकाकर्ता को “जेंडर डिस्फोरिक सिंड्रोम” का पता चला था, जिसके लिए उसने लैप्रोस्कोपिक असिस्टेड वजाइनल हिस्टेरेक्टॉमी विद बाइलेटरल सैल्पिंगो ऊफोरेक्टॉमी (LAVH-BSO) करवाई, जो कुछ महिला अंगों को हटाने की एक सर्जिकल प्रक्रिया है। सफल SRS के बाद सर्टिफिकेट जारी किया गया जिसमें उसके जेंडर को महिला से पुरुष में बदलने की पुष्टि की गई।
सर्जरी के बाद याचिकाकर्ता ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 की धारा 7 और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) नियम, 2020 के नियम 6 के तहत जिला मजिस्ट्रेट से एक सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया। नियमों के अनुसार जांच करने के बाद जिला मजिस्ट्रेट ने उसे आवश्यक सर्टिफिकेट दिया।
इस सर्टिफिकेशन के आधार पर याचिकाकर्ता अपने सभी आधिकारिक दस्तावेजों जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, पासपोर्ट आदि में अपना नाम बदलवाने में सक्षम हो गई। उसने इस संबंध में एक गजट प्रकाशन भी करवाया और एक अखबार में प्रकाशन के माध्यम से भी इसकी सूचना दी।
उसने ओडिशा सरकार के जनरल एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट के एस्टेट निदेशक के सामने आवेदन दिया, जिसमें उनसे एक ज़मीन की प्रॉपर्टी के म्यूटेशन सर्टिफिकेट में उसका नाम और जेंडर बदलने का अनुरोध किया, जो उसे अपने पूर्वज से कानूनी वारिस के रूप में विरासत में मिली थी। हालांकि, संबंधित अधिकारी ने इसे स्वीकार नहीं किया, जिसके लिए उसने अपना अनुरोध दोहराते हुए एक ई-मेल भेजा, लेकिन वह भी बाउंस हो गया। इसलिए उसने अथॉरिटी को ज़रूरी निर्देश देने के लिए यह रिट याचिका दायर की।
जस्टिस बेहरा ने NALSA बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया (2014) मामले में सुप्रीम कोर्ट के आधिकारिक फैसलों पर भरोसा किया, जिसने औपचारिक रूप से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को 'तीसरा लिंग' के रूप में मान्यता दी और उनकी सुरक्षा और उत्थान के लिए सामाजिक-आर्थिक उपायों का आदेश दिया। जेन कौशिक बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया, 2025 LiveLaw (SC) 1018 में हाल के फैसले पर भी भरोसा किया गया, जिसने ट्रांसजेंडर समुदाय के अधिकारों और हकों को मज़बूती से दोहराया।
कोर्ट ने कहा कि SRS के आधार पर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने याचिकाकर्ता के जेंडर चेंज स्वीकार करते हुए सर्टिफिकेट जारी किया। इस सर्टिफिकेट के जारी होने के बाद वह अपने नाम और जेंडर को आधार कार्ड, पैन कार्ड और पासपोर्ट जैसे सभी सरकारी दस्तावेजों में भी बदल पाई। इस प्रकार, कोर्ट को कोई कारण नहीं मिला कि GA विभाग ने म्यूटेशन सर्टिफिकेट में उसका नाम बदलने के लिए दिए गए आवेदन को क्यों स्वीकार नहीं किया।
कोर्ट ने आदेश में कहा,
"इसलिए याचिकाकर्ता द्वारा दायर यह रिट याचिका स्वीकार की जानी चाहिए और सभी विपक्षी पक्षकारों, विशेष रूप से एस्टेट निदेशक, सामान्य प्रशासन विभाग, ओडिशा सरकार, भुवनेश्वर (विपक्षी पार्टी नंबर 2) को एनेक्सचर-4 के सीरियल नंबर 4 में याचिकाकर्ता का नाम "स्वगतिका दास" से "अगस्त्य दास" में बदलने और उसमें उसकी स्थिति पोती से पोता में बदलने के लिए आवश्यक निर्देश जारी किए जा सकते हैं।"
तदनुसार, रिट याचिका का निपटारा करते हुए अथॉरिटी को आदेश की सर्टिफाइड कॉपी मिलने के 15 दिनों के भीतर आवश्यक बदलाव करने का निर्देश दिया गया।
Case Title: Agastya Das v. State of Odisha & Ors.