धर्म के बजाय स्वास्थ्य का चुनाव आवश्यक : गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार की धार्मिक तुष्टीकरण की नीति पर नाराज़गी जतायी
जगन्नाथ रथ यात्रा पर रोक लगाने की मांग करने वाली जनहित याचिका का निपटारा करते हुए गुजरात हाईकोर्ट ने कहा, "धर्म के बजाय स्वास्थ्य को चुनना आवश्यक है।"
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति जेबी परदीवाला की पीठ ने धार्मिक अभिव्यक्ति पर जन स्वास्थ्य को वरीयता देने की ज़रूरत पर बल देते हुए कहा कि यह किसी भी कल्याणकारी राज्य का कर्तव्य है कि किसी व्यक्ति के जीवन की सुरक्षा और समुदाय के अच्छे स्वास्थ्य के लिए वह उसको क़ानूनी संरक्षण दे।
गत माह अदालत ने आदेश दिया था कि इस वर्ष अहमदाबाद और राज्य के अन्या ज़िलों में रथ यात्रा आयोजित नहीं होगी। कोर्ट ने इसके बाद सरकार को निर्देश दिया था कि वह इस मुद्दे पर हलफ़नामा दायर करे।
सरकार के हलफ़नामे की कुछ बातों पर अपनी प्रतिक्रिया में पीठ ने कहा कि इस बारे में राज्य ने जो रुख अपनाया है उससे उन्हें निराशा हुई है। कोर्ट ने कहा कि सरकार ने तुष्टीकरण की नीति अपनायी है।
कोर्ट ने कहा,
"…राज्य में COVID-19 संक्रमण से निपटने वाली धर्मनिरपेक्ष एकक के रूप में सरकार का मुख्य फ़ोकस लोगों की स्वास्थ्य को बचाना और उनकी भलाई होनी चाहिए भले ही इसकी वजह से कुछ धार्मिक लोगों की धार्मिक भावना को ठेस ही क्यों न पहुंचे। बढ़ते संक्रमण और संसाधनों की बढ़ती कमी को देखते हुए यह ज़रूरी है कि स्वास्थ्य पर ध्यान दिया जाए न कि धर्म पर।"
"महामारी के समय में हमारे पास टालमटोल के लिए समय नहीं है। हमें कार्रवाई की ज़रूरत है। मज़बूत, व्यावहारिक और ठोस कार्रवाई की।"
तुष्टीकरण की नीति से आम लोगों में ग़लत संदेश जाता है। कोर्ट ने कहा कि सरकार को धार्मिक और सांस्कृतिक मठाधीशों को तुष्ट करने की नीति नहीं अपनानी चाहिए।
कोर्ट ने कहा,
"इस समय हम बहुत नाज़ुक स्थिति में हैं। किसी प्रभावी टीके के अभाव में, कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए सामाजिक दूरी प्रमुख तरीक़ा है। यह समय सच और अपनी ज़िम्मेदारी से बचने का नहीं है। महामारी के दौरान किसी सरकार के प्रभावी रूप से कार्य करने के लिए ज़रूरी है कि उसके पास प्राथमिकताओं की सूची हो ताकि वह शीघ्र और प्रभावी निर्णय ले सके। कठोर निर्णय लेने की ज़रूरत है और विशेषकर संकट के समय में और यह महत्त्वपूर्ण है कि उन विकल्पों और प्राथमिकताओं को पूर्णतया स्पष्ट रखा जाए।
अगर प्राथमिकताएं स्पष्ट नहीं हैं और विरोधाभासी हैं तो इससे ज़्यादा मुश्किलें पैदा होंगी। गुजरात एक ऐसा राज्य है जहां हर दूसरे सप्ताहांत कोई न कोई समारोह होता है। इन सांस्कृतिक समारोहों को आयोजन नहीं हो पाना भावुक कर देने वाला है पर लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा से ज़्यादा महत्त्वपूर्ण और कुछ नहीं है…।"
अगर सरकार धार्मिक जमावड़े को लेकर उदासीन रहती है तो जनता महामारी को कितनी गंभीरता से लेती है उस पर इसका गंभीर असर पड़ेगा। जनता भी इस बारे में ढीला रवैया अपनाने लगेगी और समारोहों में शामिल होगी और इस तरह सामाजिक दूरी के नियमों की धाज्जियां उड़ाएगी।
इस याचिका को निपटाते हुए अदालत ने इस मामले में कोई और आदेश जारी नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि रथ यात्रा या किसी अन्य धार्मिक जुलूस की इजाज़त होगी या नहीं इस बारे में निर्णय लेने का काम कार्यपालिका का है। इस विवाद को तो अदालत के दरवाज़े तक आना ही नहीं चाहिए था।
अदालत ने इस मामले में अपने फ़ैसले की शुरुआत थीयडॉर रूज़वेल्ट के इस उद्धरण से की : कोई भी व्यक्ति क़ानून से ऊपर नहीं है और न ही कोई इसके नीचे है; न ही जब हम उसे इसका पालन करने को कहते हैं तो उसकी इजाज़त लेते हैं। क़ानून के पालन की मांग अधिकार के रूप में की जाती है; यह कोई उपकृत करने की बात नहीं है।"
कोर्ट ने कैलिफ़ॉर्न्या के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रोज़ बर्ड को उद्धृत करते हुए इस मामले को निपटा दिया : "…हम अधिकारों के संरक्षक हैं, और हमें लोगों को ऐसी बातें कहनी है जो वे अमूमन सुनना पसंद नहीं करते हैं।"
केस का विवरण :
केस का नाम : हितेशकुमार विट्टलभाई चावड़ा बनाम श्री जगन्नाथजी मंदिर ट्रस्ट
केस नमबर : R/WP (PIL) No. 90/2020
कोरम : मुख्य न्यायाधीश विक्रम नाथ और जेबी परदीवाला
वक़ील : ओम एम कोतवाल, अंशिन देसाई (याचिकाकर्ता के वकील); एजी कमल त्रिवेदी (अहमदाबाद नगर निगम के वकील); सरकारी वकील मनीषा लवकुमार शाह, डीएम देवनानी और लोक अभियोजक मितेश अमीन (राज्य के लिए)