केवल आतंकवादी संगठन के साथ संबंध यूएपीए के तहत अपराध नहीं: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने प्रतिबंधित संगठन को रंगदारी देने के कथित मामले में जमानत दी
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने हाल ही में दोहराया कि एक आतंकवादी संगठन के साथ एक सदस्य के रूप में संबंध या अन्यथा धारा 38 के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा, जब तक कि साथ के जरिए संगठन अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाने का इरादा नहीं रखता है।
इन्हीं टिप्पणियों के साथ जस्टिस संजय अग्रवाल और जस्टिस रजनी दुबे की खंडपीठ ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम, 1967 के तहत दो आरोपियों को जमानत प्रदान की। उन पर सड़क निर्माण कार्य के लिए प्रतिबंधित संगठनों को रंगदारी देने के आरोप थे।
सुदेश केडिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया का जिक्र करते हुए, बेंच ने देखा कि प्रतिबंधित/ आतंकवादी संगठन को एक्सटॉर्शन मनी का भुगतान टेरर फंडिंग के समान नहीं है और भले ही चार्जशीट को रिकॉर्ड पर अन्य सामग्री के साथ ही लिया गया हो कि अपीलकर्ता उक्त क्षेत्र में उन्हें सुचारू रूप से काम करने देने के लिए एक्सटॉर्शन मनी का भुगतान कर रहे थे।
सुदेश केडिया (सुप्रा) में यह माना गया है कि एक्सटॉर्शन मनी का भुगतान टेरर फंडिंग के समान नहीं है।
इस प्रकार कोर्ट की राय थी कि अभियुक्तों के खिलाफ आरोप यूएपीए की धारा 43 डी (5) के तहत जमानत देने पर रोक लगाने के लिए पर्याप्त नहीं थे। इस संदर्भ में कोर्ट ने थवा फासल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख किया और कहा कि यूएपीए की धारा 43डी(5) में प्रदान की गई रोक भारत के संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकारों की गारंटी सुनिश्चित करने के लिए संवैधानिक कोर्टों की शक्ति के खिलाफ काम नहीं करता है।
पृष्ठभूमि
स्पेशल जज (एनआईए एक्ट) के एक आदेश के खिलाफ राष्ट्रीय जांच एजेंसी एक्ट, 2008 की धारा 21(4) के तहत एक आपराधिक अपील दायर की गई थी।
आदेश में सीआरपीसी की धारा 439 के तहत अपीलकर्ता के जमानत के आवेदन को कोई योग्यता न पाते हुए रद्द कर दिया गया था। उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 149, 201 और 120बी/34, छत्तीसगढ़ विशेष जन सुरक्षा एक्ट, 2005 की धारा 8(2)(3)(5) और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम एक्ट, 1967 की धारा धारा 10,13,17,38(1) (2), 40 और 22(ए) (सी) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
अभियोजन पक्ष के मामले के अनुसार, गुप्त सूचना के आधार पर, प्रतिवादी ने वाहन की तलाशी में अपीलकर्त के पास से 95 जोड़ी जूते, वर्दी के लिए हरे-काले छपे कपड़े, बिजली के तारों के दो बंडल, सभी 100 मीटर, एक एलईडी लेंस, वॉकी टॉकी, और अन्य सामान बरामद किए थे।
अभियोजन का मामला था कि इन वस्तुओं को अपीलकर्ता नक्सलियों को आपूर्ति कर रहा था। अपीलकर्ता रुद्रांश अर्थ मूवर्स रोड कंस्ट्रक्शन कंपनी के साथ काम करता था। यह अपीलकर्ता नंबर दो कोमल वर्मा और एक अन्य सह आरोपी अजय जैन की पार्टनरशिप फर्म थी।
अभियोजन का मामला यह भी था कि आरोपी नक्सलियों को धन मुहैया करा रहे थे; हालांकि उक्त तिथि को कोई नकदी बरामद नहीं हुई, पुलिस ने अपीलकर्ताओं सहित सभी को गिरफ्तार कर लिया।
अपीलकर्ता की ओर से सीआरपीसी की धारा 439 के तहत दायर आवेदन को स्पेशल जज (एनआईए एक्ट) ने खारिज कर दिया था। अपीलकर्ताओं का मामला यह था कि उन्हें जांच के दरमियन दर्ज इकबालिया बयानों के आधार पर फंसाया गया। अपीलकर्ता के पास से कोई आपत्तिजनक सामग्री जैसे धन, कपड़े, वायरलेस सेट आदि बरामद नहीं किया गया। भले ही आरोप पत्र को उसकी फेस वैल्यू और रिकॉर्ड में उपलब्ध अन्य सामग्री के रूप में जैसा है, वैसा ही लिया जाता है कि अपीलकर्ता उक्त क्षेत्र में सड़क निर्माण को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक्सटॉर्शन के पैसे दे रहे थे, तो भी धारा 38 और 40 के तहत कोई अपराध नहीं बनाया जाएगा।
निष्कर्ष
कोर्ट ने थवा फासल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले का उल्लेख किया, जहां यह माना गया था कि एक आतंकवादी संगठन का सदस्य होना या अन्यथा धारा 38 के तहत अपराध को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा, जब तक कि सहयोग के जरिए आतंकी संगठन अपनी गतिविधियों को आगे बढ़ाने का इरादा नहीं रखता है।
"यहां तक कि अगर कोई आरोपी धारा 39 की उपधारा (1) के खंड (ए) से (सी) में संदर्भित कृत्यों को करके आतंकवादी संगठन का कथित रूप से समर्थन करता है तो भी उसे धारा 39 के तहत दंडनीय अपराध का दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, अगर यह स्थापित नहीं होता कि समर्थन का कार्य एक आतंकवादी संगठन की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के इरादे से किया जाता है।
इस प्रकार, आतंकवादी संगठन की गतिविधियों को आगे बढ़ाने का इरादा 1967 अधिनियम की धारा 38 और 39 के तहत दंडनीय अपराधों का एक अनिवार्य घटक है।"
इसके अलावा, हाईकोर्ट ने यह माना कि यूएपीए की धारा 43डी(5) का प्रावधान यूएपीए के अध्याय V और VI के तहत दंडनीय अपराध के आरोपी व्यक्ति पर लागू होगा। वर्तमान मामले में, अपीलकर्ताओं पर यूएपीए की धारा 10,13, 17, 38(1)(2), और 40 के तहत अपराध का आरोप लगाया गया है।
यह देखते हुए कि अपीलकर्ताओं पर यूएपीए की धारा 38 (1) (2) और 40 के तहत भी आरोप लगाया गया है, अपीलकर्ताओं के खिलाफ मामला यह है कि उन्होंने कांकेर जिले में सड़क निर्माण कार्य करने के लिए नक्सलियों को लेवी/एक्सटॉर्शन का भुगतान किया।
कोर्ट ने सुदेश केडिया बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले का उल्लेख किया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने देखा था कि प्रतिबंधित/आतंकवादी संगठन को जबरन वसूली के पैसे का भुगतान टेरर फंडिंग की राशि नहीं है।
कोर्ट ने कहा,
"धारा 43डी(5) के तहत जमानत देने पर विचार करते समय, अदालत का यह बाध्य कर्तव्य है कि वह खुद को संतुष्ट करने के उद्देश्य से रिकॉर्ड पर पूरी सामग्री की जांच करने के लिए अपना दिमाग लगाए, चाहे आरोपी के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है या नहीं।"
केस शीर्षक: शैलेंद्र भदौरिया और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य