एग्जाम आंसर शीट का प्रकाशन उम्मीदवारों की निजता में दखल देगा: एमपी हाईकोर्ट ने सिविल जज चयन प्रक्रिया में "पारदर्शिता" की मांग वाली जनहित याचिका खारिज की

Update: 2022-09-06 07:02 GMT

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में जनहित याचिका के रूप में दायर वह याचिका खारिज कर दी, जिसमें राज्य में निचली अदालत परीक्षा की मुख्य लिखित परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले सभी उम्मीदवारों की आंसर शीट उपलब्ध कराने के निर्देश देने की मांग की गई।

जस्टिस शील नागू और जस्टिस डी.डी. बंसल की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि किसी उम्मीदवार की आंसर शीट को सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध कराना उसके निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा और जनहित के खिलाफ भी होगा।

खंडपीठ ने कहा,

सार्वजनिक डोमेन में सूचना तक मुफ्त पहुंच स्पष्ट रूप से आकर्षक प्रस्ताव है लेकिन उपरोक्त जटिलताओं को देखते हुए व्यवहार्य नहीं है। याचिकाकर्ता के उक्त प्रस्ताव के साथ जटिलताएं और कठिनाइयां जांच निकाय के कामकाज को खतरे में डाल देंगी, इसलिए यह जनहित के खिलाफ और प्रतिकूल होगा।

सार्वजनिक डोमेन में आंसर शीट की सामग्री के प्रकटीकरण के कई नुकसान हैं।

याचिकाकर्ता ने वर्तमान याचिका में तर्क दिया कि राज्य में सिविल जज (एंट्री लेवल) और जिला जज (एंट्री लेवल) के पद पर चयन और नियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी द्वारा लिखित उत्तर प्रतियां उम्मीदवारों को न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध कराया जाएगा।

उन्होंने अदालत के निर्देश के लिए उक्त परीक्षा के लिए अधिसूचना के प्रासंगिक प्रावधानों को शून्य घोषित करने की मांग की, जिसने आंसर शीट की आपूर्ति केवल उस संबंधित उम्मीदवार तक सीमित कर दी, जो इसके लिए आवेदन करता है।

याचिकाकर्ता ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि उक्त परीक्षा में उपस्थित हुए सभी उम्मीदवारों की आंसर शीट न्यायालय की वेबसाइट पर उपलब्ध कराने से आरटीआई अधिनियम के छूट खंड यू/एस 8 का उल्लंघन नहीं होगा। आगे यह तर्क दिया गया कि इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी बल्कि भावी उम्मीदवारों के लिए अकादमिक रूप से समृद्ध भी होगा, जो भविष्य में होने वाली बाद की परीक्षाओं में शामिल हो सकते हैं।

प्रतिवादी ने प्रस्तुत किया कि यह न तो जनहित में होगा और न ही शिक्षाविदों के हित में है कि सभी आंसर शीट न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड की जाएं। आगे यह भी दावा किया गया कि विशेष उत्तर प्रति में निहित जानकारी संबंधित उम्मीदवार के लिए गुप्त है, जिसे आरटीआई अधिनियम की धारा 8(1)(जे) में निहित बार के मद्देनजर सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। यह भी प्रस्तुत किया गया कि सभी के लिए आंसर शीट की सामग्री का प्रकटीकरण संबंधित उम्मीदवार की गोपनीयता के आक्रमण के समान होगा।

रिकॉर्ड पर पक्षकारों और दस्तावेजों की प्रस्तुतियों की जांच करते हुए कोर्ट ने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और अन्य बनाम आदित्य बंदोपाध्याय और अन्य में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ढांचे के भीतर याचिकाकर्ता के मामले का विश्लेषण किया।

कोर्ट ने निम्नलिखित नोट किया:

1. किसी विशेष उम्मीदवार द्वारा लिखी गई आंसर शीट की सामग्री में उक्त उम्मीदवार के लिए निजता और व्यक्तिगत जानकारी होती है, इसलिए इसे बड़े पैमाने पर जनता के सामने प्रकट करने की अनुमति तभी दी जा सकती है जब संबंधित उम्मीदवार को कोई आपत्ति न हो।

2. सार्वजनिक डोमेन में उम्मीदवार की आंसर शीट की सामग्री का प्रकटीकरण कई जटिलताओं को आमंत्रित करेगा, जिसमें संबंधित उम्मीदवार की निजता शामिल है, परीक्षा निकाय को असंख्य आवेदनों में शामिल होने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जिससे भानुमति का पिटारा खुल रहा है, जिसे नियंत्रित करना मुश्किल हो सकता है।

3. सार्वजनिक डोमेन में आंसर शीट का प्रकटीकरण कोचिंग संस्थानों द्वारा उम्मीदवारों से प्रतियां एकत्र करने के खतरे के लिए अतिसंवेदनशील है (शायद आरटीआई के तहत उत्तर प्रतियों के लिए आवेदन करने के लिए उम्मीदवार को प्रोत्साहित / प्रेरित करने के बाद)।

4. उस आंसर शीट में उम्मीदवार की व्यक्तिगत जानकारी होती है, जिसे संबंधित उम्मीदवार की सहमति के बिना प्रकट नहीं किया जा सकता है या सार्वजनिक हित व्यक्तिगत हित से अधिक है, जो यहां मामला नहीं है।

इसी के तहत याचिका खारिज कर दी गई।

केस टाइटल: एडवोकेट यूनियन फॉर डेमोक्रेसी एंड सोशल जस्टिस बनाम मध्य प्रदेश हाईकोर्ट

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