मुस्लिम कानून | मुस्लिम मां ने अगर एक नाबालिग की ओर से, अभिभावक के रूप में, एक पार्टिशन डीड का निष्पादन किया है तो वह मान्य नहीं होगीः केरल हाईकोर्ट
केरल हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट की मिसालों के मुताबिक, एक मुस्लिम मां ने अगर एक नाबालिग की ओर से, गॉर्जियन के रूप में, एक पार्टिशन डीड का निष्पादन किया है तो वह मान्य नहीं होगी।
जस्टिस पीबी सुरेश कुमार और जस्टिस सीएस सुधा की खंडपीठ ने कहा कि पर्सनल लॉ में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो इसे प्रतिबंधित करता है, लेकिन यह सुप्रीम कोर्ट की मिसालों से बंध हुआ है, जिसने स्थापित किया है कि मुस्लिम मां अपने नाबालिग बच्चे की व्यक्ति या संपत्ति की अभिभावक नहीं हो सकती है..
कोर्ट ने कहा, "कुरान या हदीस में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो महिलाओं को उनकी नाबालिग संतानों के अभिभावक के रूप में मानने से प्रतिबंधित करता या रोकता है ... जो भी हो, यह अदालत माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से बंधी है।"
अदालत ने कहा कि अपीलकर्ताओं का यह तर्क कि मुस्लिम मांओं को अपने नाबालिग बच्चे के व्यक्ति और संपत्ति के संरक्षक होने से रोकना संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है, यह लागू नहीं होता क्योंकि शायरा बानो बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मुताबिक शरीयत एक राज्य विधान नहीं है, और इसलिए अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 15 के आधार पर इसका परीक्षण नहीं किया जा सकता है।
अदालत पार्टिशन के एक डिक्री के खिलाफ दायर अपील पर फैसला सुना रही थी, जिसमें पार्टियों में से एक मां थी जिसने अपने बेटे की संपत्ति के संरक्षक के रूप में काम किया था।
कोर्ट ने फैसले में कहा कि अगर उत्तराधिकार और धर्मनिरपेक्ष चरित्र के मामलों का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, तो यही स्थिति संरक्षकता के मामले में भी होगी।
हालांकि, चूंकि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट फैसले थे कि चल संपत्ति को छोड़कर महिलाएं अपने नाबालिग बच्चे के व्यक्ति या संपत्ति की अभिभावक नहीं हो सकती हैं, बेंच ने कहा कि उसके हाथ फैसले से बंधे हैं।
शायरा बानो में, यह माना गया कि मुस्लिम पर्सनल लॉ-शरीयत की प्रथाओं को संविधान के अनुच्छेद 13 के संदर्भ में, भारत के संविधान के भाग- III में निहित प्रावधानों को पूरा करने की आवश्यकता नहीं हो सकती है, जो राज्य के कार्यों पर लागू होती है।
इसी तरह, सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय हैं, जो मानते हैं कि मुस्लिम मांएं अपने नाबालिग बच्चों के व्यक्ति और संपत्ति की संरक्षक नहीं हो सकती हैं, न्यायालय ने माना कि यह उन मामलों में निर्णयों से बाध्य है जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत प्रदान किया गया है।
इसके अलावा, शायरा बानो (सुप्रा) में, यह माना गया है कि कुरान "कानून का पहला स्रोत" है। हालांकि, शरीयत अधिनियम की धारा 2 में शामिल मामलों के लिए, लागू होने वाला एकमात्र कानून मुस्लिम पर्सनल लॉ होगा और उक्त धारा में संरक्षकता का उल्लेख किया गया है। इसलिए, कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि संरक्षकता के मामले में जो कानून लागू होता है वह केवल शरीयत कानून हो सकता है।
अदालत ने इस तरह अपील की अनुमति दी और माना कि नाबालिग बच्चों के पक्ष में निष्पादित पार्टिशन डीड अमान्य है।
केस टाइटल: सी अब्दुल अजीज और अन्य बनाम चेम्बकंडी साफिया और अन्य।
सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (केरल) 332