आईपीसी/आरपीसी अपराधों के संबंध में बैंक अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए किसी पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता नहीं: जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि आईपीसी/आरपीसी के तहत अपराधों के संबंध में बैंक अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।
जस्टिस संजय धर की खंडपीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता बैंक के अधिकारियों की नियुक्ति और हटाने का अधिकार सरकार का नहीं है, बल्कि यह भारतीय स्टेट बैंक का सक्षम प्राधिकारी है जिसे ऐसा करने का अधिकार है। इसलिए, सीआरपीसी की धारा 197 बैंक अधिकारियों के मामले में लागू नहीं होती है।
संक्षेप में मामला
प्रतिवादी-शिकायतकर्ता द्वारा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अनंतनाग के समक्ष शिकायत दर्ज की गई। इस शिकायत में भारतीय स्टेट बैंक, शाखा कार्यालय अनंतनाग के अधिकारियों के खिलाफ जांच/एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने की मांग की गई।
यह आरोप लगाया गया कि अधिकारियों/अज्ञात व्यक्तियों ने शिकायतकर्ता के बैंक अकाउंट को अवैध रूप से संचालित किया, जिससे शिकायतकर्ता की जानकारी के बिना बैंक अकाउंट को ओपन किया शिकायतकर्ता के अकाउंट में फर्जी प्रविष्टियां/लेनदेन किए गए।
मजिस्ट्रेट ने इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद कि मामले की जांच की जानी है, प्रतिवादी/शिकायतकर्ता की शिकायत को प्रारंभिक सत्यापन करने के लिए पुलिस को भेज दिया।
आदेश और शिकायत को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता बैंक के अधिकारियों ने तर्क दिया कि लोक सेवक होने के नाते उनके खिलाफ अपराधों का संज्ञान न्यायालय द्वारा पूर्व मंजूरी के बिना नहीं लिया जा सकता और इस मामले के इस पहलू की मजिस्ट्रेट द्वारा अनदेखी की गई है।
कोर्ट का आदेश
कोर्ट ने कहा कि वर्तमान याचिका समय से पहले की है, याचिकाकर्ता बैंक के अधिकारियों के खिलाफ भी प्रक्रिया जारी नहीं की गई है, जिसका मतलब है कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अभी तक यह तय नहीं किया है कि कोई अपराध है या नहीं।
इसके अलावा, पूर्व अनुमति न लेने के तर्क के बारे में कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता बैंक के अधिकारी भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 21 में निहित लोक सेवक की परिभाषा के भीतर आते हैं, लेकिन, कोर्ट ने कहा कि बैंक के अधिकारी वे लोक सेवक नहीं हैं जिन्हें सरकार द्वारा या उनकी स्वीकृति के बिना उनके पद से हटाया नहीं जा सकता।
अदालत ने याचिका खारिज करने से पहले जोर दिया,
"... बैंक का अधिकारी लोक सेवक बनने के लिए अर्हता प्राप्त कर सकता है और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के प्रावधानों के तहत अपराधों के संबंध में ऐसे अधिकारी पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी प्राप्त की जानी चाहिए, लेकिन जहां तक अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी/आरपीसी के तहत अपराधों के संबंध में बैंक का संबंध है, किसी पूर्व मंजूरी की आवश्यकता नहीं है।"
केस टाइटल- स्टेट बैंक ऑफ इंडिया अनंतनाग बनाम जी.एम. जमशेद डार
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