"बीएमसी के कथित कदाचार और उद्धव ठाकरे के बीच कोई संबंध नहीं": बॉम्बे हाईकोर्ट ने जुर्माना के साथ ईडी जांच कराने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की
बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे, उनकी पत्नी और दो बेटों की कथित "आय से अधिक" संपत्ति की सीबीआई और ईडी जांच की मांग वाली जनहित याचिका खारिज कर दी।
जस्टिस धीरज ठाकुर और जस्टिस वाल्मीकि मेनेजेस की खंडपीठ ने कहा,
"हम मानते हैं कि यह याचिका कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।"
इसके साथ ही खंडपीठ ने दादर निवासी गौरी भिडे (38) और अभय भिडे (78) पर 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया।
खंडपीठ ने याचिका को "किसी भी सबूत से रहित" पाया। पीठ ने कहा कि याचिका में ऐसे बहुत कम साक्ष्य हैं जो इस निष्कर्ष पर आने के लिए एक आधार देगा कि सीबीआई या किसी अन्य एजेंसी के लिए एक प्रथम दृष्टया मामला बनता है।
खंडपीठ ने कहा,
"याचिका को पढ़ने पर यह स्पष्ट है कि याचिकाकर्ता अपनी शुरुआत से ही निजी उत्तरदाताओं के अचानक उत्थान और समृद्धि सूचकांक का अनुमान लगा रहे हैं। इसलिए यहां संदेह पैदा होता है कि निजी प्रतिवादी की जीवन शैली को केवल बीएमसी की कार्यप्रणाली में भ्रष्ट लोगों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।"
इससे पहले, महाराष्ट्र सरकार ने हाईकोर्ट को सूचित किया कि आर्थिक अपराध शाखा ने भिडे की शिकायत पर प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है।
भिडे की जनहित याचिका में सीबीआई और ईडी को "मुंबई पुलिस के साथ दायर उसकी शिकायत का संज्ञान लेने और जांच अपने हाथों में लेने" का निर्देश देने की मांग की गई।
याचिका में आरोप लगाया गया कि उद्धव, उनकी पत्नी रश्मि और उनके बेटे आदित्य ने अपनी आय के आधिकारिक स्रोत के रूप में कभी भी "किसी विशेष सेवा, पेशे और व्यवसाय" का खुलासा नहीं किया। फिर भी उनके पास "मुंबई जैसे मेट्रो शहर और रायगढ़ जिले में बड़ी संपत्ति है, जो करोड़ो में हो सकती है।"
ठाकरे की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट अस्पी चिनॉय ने जनहित याचिका की सुनवाई योग्यता को चुनौती दी। उन्होंने कहा कि सीआरपीसी यदि शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है तो प्रक्रिया प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि आपराधिक जांच की प्रक्रिया को तब तक नहीं छोड़ा जा सकता जब तक कि असाधारण परिस्थितियां न हों।
गुण-दोष के आधार पर उन्होंने कहा कि याचिका में ऐसा कोई विशिष्ट तथ्य नहीं दिया गया, जिसके आधार पर आपराधिक कार्यवाही शुरू की जा सके। शिवसेना के प्रकाशन सामना और मार्मिक ने मुनाफा कमाया और अन्य अखबारों ने नहीं; यह आपराधिक कार्यवाही शुरू करने का कारण नहीं हो सकता।
रश्मि ठाकरे की ओर पेश हुए सीनियर एडवोकेट अशोक मुंडार्गी ने तर्क दिया कि केंद्रीय एजेंसियों को शुरू से शामिल नहीं किया जा सकता। उन्होंने तर्क दिया कि प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध होना चाहिए, जो वर्तमान मामले में नहीं बनता। उन्होंने आगे कहा कि शक के आधार पर लगाए आरोपों का कोई मूल्य नहीं है।
याचिकाकर्ता गौरी भिडे और उसके पिता अभय भिडे कई वर्षों से शिवसेना के गढ़ दादर के निवासी हैं। उन्होंने आपातकाल के दौरान शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के साप्ताहिक साप्ताहिक को संक्षिप्त रूप से छापा। उनकी याचिका में महाराष्ट्र सरकार के स्वामित्व वाली सिडको द्वारा ट्रस्ट प्रबोधन प्रकाशन (सामना समाचार पत्र के मालिक और प्रकाशक) के लिए दिए गए भूमि भूखंडों के संबंध में भी सवाल उठाए गए हैं।
केस नंबर- सीआरपीआईएल/17/2022
केस टाइटल- गौरी अभय भिडे और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य।