जिसे कोर्ट ने रद्द कर दिया है, म्‍यूनिसिपल अथॉरिटी उस ब्लैकलिस्टिंग रिजोल्यूशन पर भी भरोसा कर सकती, बशर्ते कि अंतिम आदेश में उसे जस्टिफाई किया गया हो: गुजरात हाईकोर्ट

Update: 2022-06-09 10:23 GMT

गुजरात हाईकोर्ट

गुजरात हाईकोर्ट ने एक रोड कॉन्ट्रेक्टर के खिलाफ पारित अपने ही एक ब्लैकलिस्टिंग आदेश पर भरोसा करने की अनुमति वड़ोदरा नगर निगम को दी है, जबकि उस आदेश को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप न पाते हुए खारिज कर दिया था। मामले में हाईकोर्ट ने तीन वर्क ऑर्डर के संबंध में कॉन्ट्रेक्टर को नोटिस जारी किया था।

हालांकि, चीफ जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस आशुतोष जे शास्त्री की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि मामले में अंतिम आदेश पारित करते हुए निगम को इसे उचित ठहराना होगा।

कोर्ट ने कहा,

"केवल इसलिए कि उक्त संकल्प 31.12.2019 को रद्द कर दिया गया है, याचिकाकर्ता को यह तर्क देने का अधिकार नहीं होगा कि प्रतिवादी उस पर भरोसा नहीं कर सकता है क्योंकि समन्वय पीठ ने 31.12.2018 के आदेश को रद्द करते हुए मामले को नए सिरे से निर्णय के लिए निगम को वापस भेज दिया है।

यदि अधिकारी अपने पहले के आदेश पर भरोसा करना उचित समझते हैं, तो अंतिम आदेश पारित करते समय इसे उन्हें इसे उचित ठहराना होगा।"

पीठ ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं होगा कि याचिकाकर्ता-ठेकेदार को ब्लैक लिस्टेड व्यक्ति माना जा सकता है।

याचिकाकर्ता को शुरू में निगम द्वारा 31 दिसंबर, 2018 के संकल्प के तहत याचिकाकर्ता के अनियमितताओं में लिप्त होने और निगम को नुकसान पहुंचाने के आधार पर काली सूची में डाल दिया गया था और उसी आदेश से, याचिकाकर्ता को देय भुगतान रोक दिया गया था।

इस आदेश को हाईकोर्ट की एक समन्वय पीठ ने इस संक्षिप्त आधार पर रद्द कर दिया कि इसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन में पारित किया गया था, यहां तक ​​कि याचिकाकर्ता को कारण बताओ नोटिस जारी किए बिना और याचिकाकर्ता को सुने बिना पारित किया गया था।

पीठ ने मामले को निगम को वापस भेज दिया था और याचिकाकर्ता को एक मौका देने के बाद नए आदेश पारित करने की स्वतंत्रता दी थी।

‌‌जिसके बाद याचिकाकर्ता को 22 अप्रैल, 2019 को एक नोटिस जारी किया गया था, जिसे इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि 31 दिसंबर, 2018 के संकल्प को रद्द कर दिया गया है और इसलिए, निगम ने आक्षेपित नोटिस जारी करते हुए उक्त पर संकप्ल पर भरोसा नहीं कर सकता है।

हाईकोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता को यह तर्क देने में कोई शिकायत नहीं हो सकती है कि ऐसा नोटिस जारी नहीं किया जा सकता था या उक्त नोटिस में, 31 दिसंबर, 2018 के संकल्प पर निगम द्वारा भरोसा नहीं किया जा सकता था।

तदनुसार, बेंच ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट के आदेश या प्रतिवादी निगम के नोटिस की प्रतीक्षा किए बिना प्रतिवादी प्राधिकारी के समक्ष पेश हो।

केस टाइटल: दिव्या सिमंधर कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड बनाम वडोदरा नगर निगम

केस नंबर: C/SCA/1322/2022

आदेश पढ़ने/डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

Tags:    

Similar News