अगर जांच पूरी करने के लिए वैधानिक अवधि को 180 दिनों की समाप्ति से पहले धारा 36A(4) एनडीपीएस एक्ट के तहत बढ़ाया गया है तो कोई ‌डिफॉल्ट जमानत नहींः आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2022-03-25 10:09 GMT

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में निर्धारित किया कि अगर गांजे की वाणिज्यिक मात्रा के अवैध कब्जे के मामले में जांच नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 की धारा 36 ए (4) के तहत काफी पहले से दिए गए विस्तार के आधार पर 180 दिनों की वैधानिक सीमा से परे लंबित है तो धारा 167 (2) सीआरपीसी के तहत डिफॉल्ट जमानत नहीं दी जा सकती।

कोर्ट ने कहा,

"एनडीपीएस एक्ट के प्रावधानों के अनुसार, आरोपी की गिरफ्तारी की तारीख से 180 दिनों के भीतर जांच पूरी करनी होती है। उक्त अवधि 11.12.2021 तक समाप्त हो जाएगी। हालांकि, रिकॉर्ड से पता चलता है कि अभियोजन पक्ष ने एनडीपीएस एक्ट की धारा 36ए(4) के तहत 180 दिनों की समाप्ति से पहले यानी 22.11.2021 को जांच पूरी करने की अवधि के विस्तार के लिए एक आवेदन दायर किया है। उक्त याचिका को न्यायालय ने अनुमति दी थी और जांच पूरी होने की अवधि को 180 दिनों के लिए और बढ़ा दिया था। इसलिए, इस तथ्य पर विचार करते हुए कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 36ए (4) के तहत जांच पूरी होने का समय बढ़ाया गया था, निचली अदालत ने याचिकाकर्ता की ओर से धारा 167(2) सीआरपीसी के तहत दायर डिफ़ॉल्ट जमानत की याचिका को उचित ही खारिज किया है।"

भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 468 सहपठित नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टांस एक्ट, 1985 की धारा 20 (बी) (ii) (सी) के तहत याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज किया गया था। याचिकाकर्ता की ओर से जमानत पर रिहा करने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 439 के तहत याचिका दायर की गई थी।

अभियोजन पक्ष का मामला यह था कि याचिकाकर्ता और एक अन्य आरोपी दो ऑटो रिक्शा में 200 किलो गांजा ले जा रहे थे और पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। उनके कब्जे से मादक पदार्थ जब्त कर लिया गया। एक ऑटो रिक्शा में 100 किलो गांजा पाया गया, जिसमें याचिकाकर्ता यात्रा कर रहा था। इसलिए कहा गया कि याचिकाकर्ता ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर अपराध किया है।

याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि उसे 14.06.2021 को गिरफ्तार किया गया था और जांच पूरी करने की 180 दिनों की निर्धारित अवधि 11.12.2021 तक समाप्त हो गई।

जांच उक्त वैधानिक अवधि के भीतर पूरी नहीं हुई। इसलिए, याचिकाकर्ता ने डिफ़ॉल्ट जमानत देने के लिए धारा 167 (2) आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत एक आवेदन दायर किया और इस बीच, अभियोजन पक्ष ने जांच की अवधि बढ़ाने के लिए एनडीपीएस एक्ट की धारा 36 ए (4) के तहत एक आवेदन दायर किया और निचली अदालत ने जांच की अवधि की अनुमति दी और याचिकाकर्ता द्वारा डिफॉल्ट जमानत के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया।

अतिरिक्त लोक अभियोजक ने आपराधिक याचिका का विरोध किया और प्रस्तुत किया कि याचिकाकर्ता के पास व्यावसायिक मात्रा पाई गई और एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 के तहत जमानत देने पर रोक मामले के तथ्यों को प्रस्तुत करने के लिए लागू होती है। उन्होंने यह भी कहा कि जांच पूरी करने के लिए 180 दिनों की अवधि समाप्त होने से पहले ही अभियोजन पक्ष ने जांच पूरी करने के लिए अवधि बढ़ाने के लिए याचिका दायर की थी।

अदालत ने पाया कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे यह संकेत मिले कि याचिकाकर्ता उक्त अपराध को करने का दोषी नहीं था। चूंकि याचिकाकर्ता को उस समय 100 किलोग्राम गांजा के अवैध कब्जे के साथ पकड़ा गया था, इसलिए याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाया गया आरोप प्रथम दृष्टया अच्छी तरह से स्थापित था।

अदालत ने कहा कि मामले में जांच अभी भी लंबित है और भारी मात्रा में गांजा अवैध कब्जे में पाया गया है, इसलिए याचिकाकर्ता की जमानत की मांग को खारिज कर दिया गया था। इसलिए कोर्ट ने आपराधिक याचिका खारिज कर दी।

केस शीर्षक: एम मोहनराज बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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