आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में तथ्य छिपाकर अनुशासित बलों में रोजगार पाने की कोशिश करने वाले के लिए कोई जगह नहीं: दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2023-12-13 09:23 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं है, जो अपने आपराधिक इतिहास के बारे में तथ्य छिपाकर अनुशासित बलों में रोजगार पाने का प्रयास करता है।

जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस मनोज जैन की खंडपीठ ने कहा कि अनुशासित बलों में रोजगार चाहने वाले किसी भी व्यक्ति को आपराधिक पृष्ठभूमि के बारे में खुलासा करने के प्रति सख्त आज्ञापालन करना होगा।

अदालत ने 2014 में भारत तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) में शामिल हुए एक उप-निरीक्षक (जीडी) द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए ये टिप्पणियां कीं। उक्त याचिका में उन्होंने 2016 में पारित अधिकारियों के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उनकी सेवाओं को तत्काल प्रभाव से समाप्त कर दिया गया था।

यह अधिकारियों का मामला था कि जब उनसे सत्यापन दस्तावेज जमा करने के लिए कहा गया तो उन्होंने दावा किया कि वह कभी भी किसी आपराधिक मामले में शामिल नहीं थे।

याचिका खारिज करते हुए पीठ ने कहा कि आपराधिक मामले के संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य को जानबूझकर दबाया गया, जो उस समय लंबित था जब याचिकाकर्ता ने फॉर्म भरे थे। इस प्रकार, अधिकारियों द्वारा उसे बर्खास्त करना उचित है।

अदालत ने कहा,

“जैसा कि पहले ही ऊपर देखा जा चुका है, याचिकाकर्ता ऐसे पिछले मामले के बारे में अनभिज्ञता नहीं जता सकता है, जिसमें उसे गिरफ्तार किया गया था। यहां तक कि सलाखों के पीछे भी रहा था। भले ही एक पल के लिए यह मान लिया जाए कि अंग्रेजी एडिशन में सत्यापन रोल फॉर्म के 12 (ए) में शामिल क्वेरी जटिल थी, क्योंकि कई प्रश्न आपस में जुड़े हुए थे, तथ्य यह है कि उसी फॉर्म में हिंदी में भी वही क्वेरी थी, जो उचित रूप से सब कुछ बताती है। इसके अलावा, नामांकन फॉर्म में प्रश्नों को विभाजित कर दिया गया, जिससे किसी भी अनिश्चितता या अस्पष्टता की संभावना दूर हो गई।”

इसमें कहा गया,

“हम यह भी जोड़ सकते हैं कि अनुशासित बलों में रोजगार चाहने वाले किसी भी व्यक्ति को इस प्रकार के प्रकटीकरण के प्रति सख्त आज्ञाकारिता होनी चाहिए और निश्चित रूप से उस व्यक्ति के लिए कोई जगह नहीं है, जो अपने आपराधिक इतिहास के भौतिक तथ्य छिपाकर रोजगार पाने का प्रयास करता है।”

केस टाइटल: बिनीत सिंह बिष्ट बनाम भारत संघ और अन्य।

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