एनडीपीएस एक्ट| अदालतें किसी विशेष ड्रग को 'निर्मित ड्रग' या 'साइकोट्रोपिक पदार्थ' घोषित नहीं कर सकतीं: जेकेएल हाईकोर्ट

Update: 2022-03-31 12:02 GMT

जम्मू और कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने माना है कि अदालतें एनडीपीएस एक्ट के तहत यह घोषणा नहीं कर सकती हैं कि एक विशेष ड्रग एक 'निर्मित ड्रग' या 'साइकोट्रोपिक पदार्थ' है। जस्टिस संजय धर की खंडपीठ ने कहा कि यह सरकार का काम है कि वह एनडीपीएस एक्ट के तहत 'निर्मित ड्रग' या 'साइकोट्रोपिक पदार्थों' की सूची में एक विशेष दवा को शामिल करने पर निर्णय ले।

उल्‍लेखनीय है कि 'निर्मित ड्रग' को एनडीपीएस एक्ट की धारा 2 (xi) में परिभाषित किया गया है और इसमें सभी कोका डेरिवेटिव, मेडिस‌िनन कैनबीज़, ऑपियम डेरिवेटिव और पॉपी स्ट्रॉ कॉन्संट्रेट के अलावा किसी भी अन्य मादक पदार्थ या सामग्री जिसे इस आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा घोषित किया गया है, को शामिल किया गया है।

दूसरी ओर, एनडीपीएस एक्ट की धारा 2 (xxii) 'साइकोट्रोपिक पदार्थ' को परिभाषित करती है। एनडीपीएस एक्ट की अनुसूची में निर्दिष्ट साइकोट्रोपिक पदार्थों की सूची में शामिल कोई भी पदार्थ या सामग्री 'साइकोट्रोपिक पदार्थ' की परिभाषा के अंतर्गत आएगी।

मामला

दरअसल, खुर्शीद अहमद डार नामक एक व्यक्ति ने प्रधान सत्र न्यायाधीश, अनंतनाग के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत एक आवेदन (और जमानत याचिका) दायर की। याचिकाकर्ता के खिलाफ एनडीपीएस एक्ट की धारा 21/22 के तहत अपराधों के आरोप लगाए गए थे।

याचिकाकर्ता को 'स्पैस्मो प्रोक्सीवन-टी प्लस' की 35 स्ट्रिप्स के साथ गिरफ्तार किया गया था। जिसमें एफएसएल रिपोर्ट के अनुसार, "टैपेंटाडोल" था और इसलिए, ट्रायल कोर्ट ने उसके खिलाफ एनडीपीएस एक्ट की धारा 21/22 के तहत अपराधों के लिए आरोप तय किए। मामले में याचिकाकर्ता की जमानत अर्जी को लगातार खारिज किया गया।

हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उपरोक्त दवा (टैपेंटाडोल) का एनडीपीएस एक्ट, 1985 की अनुसूची में उल्लेख नहीं है, और इस प्रकार, उस पर एनडीपीएस एक्ट की धारा 21/22 के तहत आरोप नहीं लगाया जा सकता और याचिकाकर्ता को जमानत देने के मामले में एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 की कठोरता को निचली अदालत द्वारा उसकी जमानत याचिकाओं को खारिज करते हुए लागू नहीं किया जा सकता था।

अवलोकन

अदालत ने कहा कि एनडीपीएस एक्ट की धारा 21 के तहत 'निर्मित दवाओं' और उसकी सामग्री के लिए दंड का प्रावधान है। एनडीपीएस एक्ट की धारा 22 के तहत, 'साइकोट्रोपिक पदार्थों' को रखने को दंडनीय बनाया गया है।

इस प्रकार कोर्ट ने कहा, जब तक कि कोई दवा 'निर्मित दवा' या 'साइकोट्रोपिक पदार्थ' होने योग्य नहीं हो जाती, तब तक उसे रखना एनडीपीएस एक्ट की धारा 21 या धारा 22 के प्रावधानों के तहत अपराध नहीं होगा।

इसे देखते हुए, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि मौजूदा मामले में एफएसएल की रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता से कथित रूप से बरामद की गई दवा में 'टैपेंटाडोल' पदार्थ है जिसे न तो 'निर्मित दवा' के रूप में अधिसूचित किया गया है और न ही यह एनडीपीएस एक्ट की अनुसूची में शामिल है।

इसलिए, ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष में गलती पाते हुए हाईकोर्ट ने जोर देकर कहा कि ऐसी किसी भी दवा को रखना, जो न तो निर्मित दवा/ मादक दवा है और न ही बिना लाइसेंस या अधिकार के 'साइकोट्रोपिक पदार्थ' है, ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट या जम्मू-कश्मीर एक्साइज एक्ट के तहत एक अपराध हो सकता है, लेकिन यह एनडीपीएस एक्ट के प्रावधानों के तहत अपराध होने योग्य नहीं है।

अदालत ने कहा कि उसने आरोप तय करने के आदेश को रद्द कर दिया और याचिकाकर्ता को जमानत भी दी है।

केस शीर्षक- खुर्शीद अहमद डार बनाम जम्मू-कश्मीर यूनियन टेरिटरी

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