[COVID के बीच मोहर्रम] 'जहां फरिश्ते पांव रखने से डरते हैं, वहां मूर्ख ही दौड़ लगाते हैं; परिस्थितियों के अनुसार कार्य करने में विफल रहा प्रशासन: गुजरात हाईकोर्ट ने रोष प्रकट किया

Update: 2020-10-06 09:32 GMT

"जहां फरिश्ते पांव रखने से डरते हैं, वहां मूर्ख ही दौड़ लगाते हैं।"....यह पंक्‍ति पहली बार अलेक्जेंडर पोप ने अपनी 1711 की कविता "एन एसे ऑन क्रिटिसिज्म" में लिखी थी। वाक्यांश का आशय यह है कि अनुभवहीन या जल्दबाजी लोग उन चीजों में हाथ डालते हैं, जिन्हें करने से अनुभवी लोग बचते हैं। "

हाल ही में, गुजरात हाईकोर्ट ने एक जनहित या‌चिका पर पारित एक आदेश का आमुख पूर्वोक्त पंक्तियों के साथ प्रस्तुत किया।

मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की खंडपीठ जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें याचिकाकर्ता ने जानकारी दी थी कि 30.08.2020 को खंभात शहर में लोगों ने मुहर्रम का जुलूस निकाला था, जबकि कई अधिसूचनाएं जारी की गई थीं, जिसमें बड़ी संख्या में इकट्ठा नहीं होने के लिए कहा गया था।

गुजरात हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि "कड़ी तालाबंदी के बावजूद महामारी जंगल की आग जैसी फैल रही है। हम असहाय खड़े हैं और पता नहीं है कब कोरोना की लहर हमें बहा समुद्र में बहा ले जाए। हमें नहीं पता है कि कल क्या होगा।"

याचिकाकर्ता का मामला

याचिकाकर्ता ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि 30.08.2020 को दोपहर लगभग 01:00 बजे, याचिकाकर्ता को अपने मोबाइल पर करीबी रिश्तेदारों से कई वीडियो प्राप्त हुए, जिसमें दिख रहा था कि एक विशेष समुदाय के सदस्य बड़ी संख्या में सोशल डिस्टे‌सिंग का पालन किए बिना और मास्क पहने बिना मुहर्रम के जुलूस निकाल रहे थे।

यह दिखाने के लिए कि बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे, उक्त जुलूस की तस्वीरें याचिका के साथ संलग्न की गई थीं।

याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि उसने अपने स्रोतों से पूछताछ करने की कोशिश की कि अधिकारियों की अनुमति के बिना जुलूस कैसे निकाला जा सकता है; हालांकि, याचिकाकर्ता को विश्वस्त स्तर पर यह जानकारी मिली की मुहर्रम के जुलूस के लिए किसी भी अधिकारी द्वारा ऐसी कोई अनुमति नहीं दी गई है।

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि अपनी निष्क्रियता छिपाने के लिए, खंभात पुलिस स्टेशन ने इस आशय का एक प्रेस नोट जारी किया कि भीड़ के मामले में खंभात सिटी पुलिस स्टेशन में एफआईआर नंबर 11215012200805/2020 पंजीकृत की गई है; हालांकि, याचिकाकर्ता की जानकारी के अनुसार, उक्त मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।

न्यायालय के अवलोकन

30 अगस्त 2020 को खंभात में निकाले गए मोहर्रम के जुलूस की तस्वीरों को देखने के बाद, कोर्ट ने कहा, "हम यह समझ नहीं पा रहे हैं कि लोग अपनी जान जोखिम में डालकर क्यों ऐसा कर रहे हैं। जुलूस में शामिल लोगों ने न केवल अपनी जान जोख‌िम में डाली, बल्कि अपने परिजनों की भी डाली है, जो कि अपने घरों में हो सकते हैं।"

न्यायालय ने आगे कहा, "खंभात निवासियों के इस अव‌िवेकपूर्ण कार्य का भयावह परिणाम यह रहा है कि आनंद जिले में 900 से अधिक COVID​​-19 पॉजीटिव मामलों सामने आए, जिसमें से 400 मामले खंभात शहर में सामने आए हैं।"

न्यायालय ने कहा, "न्यायालय के लिए, उन सभी व्यक्तियों को फटकार लगाने के मामले में बहुत देर हो चुकी है, जो जुलूस में शामिल थे क्योंकि मुहर्रम खत्म हो गया है। हालांकि, अगर याचिका के साथ संलग्न तस्वीरें सभा और जुलूस की वास्तविक घटना को दर्शाती हैं, तो यह चिंता का विषय है।"

न्यायालय ने कहा कि संबंधित अधिकारियों को इस तथ्य के बारे में पता था कि COVID​​-19 का संक्रमण नियंत्रित करने के लिए, राज्य सरकार ने सभी धार्मिक गतिविधियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है, जिसमें भीड़ का इकट्ठा होना भी शामिल है, ‌फ‌िर भी अधिकारी तुरंत कार्रवाई करने में विफल रहे...।

न्यायालय ने दोहराया है कि धर्म का अधिकार मौलिक अधिकार है, पूर्ण अधिकार नहीं है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 25 के शुरुआती शब्द ही स्पष्ट करते हैं कि उक्‍त अधिकार "सार्वजनिक आदेश, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन" है, यह संविधान के अनुच्छेद 25 (2) के तहत प्रतिबंध के अधीन भी है, जिसमें किसी भी कानून का संचालन शामिल है।

इसके अलावा, न्यायालय ने पाया कि COVID-19 स्वास्थ्य से संबंध‌ित है और सरकार ने महामारी रोग अधिनियम, 1897 और आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के प्रावधानों को लागू किया है और कुछ गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया है, जिसमें जुलूस भी शामिल है...।

अदालत ने अंत में कहा, "हम यह समझने में विफल हैं कि लोग वास्तविकता को स्वीकार करने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं और वास्तविकता यह है कि पूरा ब्रह्मांड बहुत ही भयानक महामारी के रूप में प्रकृति के प्रकोप का सामना कर रहा है। हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि प्रशासन, कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट, आनंद, पुलिस अधीक्षक, आनंद इस अवसर पर विफल रहा है।"

रिट आवेदन का निस्तारण निम्नलिखित निर्देशों के साथ किया गया:

[1] प्रधान सचिव गृह विभाग, गुजरात को निर्देश दिया जाता है कि वे इस मामले की तुरंत जांच शुरू करें और न्यायालय के समक्ष उपयुक्त रिपोर्ट दाखिल करें।

[2] कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट, आनंद के साथ-साथ पुलिस अधीक्षक, आनंद को निर्देश दिया जाता है कि वे व्यक्तिगत रिपोर्ट दाखिल करें...।

पूर्वोक्त निर्देशों के साथ, रिट याचिका का निस्तारण किया गया। हालांकि, निर्देशों के अनुपालन की रिपोर्टिंग के उद्देश्य से, रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया था कि वह इस पीठ के समक्ष 27 नवंबर 2020 को उपर्युक्त दो रिपोर्टों के साथ एक बार फिर मामले को अधिसूचित करे।

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