स्त्री धन की वसूली के एकमात्र आधार पर आईपीसी की धारा 498A,406 के तहत किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2021-12-14 06:43 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल यह तथ्य कि स्त्री धन की वसूली किसी व्यक्ति से की जानी है, उसे धारा 498-ए (दहेज की मांग से संबंधित) और 406 (आपराधिक विश्वासघात) के तहत अपराधों के लिए गिरफ्तार करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता है।

जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि ऐसे मामलों में पुलिस को सीआरपीसी के तहत आरोपी के परिसरों की तलाशी लेने का अधिकार है।

कोर्ट ने कहा,

"याचिकाकर्ता से हिरासत में पूछताछ की मांग केवल स्त्री धन की वसूली के लिए की जा रही है। केवल स्त्री धन की वसूली याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत से इनकार करने का कारण नहीं हो सकती है। पुलिस के पास सीआरपीसी के तहत परिसरों की तलाशी करने के लिए पर्याप्त शक्तियां हैं।"

इस प्रकार, कोर्ट ने याचिकाकर्ता को उसकी पत्नी द्वारा दर्ज एक एफआईआर में अग्रिम जमानत दे दी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता, उसकी सास और उसकी दोनों बहनों ने अधिक दहेज के लिए उसका अपमान किया, पीटा, दबाव डाला और प्रताड़ित किया था। उसे धमकी दी कि अगर वह शांतिपूर्ण जीवन चाहती है तो उसके पिता को 50 लाख रुपये दहेज की व्यवस्‍था करनी होगी।

इसके अलावा, यह आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता ने उससे जबरन स्त्री धन ले लिया और अपनी मां को दे दिया। यह भी कहा गया कि 2017 में, याचिकाकर्ता ने शिकायतकर्ता के साथ लड़ाई की और उसे घर से बाहर निकाल दिया और उसका पासपोर्ट, आईडी और कपड़े भी उसके पास थे।

दूसरी ओर, याचिकाकर्ता ने 2018 में अपनी पत्नी और उसके परिवार के सदस्यों के खिलाफ आरोप लगाते हुए एक शिकायत दर्ज कराई थी। आरोप था कि उसकी पत्नी उसकी शादी से खुश नहीं थी और उसे गालियां देती थी। उन्होंने यह भी कहा कि दिल्ली पुलिस विभाग में एक अधिकारी के रूप में काम करने वाले उनकी पत्नी के पिता ने उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी थी।

कोर्ट ने कहा,

"याचिकाकर्ता पर धारा 498-ए, 406 आईपीसी के तहत अपराध का आरोप है। स्थिति रिपोर्ट के अवलोकन से पता चलता है कि याचिकाकर्ता की हिरासत में पूछताछ केवल स्त्री धन की वसूली के लिए की जा रही है। अकेले स्त्री धन की वसूली याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत से इनकार करने का एक कारण नहीं हो सकती है।"

कोर्ट ने कहा कि यह दिखाने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं है कि याचिकाकर्ता और उसका परिवार इस स्थिति में थे कि वे गवाहों को धमका सकते थे।

"यह एक समान्य कानून है कि पुलिस अधिकारी को आरोपी को उन मामलों में, जिनमें सात साल की अवधि तक कारवास का दंड है, गिरफ्तारी के लिए यह संतु‌‌ष्ट‌ि होनी चाहिए कि इस प्रकार की गिरफ्तारी किसी व्यक्ति को कोई और अपराध करने से रोकने के लिए आवश्यक है; या मामले की उचित जांच के लिए आवश्यक है; या आरोपी को अपराध के सबूत को गायब करने से रोकने के लिए आवश्यक है; या किसी भी प्रकार से सबूत के साथ छेड़छाड़ करने से रोकने के‌ लिए आवश्यक है; या ऐसे व्यक्ति को किसी गवाह को प्रलोभन, धमकी या ऐसा वादा जिससे गवाह को अदालतों या पुलिस अधिकारी को तथ्यों का खुलासा करके उसे रोका जा सके, के लिए आवश्यक है, या जब तक ऐसे आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जाता है, तब तक अदालत में उसकी उपस्थिति सुनिश्चित नहीं की जा सकती है।"

इसके अलावा कोर्ट ने पाया कि मामले में क्रॉस-शिकायतें हैं। जिसके बाद गिरफ्तारी पूर्व जमानत याचिका को स्वीकार किया गया।

केस शीर्षक: पूरन सिंह बनाम दिल्ली राज्य

आदेश पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

Tags:    

Similar News