"नाबालिग होना कोई बाधा नहीं", 17 साल के किशोर ने बीमार पिता को लिवर दान करने के लिए मांगी थी अनुमति, दिल्ली हाईकोर्ट ने की टिप्पणी
दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को मौखिक रूप से कहा कि केवल इसलिए कि कोई व्यक्ति नाबालिग है, इसका मतलब यह नहीं है कि वह मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम 1994 के तहत अपना अंग दान करने के लिए अयोग्य है।
जस्टिस रेखा पल्ली ने कहा, "नाबालिग होना कोई बाधा नहीं है।"
उन्होंने मानव अंगों और ऊतकों के प्रत्यारोपण नियम, 2014 के नियम 5(3) (जी) का जिक्र करते हुए कहा, जिसमें प्रावधान है कि असाधारण चिकित्सा आधार के अलावा नाबालिग द्वारा जीवित अंग या ऊतक दान की अनुमति नहीं है। उस आधार को पूर्ण औचित्य के साथ और सक्षम प्राधिकारी के पूर्वानुमोदन के साथ विवरण में दर्ज किया जाए।
उन्होंने आगे कहा,
"अधिनियम केवल यह कहता है कि आप चिकित्सा आधार पर विचार करेंगे... इस मामले में असाधारण आधार बनाए गए हैं। अन्य इच्छुक व्यक्तियों में से कोई भी पात्र नहीं है तो हम इस आदेश को रद्द क्यों न करें? वैसे भी यह एक अनुचित आदेश है।"
मामले में कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें डिप्टी हेड ऑफ ऑपरेशंस, आईएलबीएस और सक्षम प्राधिकारी द्वारा 28 अगस्त, 2021 को पारित एक आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें याचिकाकर्ता को 17 साल और 9 महीने की उम्र में अपने लीवर का एक हिस्सा दान करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया था। वह अपने पिता के लिए अंगदान करना चाहता था।
यह कहा गया कि याचिकाकर्ता की मां और बड़े भाई दोनों को चिकित्सा आधार पर अंगदान करने की अनुमति नहीं दी गई है। साथ ही याचिकाकर्ता को नाबालिग होने के कारण लिवर का एक हिस्सा दान करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया गया।
इसलिए याचिकाकर्ता ने दिल्ली सरकार और इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बाइलरी साइंसेज (आईएलबीएस) को उचित निर्देश देने की मांग की।
जस्टिस पल्ली ने कहा, "आपने किस तरह का आदेश पारित किया है? आप एक आदमी को क्यों मरने देना चाहते हैं? कम से कम अपना दिमाग लगाओ। अगर वह योग्य नहीं है तो उसके आवेदन को अस्वीकार कर दें। सिर्फ इसलिए कि वह नाबालिग है, यह आधार नहीं हो सकता। क़ानून में कोई पूर्ण प्रतिबंध नहीं है।"
प्रतिवादी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पोद्दार ने कहा, "नाबालिग का जीवन भी महत्वपूर्ण है; सक्षम प्राधिकारी को यह निर्णय लेने दें कि क्या ऑपरेशन यह सुनिश्चित करने के बाद किया जा सकता है कि यह नाबालिग को नुकसान नहीं पहुंचाएगा।"
पीठ ने तब याचिकाकर्ता से पूछा कि उसने अधिनियम की धारा 17 के तहत अपील के वैकल्पिक उपाय का लाभ क्यों नहीं उठाया।
हालांकि, यह देखते हुए कि मामला एक व्यक्ति के जीवन से संबंधित है, प्रतिवादी को यह निर्देश प्राप्त करने के लिए कि क्या इस तरह की स्थिति में, जीएनसीटीडी से उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा किसी और अनुमोदन की आवश्यकता है, सुनवाई को सोमवार तक के लिए स्थगित कर दिया गया था,
केस शीर्षक: सौरव सुमन अपनी मां के माध्यम से बनाम जीएनसीटीडी और अन्य।