स्टाफरूम में 'जातिसूचक' गाली देना SC/ST Act के तहत अपराध नहीं: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2023-11-14 06:02 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में व्यक्ति को स्कूल स्टाफरूम में 'जातिसूचक' गाली देने के आरोपी के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दिया।

जस्टिस विशाल धगट की एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ता को दी गई गालियां 'सार्वजनिक स्थान' पर नहीं कही गईं।

अदालत ने आगे कहा,

इसलिए याचिकाकर्ताओं को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 [SC/ST (POA)Act] के तहत अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

अदालत ने अपने आदेश में कहा,

“इन अधिनियमों में दी गई उपरोक्त परिभाषाओं को पढ़ने पर यह स्पष्ट है कि एससी और एसटी (पीओए) अधिनियम की धारा 3(1)(x) के तहत अपराध बनाने के लिए सार्वजनिक दृश्य में अपराध किया जाएगा। स्टाफ रूम सार्वजनिक दृश्य वाली जगह नहीं है, इसलिए याचिकाकर्ता के खिलाफ एससी और एसटी (पीओए) अधिनियम की धारा 3(1)(x) के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।”

अदालत ने तर्क दिया कि स्टाफ रूम सार्वजनिक स्थान नहीं है और आम जनता या नागरिकों को स्कूल की अनुमति के बिना ऐसी जगह तक पहुंच नहीं है। इसी कारण से अदालत ने आगे कहा कि आईपीसी की धारा 294 के तहत भी कोई अपराध नहीं बनाया गया।

हालांकि, कथित तौर पर याचिकाकर्ता की प्रतिष्ठा को निशाना बनाकर गालियां दी गईं, लेकिन शिकायत में यह नहीं कहा गया कि ऐसे दुर्व्यवहारों के कारण याचिकाकर्ता को चिंता हुई। इसलिए अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि आईपीसी की धारा 506 मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर लागू नहीं होगी।

तदनुसार, अदालत ने आईपीसी की धारा 294, 506 (II) और एससी और एसटी (पीओए) अधिनियम की धारा 3 (1) (x) के तहत अपराध के लिए शहडोल जिले के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष 2010 से आरोपियों के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही रद्द कर दी।

शिकायतकर्ता के अनुसार, स्कूल स्टाफरूम में हुई एक मीटिंग के दौरान याचिकाकर्ताओं द्वारा शिकायतकर्ता की जाति के आधार पर अपमानजनक टिप्पणियां की गईं।

दलीलों के दौरान, याचिकाकर्ताओं के वकील ने जोरदार ढंग से कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 12 के तहत परिभाषित 'सार्वजनिक' शब्द का अर्थ है 'जनता का कोई भी वर्ग' या 'कोई भी समुदाय', यानी वह स्थान जहां जनता रहती है।

याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि स्टाफरूम को ऐसी जगह नहीं माना जा सकता, जहां आम जनता पहुंच सके। दूसरी ओर, राज्य की ओर से पेश सरकारी वकील ने तर्क दिया कि जब शिकायतकर्ता के साथ दुर्व्यवहार किया गया तो अन्य शिक्षक स्टाफरूम में मौजूद थे। इसलिए इसे सार्वजनिक दृष्टिकोण से किया गया माना जाना चाहिए।

याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट विपिन यादव और राज्य की ओर से एडवोकेट अक्षय नामदेव उपस्थित हुए।

केस टाइटल: आशुतोष तिवारी एवं अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य

केस नंबर: आपराधिक मामला नंबर 6138/2010

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