एनडीपीएस अधिनियम | एफएसएल रिपोर्ट के बिना चार्जशीट दोषपूर्ण नहीं, सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत का आधार नहीं: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2022-04-08 07:15 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सबस्टेंस एक्ट (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत आरोपित व्यक्ति को सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत का अधिकार सिर्फ इसलिए नहीं मिलता कि जांच के बाद पुलिस द्वारा एफएसएल रिपोर्ट के बिना आरोप पत्र / अंतिम रिपोर्ट दायर की गई है।

जस्टिस एम. नागप्रसन्ना की एकल पीठ ने कहा,

"एफएसएल रिपोर्ट न दाखिल करने से आरोप पत्र सीआरपीसी की धारा 173(2) के विपरीत नहीं हो जाएगा।"

पीठ ने तदनुसार पूरी कार्यवाही को रद्द करने तथा जांच के बाद दोषपूर्ण चार्जशीट या अपूर्ण चार्जशीट दाखिल करने के आधार पर अंतरिम जमानत देने के अंतरिम अनुरोध को लेकर सैय्यद मोहम्मद उर्फ नसीम द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर अपने समक्ष दायर एक विशेष अनुमति याचिका में कई कानूनी बिंदुओं के अलावा इस बात पर भी विचार कर रहा है कि ''क्या एनडीपीएस मामलों में बरामद पदार्थ की फोरेंसिक रिपोर्ट के अभाव में जांच को पूरा माना जा सकता है?'' .

इसमें याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि विभिन्न राज्यों में एक विशेष केंद्रीय कानून लागू करने में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की आवश्यकता है, क्योंकि इन सवालों पर विभिन्न हाईकोर्ट की अलग-अलग राय के साथ-साथ एक ही उच्च न्यायालय की विभिन्न पीठों के बीच परस्पर विभेद भी है।

पृष्ठभूमि

वर्तमान मामले में याचिकाकर्ता एक कार में यात्रा कर रहा था, जिसमें से 60.60 किलोग्राम गांजा बरामद किया गया था। उन्हें भारतीय शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25 और 3 तथा एनडीपीएस अधिनियम की धारा 8 (सी), 20 (बी) (ii) (सी) के तहत गिरफ्तार किया गया था। जांच के बाद पुलिस ने कोर्ट में फाइनल रिपोर्ट/चार्जशीट दाखिल की। आरोप पत्र दाखिल किये जाने के बाद याचिकाकर्ता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हशमथ पाशा ने दलील दी कि पुलिस द्वारा दायर आरोप पत्र एक दोषपूर्ण आरोप पत्र या अधूरा आरोप पत्र है, क्योंकि प्रतिबंधित पदार्थ को इसके परीक्षण के लिए फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला में भेजा गया है और रिपोर्ट आना बाकी है।

इसके अलावा उन्होंने कहा, "रिपोर्ट के अभाव में, जब्त किया गया पदार्थ अज्ञात है और इसलिए, आरोप-पत्र एक दोषपूर्ण आरोप पत्र बन जाता है। पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 167(2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत की दृढता खत्म करने के लिए जल्दबाजी में एक अधूरा आरोप पत्र दायर किया है। सीआरपीसी की धारा 173(2) का उल्लंघन करके अंतिम रिपोर्ट दाखिल करने की वजह से याचिकाकर्ता जमानत पर तुरंत रिहा होने का हकदार है।"

अभियोजन पक्ष ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया कि केवल एफएसएल रिपोर्ट दाखिल न करने से आरोप पत्र निरस्त नहीं होगा, क्योंकि इसे बाद में कार्यवाही में हमेशा दायर किया जा सकता है। चूंकि प्रतिबंधित पदार्थ गांजा है इसलिए इसे संरचना और गंध से आसानी से पहचाना जा सकता है और एफएसएल रिपोर्ट केवल एक औपचारिकता है।

कोर्ट के निष्कर्ष:

बेंच ने 'मानस कृष्णा टी.के. बनाम सरकार' मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्णय पर भरोसा जताया, जिसमें कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 167 (2) और 173 के बीच पारस्परिक प्रभावों का निरूपण किया और यह माना कि भले ही आरोप पत्र के साथ फील्ड टेस्टिंग रिपोर्ट न हो, इसे केवल अपूर्ण पुलिस रिपोर्ट का ठप्पा नहीं लगाया जा सकता, सिर्फ इसलिए क्योंकि इसमें एफएसएल रिपोर्ट नहीं थी। नतीजतन, आरोपी केवल इस कारण डिफ़ॉल्ट जमानत का हकदार नहीं होगा कि उसके साथ एफएसएल रिपोर्ट नहीं थी।

तब कोर्ट ने कहा,

"गांजा एक ऐसा पदार्थ है, जिसे इसकी गंध, बनावट और संरचना से आसानी से पहचाना जा सकता है।"

इसने 'सागर परशुराम जोशी बनाम महाराष्ट्र सरकार' मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया और कहा,

"केवल इसलिए कि आरोप पत्र के साथ एफएसएल रिपोर्ट नहीं थी, याचिकाकर्ता यह दलील देने का हकदार नहीं हो सकता कि वह जमानत पर रिहा किये जाने का हकदार है। जब तक धारा 173 (2) के तहत आवश्यक विवरण वाली पुलिस रिपोर्ट निर्धारित अवधि के भीतर दायर की जाती है, आरोपी को यह दलील देने का अधिकार नहीं मिल जायेगा कि वह इस आधार पर डिफ़ॉल्ट जमानत का हकदार है कि दायर की गई अंतिम रिपोर्ट सीआरपीसी की धारा 173(5) का उल्लंघन है।"

इसमें कहा गया है,

"सीआरपीसी की धारा 173 (8) मामले में आगे की जांच का निर्देश देती है। अगर पुलिस आगे की जांच के लिए हकदार है, तो कोर्ट के समक्ष और दस्तावेज भी दायर किए जा सकते हैं। इसलिए, एफएसएल रिपोर्ट कोर्ट के सामने रखी जा सकती है।"

इसी के तहत उसने याचिका खारिज कर दी।

केरल हाईकोर्ट का एक ऐसा ही निर्णय है, जो पिछले साल दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि यदि जांच अधिकारी ने जांच के बाद निष्कर्ष निकाला है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपित अपराध न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर बनाए रखने योग्य है, तो इसे सीआरपसी की धारा 173 के तहत पूर्ण रिपोर्ट की तरह माना जा सकता है। यह नहीं कहा जा सकता है कि जांच केवल इसलिए अधूरी है, क्योंकि प्रयोगशालाओं से विश्लेषक की रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई है।

हालांकि, अगर जांच अधिकारी मुख्य रूप से अपने मामले को साबित करने के लिए एक प्रयोगशाला रिपोर्ट पर भरोसा कर रहा है, और ऐसी स्थिति में भी, रिपोर्ट के बिना एक अंतिम रिपोर्ट दायर की जाती है, तो यह नहीं कहा जा सकता है कि यह कानून के तहत विचार की गई अंतिम रिपोर्ट है।

केस टाइटल: सैयद मोहम्मद @ नसीम बनाम कर्नाटक सरकार

केस नंबर: रिट याचिका संख्या 5934/2022

साइटेशन: 2022 लाइवलॉ (कर्नाटक) 108

आदेश की तिथि: 29 मार्च, 2022

उपस्थिति: याचिकाकर्ता के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता हशमथ पाशा, ए/डब्ल्यू एडवोकेट करियप्पा.एन.ए

प्रतिवादी के लिए अधिवक्ता के.पी.यशोधा

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