राज्य बोर्ड में 5वीं और 8वीं कक्षा के छात्रों के लिए कोई बोर्ड परीक्षा नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट ने गवर्नमेंट सर्कुलर को रद्द किया

Update: 2023-03-10 15:40 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने शुक्रवार को राज्य सरकार द्वारा जारी तीन परिपत्रों को रद्द कर दिया, जिसके जरिए उसने स्टेट बोर्ड से संबद्ध स्कूलों में कक्षा 5वीं और 8वीं के छात्रों के लिए बोर्ड परीक्षा निर्धारित की थी।

जस्टिस प्रदीप सिंह येरुर की सिंगल जज बेंच ने अनऐडेड स्कूलों के विभिन्‍न संगठनों की ओर से दायर याचिकाओं की अनुमति भी दी।

पीठ ने 12 दिसंबर, 2022, 13 दिसंबर, 2022 और 4 जनवरी, 2023 को जारी सर्कुलरों को रद्द कर दिया। पीठ ने मौखिक रूप से कहा, "राज्य सरकार प्रक्रिया का पालन अगले शैक्षणिक वर्ष के लिए कर सकती है।"

याचिकाकर्ताओं ने सर्कुलर पर सवाल उठाते हुए कहा कि स्कूल स्तर के मूल्यांकन के बजाय राज्य स्तरीय 'बोर्ड परीक्षा' आयोजित करके मूल्यांकन पद्धति को बदलने से छात्रों और शिक्षकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

आगे यह तर्क दिया गया कि सर्कुलर जारी करने से पहले हितधारकों, माता-पिता, बच्चों या स्कूलों के साथ कोई चर्चा नहीं की गई थी।

हालांकि, राज्य सरकार ने तर्क दिया कि कोई बोर्ड परीक्षा नहीं है, बच्चों के मूल्यांकन की प्रक्रिया में केवल एक मामूली बदलाव है और छात्रों को दिए जा रहे कुल 100 अंकों में से 80 प्रतिशत संबंधित स्कूलों द्वारा शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत से किए गए निरंतर आंतरिक मूल्यांकन पर आधारित है।

अंतिम मूल्यांकन प्रक्रिया के लिए केवल शेष 20 प्रतिशत अंकों के लिए ही राज्य स्तर पर प्रश्न पत्र तैयार किए जाते हैं और पेपर का मूल्यांकन तालुक और ब्लॉक स्तर पर किया जाता है।

पीठ ने अपने आदेश में कहा,

"यह कानून का एक प्रमुख सिद्धांत है कि जब सरकार की कोई भी योजना, परिपत्र या कानून लागू किया जाता है तो उसे उस क़ानून से विकसित या उत्पन्न होना चाहिए जिसके तहत यह शासित होता है।"

इसके अलावा यह पाया गया कि "राज्य सरकार ने शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनियम के प्रावधानों के तहत कुछ मूल्यांकन निर्धारित करने के लिए विवादित परिपत्र जारी किए हैं। ऐसा करते समय राज्य सरकार को अनिवार्य रूप से अधिनियम के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होगा।"

अदालत ने बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 38 (4) का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि "इस अधिनियम के तहत राज्य सरकार द्वारा बनाए गए प्रत्येक नियम या अधिसूचना को, इसके लागू होने के बाद, जितनी जल्दी हो सके, राज्य विधानमंडलों के समक्ष रखे जाएंगे।

राज्य सरकार की इस दलील को खारिज करते हुए कि उसने कोई नियम बनाने का फैसला नहीं किया है, वह केवल राज्य के पाठ्यक्रम के तहत आने वाले छात्रों की सहायता और लाभ के लिए कुछ आकलन तैयार कर रही है। इसलिए अधिनियम की प्रक्रिया का पालन करने का प्रश्न, विशेष रूप से धारा 38 या अधिनियम के किसी अन्य प्रावधान को आकर्षित नहीं करेगा।

पीठ ने कहा, "मुझे डर है कि एएजी के उक्त तर्क को इस कारण से स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि विवादित परिपत्रों के आधार पर राज्य सरकार द्वारा लाया गया एक बदलाव है।

वर्ष 2022-23 के लिए 20 अंक प्रदान करना, जिसका मूल्यांकन अनिवार्य रूप से राज्य के बोर्ड द्वारा किया जाएगा।

इसमें कहा गया है, "इस तरह एक बाहरी एजेंसी कक्षा 5 और 8वीं के छात्रों के लिए केवल 20 अंक देने के लिए आ रही है। आरटीई अधिनियम की धारा 16 के तहत इस पर विचार नहीं किया गया है। उक्त परिपत्र केवल अधिनियम या नियमों का पूरक हो सकते हैं, लेकिन किसी भी परिस्थिति में नियमों का स्थान नहीं ले सकते। ऐसी स्थिति में जहां नियमों की आड़ में नियमों को बदलने के लिए परिपत्र जारी किया जाता है, अधिनियम की धारा 38 (4) के तहत निर्धारित प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए।

इस प्रकार जज ने कहा, "परिस्थितियों में मैं याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील की प्रस्तुतियों में पर्याप्त बल पाता हूं। राज्य सरकार द्वारा मूल्यांकन के लिए नया प्रारूप लागू किया गया है, यह आरटीई अधिनियम की धारा 16 और अधिनियम के तहत निर्धारित प्रक्रिया के विपरीत है।

जिसके बाद इसने याचिकाओं को स्वीकार कर लिया और विवादित परिपत्रों को रद्द कर दिया।

केस टाइटल: कर्नाटक अनएडेड स्कूल मैनेजमेंट एसोसिएशन एंड स्टेट ऑफ कर्नाटक


केस नंबर: WP 5017/2023 C/w 1699/2023, 1668/2023,

साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (कर) 102

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