मात्र लोन रिकवरी के लिए किया गया उत्पीड़न आत्महत्या के लिए उकसाने की श्रेणी नहीं आएगा: आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट

Update: 2023-04-01 04:03 GMT

आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने हाल ही में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि अभियुक्त की ओर से मृतक को आत्महत्या के लिए प्रोत्साहित करने के इरादे के बिना उत्पीड़न का आरोप अपराध का गठन नहीं करेगा।

जस्टिस आर रघुनंदन राव की पीठ ने कहा,

"एक सामान्य सूत्र (आत्महत्या के लिए उकसाना) मृतक को जानबूझकर आत्महत्या के लिए धकेलने की आवश्यकता है। केवल उत्पीड़न भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत अपराध नहीं होगा।

मामले के संक्षिप्त तथ्य

अगस्त 2016 में मृतक ने सुसाइड नोट लिखकर कथित रूप से अपनी जान ले ली, जिसमें लेनदारों की सूची शामिल थी, जो उसने दावा किया कि वे अपने रुपये चुकाने के लिए उसे परेशान कर रहे थे। नोट में स्पष्ट रूप से कहा गया कि उसकी आत्महत्या का कारण इन लेनदारों द्वारा असहनीय उत्पीड़न है। इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं, जो पति-पत्नी हैं, उनका नाम विशेष रूप से एक ही सुसाइड नोट में लिया गया।

आईपीसी की धारा 306 सपठित धारा 34 के तहत चार्जशीट दायर की गई और इसे गुंटूर जिले की अदालत ने 2017 के पीआरसी नंबर 30 के रूप में संज्ञान लिया है।

अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ताओं को आरोपी इसलिए बनाया गया, क्योंकि मरने वाले व्यक्ति ने अपने सुसाइड नोट में उनका नाम उन लोगों के रूप में रखा, जो उन्हें अपने पैसे चुकाने के लिए परेशान कर रहे थे।

याचिकाकर्ताओं ने मामले को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट के समक्ष दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 482 के तहत आपराधिक याचिका दायर की।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं ने किसी भी तरह से आईपीसी की धारा 306 के तहत कोई अपराध नहीं किया है।

न्यायालय द्वारा विश्लेषण

दोनों पक्षकारों को सुनने के बाद कोर्ट ने सीबीआई बनाम वी.सी. शुक्ल मामले का उल्लेख किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आत्महत्या के लिए आवश्यक सामग्री की खरीद में सहायता करने के सकारात्मक कार्यों से ही किसी व्यक्ति द्वारा आत्महत्या की जा सकती है।

उदाहरण के लिए फांसी के लिए रस्सी या अन्य सामग्री की आपूर्ति करने वाला व्यक्ति जब कोई व्यक्ति फांसी लगाकर आत्महत्या करने की इच्छा व्यक्त करता है, या हथियार या सामग्री जैसे ड्रग्स, जहर आदि की आपूर्ति करता है, जब आत्महत्या करने का इरादा रखने वाला व्यक्ति ऐसी सहायता मांगता है। इसके अलावा, यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करने का इरादा रखने वाले व्यक्ति को आत्महत्या करने के तरीकों का सुझाव देता है, जैसे कि नदी, झील या कुएं में कूदना आदि।

हाईकोर्ट ने कहा कि वर्तमान मामले में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आरोप यह है कि वे मृत महिला को उनके द्वारा लिए गए लोन और अग्रिम की वसूली के लिए परेशान कर रहे थे। हालांकि, उक्त उत्पीड़न का कोई विवरण नहीं है। सिवाय इस तथ्य के कि मृतका ने अपने सुसाइड नोट में ऐसा कहा था।

इन परिस्थितियों में याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एकमात्र आरोप उनके लोन की वसूली के लिए सामान्य उत्पीड़न का आरोप है। इस तरह का उत्पीड़न 'उकसाना' शब्द की उपरोक्त व्याख्या के खंड -1 और 2 के अंतर्गत नहीं आएगा। खंड-3 में याचिकाकर्ताओं की ओर से मृत व्यक्ति को प्रतिबद्ध करने के लिए प्रोत्साहित करने के इरादे की आवश्यकता है।

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ मृत महिला को आत्महत्या के लिए प्रोत्साहित करने के इरादे से कुछ भी करने का कोई आरोप नहीं है।

अदालत ने कहा,

"याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा उद्धृत सभी निर्णय आत्महत्या के लिए उकसाने के विभिन्न पहलुओं में गए। सामान्य सूत्र मृतक को जानबूझकर आत्महत्या करने के लिए धकेलने की आवश्यकता है। केवल उत्पीड़न भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत अपराध नहीं होगा।”

उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने कहा कि चार्जशीट में लगाए गए आरोप याचिकाकर्ताओं द्वारा आईपीसी की धारा 306 के तहत उकसाने का कोई मामला नहीं बनाते हैं और इसके परिणामस्वरूप आपराधिक याचिका की अनुमति दी जाती है।

केस टाइटल- गादीपुडी अनीता बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

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