मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने निचली अदालत के न्यायाधीश को रेप पीड़िता के नाम का खुलासा करने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया

Update: 2021-10-13 05:11 GMT

MP High Court

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में एक निचली अदालत के न्यायाधीश के आदेश में बलात्कार पीड़िता के नाम का खुलासा करने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया। नोटिस में यह रेखांकित किया गया कि यह भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 228ए के तहत असंगत है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा निपुण सक्सेना बनाम भारत संघ [(2019) 2 SCC 703] के मामले में दिए गए निर्देश का उल्लंघन भी।

अदालत आईपीसी की धारा 376 (2) (सी), 376 (3), 506 और पोक्सो अधिनियम की धारा 5 (एन)/6 (ए) और 11/12 के तहत दर्ज बलात्कार के आरोपी की दूसरी जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जब कहा कि निचली अदालत ने अदालत के समक्ष अपने बयान में बलात्कार पीड़िता का नाम लिया था।

आरोपी को जमानत देते हुए न्यायमूर्ति दीपक कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने निम्नलिखित आदेश जारी किया:

"मामले से अलग होने से पहले यह देखा गया कि निचली अदालत ने बलात्कार की पीड़िता अभियोक्ता के नाम का खुलासा किया, जो आईपीसी की धारा 228ए के प्रावधान के तहत असंगत है और माननीय सुप्रीम कोर्ट के निपुण सक्सेना बनाम भारत संघ [(2019) 2 एससीसी 703] के मामले में दिए गए निर्देश का उल्लंघन भी। उपरोक्त तथ्य को देखते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया जाता है कि उचित अनुशासनात्मक कार्रवाई क्यों न की जाए। यह नोटिस पीठासीन अधिकारी के खिलाफ नोटिस प्रधान जिला न्यायाधीश, अशोकनगर (एमपी) के माध्यम से भेजा जा सकता है।"

न्यायमूर्ति एमबी लोकुर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने निपुण सक्सेना बनाम भारत संघ मामले के आदेश में कहा था,

"ऐसे मामलों में जहां पीड़िता की मृत्यु हो गई है या मानसिक रूप विक्षिप्त है, पीड़िता के नाम या उसकी पहचान का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए। यहां तक ​​कि परिजनों की अनुमति के तहत भी, जब तक कि उसकी पहचान के प्रकटीकरण को सही ठहराने वाली परिस्थितियां मौजूद न हों, जो कि सक्षम प्राधिकारी, जो वर्तमान में सत्र न्यायाधीश द्वारा तय किया जाएगा।"

अदालत ने कहा था,

"मृतक भी अपनी गरिमा के हकदार है।"

महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्तमान मामले में आरोपी को जमानत इस तथ्य के मद्देनजर दी गई थी कि वह 1.3.2021 से हिरासत में था।

कोर्ट ने निर्देश दिया कि यदि आवेदक ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के लिए 50,000/- (पचास हजार रुपये मात्र) का जमानत बांड प्रस्तुत करने के साथ इतनी ही राशि में एक सॉल्वेंट ज़मानत के साथ उसे जमानत पर रिहा कर दिया जाएगा।

केस टाइटल - महेश कुशवाहा बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य

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