आर्टिकल 226 के तहत राहत का हकदार नहीं: कलकत्ता हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की नागरिकता पर संदेह करने वाले UIDAI द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस में हस्तक्षेप करने से इनकार किया
कलकत्ता हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक हिंदू व्यक्ति की नागरिकता के विवाद में हस्तक्षेप करने से यह देखते हुए इनकार कर दिया कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत कोई राहत नहीं दी जा सकती है। व्यक्ति का दावा था कि उसने अपना धर्म इस्लाम से बदलकर हिंदू किया है।
याचिकाकर्ता ने 27 जनवरी, 2022 को यूआईडीएआई द्वारा जारी एक कारण बताओ नोटिस को चुनौती दी थी, जिसमें कहा गया था कि अगर वह भारत में अपनी नागरिकता या निवास को प्रमाणित करने वाले किसी भी निर्णय को प्रदान करने में विफल रहता है तो उसका आधार कार्ड निष्क्रिय कर दिया जाएगा।
याचिका खारिज करते हुए जस्टिस राजशेखर मंथा ने कहा, "उपरोक्त परिस्थितियों में, याचिकाकर्ता अपने आधार कार्ड या इसके प्रस्तावित डीएक्टिवेशन के संबंध में भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत किसी भी राहत का हकदार नहीं है।"
याचिकाकर्ता ने 1982 में कोलकाता में एक मुस्लिम परिवार में पैदा होने का दावा किया है और बाद में शादी करने के लिए अपना नाम और धर्म बदलकर हिंदू धर्म रख लिया। वह मुंबई में रह रहा था और उसने मुंबई से पासपोर्ट और आधार कार्ड भी हासिल किया था।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह अक्सर बांग्लादेश का दौरा करता था और भारत लौटते समय ऐसी ही एक यात्रा पर, उसे हरिदासपुर, पेट्रापोल में सीमा चेक पोस्ट पर पकड़ा गया था। उसके दस्तावेजों में विसंगतियां पाई गईं और क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय, मुंबई को नोटिस भेजा गया।
नतीजतन, उसके खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई और आईपीसी के विभिन्न प्रावधानों और विदेशी अधिनियम की धारा 14 के तहत आरोप पत्र भी दायर किया गया। इसके बाद याचिकाकर्ता का पासपोर्ट आरपीओ, मुंबई द्वारा रद्द कर दिया गया और इस संबंध में एक अपील लंबित है।
याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि पेट्रापोल में आव्रजन अधिकारी ने उसके खिलाफ पूरा निराधार मामला बनाया है। इसलिए उन्होंने पूरी कार्यवाही को रद्द करने की मांग की। यह भी प्रस्तुत किया गया कि याचिकाकर्ता को दिया गया जमानत का आदेश स्वयं स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि उसका जन्म कोलकाता में हुआ था।
प्रस्तुतियों के अवलोकन पर, जस्टिस मंथा ने कहा कि एक वैधानिक प्राधिकरण ने याचिकाकर्ता के पासपोर्ट में विसंगतियां पाईं और तदनुसार टिप्पणी की,
"यह न्यायालय नोट करता है कि याचिकाकर्ता के पासपोर्ट में विसंगतियां पाई गईं हैं, जिसके आधार पर इसे रद्द कर दिया गया है। याचिकाकर्ता के खिलाफ ऊपर उल्लिखित उपयुक्त दंड कानूनों के तहत आरोप पत्र भी दायर किया गया है।"
याचिकाकर्ता के खिलाफ आसन्न कार्यवाही को रद्द करने से इनकार करते हुए, न्यायालय ने रेखांकित किया कि पासपोर्ट अधिनियम के तहत याचिकाकर्ता की अपील पर विचार करने वाले अपीलीय प्राधिकारी के आदेश को आड़े नहीं आना चाहिए।
याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने आगे कहा,
"यह न्यायालय आरोप पत्र को रद्द करने के लिए याचिकाकर्ता की प्रार्थना पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है क्योंकि यह न्यायालय इसे कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग या अधिकार क्षेत्र के बिना नहीं पाता है।"
केस टाइटल: जिया शरीफ हुसैन @ तुषार सुभाष रॉय
केस उद्धरण: 2022 लाइव लॉ (Cal) 63