सरकारी कर्मचारी के सेवानिवृत्ति के बाद गंभीर कदाचार का दोषी पाए जाने पर सीएसआर के अनुच्छेद 351 के तहत केवल राज्यपाल ही कार्रवाई कर सकते हैं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2022-09-27 09:34 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट


इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक फैसले में कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद, यदि किसी सरकारी कर्मचारी को गंभीर कदाचार का दोषी पाया जाता है या यह पाया जाता है कि उसने सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाया है तो राज्यपाल सिविल सेवा विनियमों के अनुच्छेद 351-ए में दिए प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई कर सकते हैं।

जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस श्री प्रकाश सिंह की खंडपीठ ने कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद बर्खास्तगी की सजा नहीं दी जा सकती है, हालांकि पेंशन रोकना या वापस लेना और पेंशन की र‌िकवरी का आदेश देना अनुमेय है, वह भी सीएसआर के अनुच्छेद 351-ए के अनुसार राज्यपाल के आदेश से।

मामला

याचिकाकर्ता (गया प्रसाद यादव) को उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबल के रूप में भर्ती किया गया था। उसे जाली प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी पाने के आरोपों पर जून 2009 में बर्खास्त कर दिया गया।

हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी के आदेश को रद्द करते हुए जनवरी 2014 में अपीलकर्ता-याचिकाकर्ता को बहाल कर दिया। हालांकि, उसके खिलाफ विभागीय कार्यवाही फिर की गई और जुलाई 2014 में उसे सेवा से दोबारा बर्खास्त कर दिया गया।

उक्त आदेश को दोबारा हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। हाईकोर्ट ने बर्खास्तगी के आदेश को (मार्च 2018 में) इस आधार पर रद्द कर दिया कि बर्खास्तगी की सजा का आदेश में कारण बताओ नोटिस और अपीलकर्ता-याचिकाकर्ता की ओर से पेश जवाब का उल्लेख नहीं करता।

हाईकोर्ट ने पुलिस अधीक्षक, अंबेडकर नगर को कानून के अनुसार नया आदेश पारित करने की स्वतंत्रता भी दी। हाईकोर्ट के आदेश के तहत अपीलकर्ता-याचिकाकर्ता को मई 2018 में कारण बताओ नोटिस दिया गया था, जिस पर उन्होंने जुलाई 2018 में पत्र के माध्यम से जवाब प्रस्तुत किया था। इस बीच, याचिकाकर्ता मई 2015 में रिटायर हो गया।

हालांकि, पुलिस अधीक्षक, अंबेडकर नगर ने नवंबर 2018 में बर्खास्तगी के पहले के आदेश को दोहराते हुए एक आदेश पारित किया और कहा कि अपीलकर्ता-याचिकाकर्ता को सेवा में बहाल करना वैध नहीं होगा। उक्त आदेश को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का रुख किया।

हाईकोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि उन्होंने मई 2015 में सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त कर ली थी और सिविल सेवा विनियमों के अनुच्छेद 351-ए में निहित प्रावधानों के अनुसार, राज्यपाल को कार्रवाई करने का अधिकार, जो केवल अनुमेय कार्रवाई की प्रकृति तक ही सीमित हो सकता है...।

प्रश्न

क्या अपीलार्थी-याचिकाकर्ता के मई 2015 में सेवानिवृत्त होने के बाद पुलिस अधीक्षक, अंबेडकर नगर बर्खास्तगी का आदेश पारित कर सकते थे।

टिप्पणियां

कोर्ट ने सीएसआर के अनुच्छेद 351-ए का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकारी कर्मचारी के सेवानिवृत्त होने के बाद राज्यपाल ही उसकी पेंशन या उसके किसी हिस्से को स्थायी रूप से या एक विशेष अवधि के लिए वापस ले सकता है या उसे रोकने रोक सकता है।

याचिकाकर्ता के खिलाफ विभागीय कार्यवाही जारी रखने के संबंध में, कोर्ट ने कहा कि चूंकि सेवानिवृत्ति से पहले ही उनके खिलाफ इस प्रकार की कार्यवाही शुरू की गई थी, इसलिए सीएसआर के अनुच्छेद 351-ए के तहत कोई मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं थी और इस तरह की निरंतरता पूरी तरह से कानूनी प्रकृति की थी।

इस प्रश्न के संबंध में कि क्या अपीलकर्ता-याचिकाकर्ता की बर्खास्तगी का आदेश पूर्वव्यापी तारीख से दिया जा सकता था, कोर्ट का विचार था कि एक बार जब कोई कर्मचारी सेवानिवृत्त हो जाता है तो बर्खास्तगी या सेवा से हटाने की सजा इस कारण से नहीं दी जा सकती है कि यदि व्यक्ति रोजगार में नहीं है तो उसकी सेवाओं को समाप्त करने का सवाल ही नहीं उठता, जब तक कि उस संबंध में कोई विशिष्ट नियम मौजूद न हो।

इस संबंध में, कोर्ट ने यूको बैंक और अन्य बनाम प्रभाकर सदाशिव करवड़े (2018) 14 सुप्रीम कोर्ट केस 98 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी भरोसा किया, जिसमें यह माना गया था कि किसी अधिकारी/कर्मचारी की सेवानिवृत्ति के बाद बर्खास्तगी का दंड तब तक नहीं दिया जा सकता, जब तक कि उस संबंध में कोई विशिष्ट नियम मौजूद न हो।

हालांकि, कोर्ट ने कहा कि यदि संबंधित कर्मचारी की सेवानिवृत्ति से पहले अनुशासनात्मक जांच शुरू की जाती है तो वह सिविल सेवा विनियमों के अनुच्छेद 351A के जरिए जारी रहेगी ऐसे मामले में यदि कर्मचारी गंभीर कदाचार या सरकार को आर्थिक नुकसान पहुंचाने का दोषी पाया जाता है तो यह राज्यपाल है, जो सिविल सेवा विनियमों के अनुच्छेद 351-ए के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई कर सकता है।

इसके साथ ही कोर्ट ने माना कि हालांकि कार्यवाही जारी रहना वैध था, लेकिन पुलिस अधीक्षक, अंबेडकर नगर द्वारा याचिकाकर्ता को सेवानिवृत्ति के बाद सेवा से बर्खास्त करने का आदेश वैध नहीं था। नतीजतन, याचिका की अनुमति देते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि सिविल सेवा विनियमों के अनुच्छेद 351-ए में निहित प्रावधानों के संदर्भ में प्रतिवादियों के लिए कार्रवाई करने का विकल्प होगा।

केस टाइटल- गया प्रसाद यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

केस साइटेशन: 2022 लाइव लॉ (एबी) 448

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